Saturday, April 24, 2021

कोरोना और ऑक्सीजन

 

आज बैठे - बैठे मन में एक विचार आया

इसी महीने ग्यारह साल से रह रहे फ्लैट को छोड़कर दूसरे घर में सिर्फ और सिर्फ इसलिए शिफ्ट किया, क्योंकि नए मकान मालकिन को छत पर गमलों में लगे पौधों से नफरत थी. हर महीने बंगलोर से ही गमलों को हटाने की नसीहत कई महीनों से दे रही थी. एक बार तो हमने भी सोचा हर महीने के किचकिच से अच्छा है, पौधे किसी को दे दूँ या उखाड़ फेंकूं. जिस दिन केजरीवाल के खानदान से ताल्लुक रखने वाली मकान मालकिन टपक पड़ी, उस दिन रायता फैला देगी. कई पौधों को उखाड़ फेंका, क्योंकि कोई वारिस ना मिला. आधे पौधे नष्ट होने के बाद आत्मा ने धिक्कारना शुरू कर दिया, मन बेचैन हो उठा. दो - तीन रात ठीक से सो नहीं पाया. फिर फैसला किया, अब इस फ्लैट को ही अलविदा कह देंगे. आखिर हर महीने समय से मोटा किराया चुकाते हैं, तो फिर दूसरों की सनक क्यों झेलें. और हमने घर शिफ्ट कर डाला और प्रकृति और पौधों से नफरत करने वाली चुड़ैल से अपने आधे पौधे बचा लिए. अब ये सब रामकहानी मैं आपको क्यों बता रहा हूँ??? असल में ये रामकहानी असली कहानी की पृष्ठभूमि मात्र है, असली कहानी तो अभी बाकी है.

प्रकृति और पेड़ - पौधों का हमने जितना विनाश किया है, उसका ही परिणाम है कि आज ऑक्सीजन के बिना जान से हाथ धोना पड़ रहा है. कोरोना के तांडव पर नजर डालें तो ज्यादा प्रदूषित शहरों और जगहों पर य़े आतातायी बनकर कहर ढा रहा है और मौत ऐसी जगहों पर ज्यादा हो रही है. गावों और प्रकृति की गोद में रहने वालें लोग आज भी मौज में जी रहे हैं. वहाँ कोरोना कुछ बिगाड़ ना पा रही, या फिर रुग्ण और बीमार लोग ही ऐसी जगहों पर लपेटें में आ रहे हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि वहाँ ऑक्सीजन की मात्रा हवा में इतनी है कि किसी को ऊपर से चढ़ाने की नौबत नहीं आती.

कोरोना  के इस कहर में या तो हम और आप अंतिम यात्रा पर निकल लेंगे या फिर माँ प्रकृति की कृपा और अपने शरीर को इससे लड़ने के लिए तैयार कर रखा होगा तो बच लेंगे. कोरोना दो अहम सबक दे रहा और पूरी दुनिया केवल और केवल एक पर ही मुद्दे पर सर फोडू चर्चा में लगी पड़ी है -

"अपने को ऐक्टिव और स्वस्थ रखने के लिए योग, एक्साइज, वॉक, दौड़कर अपने को चुस्त - दुरुस्त रखो, कोरोना कुछ ना बिगाड़ पायेगा."



हो सकता है य़े बातेँ सही हों - योगी, डॉक्टर, वैज्ञानिक, अनुसंधान में लगे लोग सब यही सलाह दे रहे हैं, तो गलत तो नहीं होगा. पर मेरी छोटी सी समझ ये कहती है कि य़े सलाह ठीक वैसे ही है, जैसे आस-पड़ोस में आग लगी हो और आप अपने घर का ऐसी (AC) चलाकर चैन की बंसी बजाइए और कूल रहिये. सोचिये जरा, आखिर इस मूर्खतापूर्ण तरीके से कब तक बचेंगे???

 

इस कोरोना के कहर के वक़्त का दूसरा अहम पहलू है - ऑक्सीजन.

जी हाँ, ऑक्सीजन. जैसे ही पता चला रिपोर्ट पॉजिटिव आई है, लग जाते हैं ऑक्सीजन की खोज में. आज का ट्रेंड यही है. धन्ना सेठों ने अपने घरों में बेवजह ऑक्सीजन सिलेंडर भरभर रखा हुआ है, जाने कब जरूरत पड़ जाए. और उधर हजारों लोगों की जान सिर्फ और सिर्फ दो घूंट ऑक्सीजन नसीब ना हो पाने की वजह से जा रही है. खैर, ये सदियों से होता आया है और आगे भी होता रहेगा. इस खास और आम की असमानता पर मेरा और आपका कोई बस नहीं. तो करें क्या??? वो करिए जो आपके बस में है. 


जी हाँ, पहला उपाय तो आप कर ही रहे हैं, जिसे जोरशोर से मिडिया के हर माध्यम से प्रचारित और प्रसारित किया जा रहा है. आज हम बात करेगे उस दुसरे उपाय की जिसकी बात कोई नहीं कर रहा. प्रकृति का पोषण कीजिये, प्रकृति का  रक्षण कीजिये. वृक्ष लगाएं, जंगल बढ़ाए... अब आप सोच रहे होंगे, क्या बकवास कर रहा हूँ. ये काम कोई एक दिन में होगा क्या???








मेरे - आपके जैसे लोग तो शहरों में कबूतर के खोप जैसे घरों में रहने को बाध्य है और पेड़ कहाँ लगाये भाई??? इसका भी उपाय है. आज ही शुरुआत कीजिए. घरों के अंदर, छतों और बालकनी में गमले में जितना हो सकें छोटे पौधें लगाए. तुलसी, घृत कुवांरी (एलोवेरा), पुदीना, लेमन ग्रास जैसे औषधीय पौधें लगाकर शुरुआत कीजिए. कई इंडोर प्लांट हैं - मनी प्लांट, स्पाइडर प्लांट, स्नेक प्लांट, पीस लिली, एरिका पाम, घृत कुवांरी (एलोवेरा), रबर प्लांट, बैम्बू प्लांट जैसे पौधे, घर के अंदर अच्छे से बढ़ते है और ऑक्सीजन लेवल भी बनाए रखते हैं. ऐसे पौधों को कमरे की खिड़कियों, बरामदे जहाँ जगह मिले लगाईये. अब भी अगर बात समझ नहीं आ रही तो शायद ये आखिरी मौका है आपके पास, इसके बाद फिर ऐसी सलाह मानने के लिए ना आपके पास समय होगा और ना जरूरत. क्योंकि मरे हुए लोगों की आत्माओं को ना ऑक्सीजन की जरूरत होती है और ना ऑक्सीजन सिलेंडर की. हो सकता है अभी ये पोस्ट बकवास लगे. पर आने वाले समय में जब कोरोना का कहर थोडा कम होगा, यही बात आपको वैज्ञानिक से लेकर हर कॉपी पेस्ट वाले समझा रहे होंगे.

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