Friday, August 30, 2019

बिन पानी सब सून


एक नए किस्म का झोल है आजकल यात्रा में और वो है - पानी.

 
मुंगेर कष्टहरनी घाट से मुंगेर गंगा पर बने रेल सह सड़क पुल का नजारा   
पहले जब ट्रेन सफर होता था या नानी घर का ही सफर होता था तो हम स्टेशन, बस स्टैंड पर बहते नल या फिर चापनल (Hand Pump) का पानी पी लेते थे और और आत्मा तृप्त हो जाती थी ठन्डे-मीठे पानी से, सच में. मुंगेर घाट से गंगाजी को जहाज से पार कर जाते थे, इस पार या उस पार घुग्नी-मुढ़ी के दुकानों की रौनक होती थी और हमें भी नानाजी या मामाजी खिलाते थे. पत्ते में मुढ़ी के ऊपर बिल्कुल गाढ़ी बेसन की ग्रेवी वाली घुग्नी और उसके ऊपर गर्मागर्म पकौड़े, जिसे यहाँ प्याजू भी बोलते हैं और ऊपर से हरी मिर्च और कटी प्याज. इतने से भी मन न भरता तो फिर से गर्मागर्म पकौड़े, आलू चोप और कभी-कभी लिट्टी-घुग्नी का भी दौड़ चलता, जब तक जहाज जाने के लिये तैयार न हो जाता खाते ही जाते. और खाने-पीने के बाद पानी तो चाहिए ही क्योंकि आँखों में आंसू भर जाते थे मिर्ची से और मिर्ची खाने की आदत थी न हमारी. तो घाट पर पानी मतलब - गंगा का बहता निर्मल पानी. प्यास बुझाने का एक मात्र यही साधन होता था. हम भाई बहन थे थोड़े चिकनफट, मतलब साफ-सुथरे रहने वाले और गंदे लोगों को तो देखते भी न थे. पास बैठने की नौवत आती तो खड़े ही सफर करना मंजूर होता था. ये सब बचपन की बात बता रहा हूँ. 

तो बाल्टी में गन्दा पानी बालू मिला देखकर भाई-बहन माँ की ओर देखते और माँ तो माँ होती है समझ जाती थी हमारी पीड़ा. फिर प्यार से पुचकारती और कहती थोड़ा पी लो, सब यहाँ यही पीते हैं. अब जब मिर्ची लगी हो और दोनों कानों से, नाक से धुआं निकल रहा हो और दोनों आखें आग की भट्टी ही जल रही हो तो फिर तोडा और ज्यादा क्या. दमभर पीते थे, और हाँ बीमार भी नहीं पड़ते थे, भले पानी कितना भी गन्दा दिखता हो.

पर अब वो हालत नहीं, हमने जमीन के अंदर के पानी को अपने ही  हाथों जहरीला बना डाला और अब यात्रा में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति कम से कम तीन लीटर बोतल बंद पानी खरीदते ही हैं, जो प्लास्टिक की बोतलों में बंद होता है. सच कहूँ, ये बोतलबंद पानी जिसे आप बड़े शान से खरीदकर पी रहे हैं, ज्यादातर पीने लायक ही नहीं है. अब पानी का स्टैण्डर्ड क्या है, नहीं है वो मामला छोड़ भी दें और ये मान ले कि सभी उच्च स्तरों के हैं तो भी ये बोतलें कहाँ - कहाँ पड़ी और पटकी गई, वो जगहें क्या हैजेनिक थी? कुत्ते इन बोतलों पर चढ़कर कई बार मूत चुके होते हैं, जिसमें हम और आप मुहँ लगाकर पीते हैं. पानी की बोतले खुली जगहों पर कई दिनों तक डायरेक्ट तेज धुप में पड़ी रहती हैं, जहाँ बोतल के प्लास्टिक के साथ पानी का क्या रिएक्शन हुआ? ये तो कोई विज्ञानी ही बता पायेगा, पर मुझे जहाँ तक समझ आता है जाहिर है ये प्लास्टिक गुलाबजल या शरबत तो न ही घोल रहा होगा पानी में. तो पैसे देकर शान से जहर ही ले रहे हैं, और प्रदुषण अलग फैला रहे हैं. जिसका परिणाम हमारे ही विनाश से होना है, जाहिर सी बात है.

तो समाधान क्या है?


पिछले कई यात्राओं से हमने बोतल बंद पानी लेना लगभग छोड़ दिया है. इस वर्ष जिंतनी भी यात्रायें हुई परिवार के साथ सबमें हमने घर से पानी ढोया, होटल के RO का पानी पिया, (वैसे RO भी मेरे लिये संदेह के घेरे में ही है). जिधर भी निकलना हुआ हमने एक-दो लीटर पानी बैग में रखा और उसे ही इस्तेमाल किया. यहाँ तक की नन्हें बच्चों के बैग में भी छोटी बोतल में पानी भर कर उसके कंधे पर टांग दिया, ताकी अपने हिस्से का पानी वो खुद ढोए. जहां कहीं भी RO या फिल्टर नजर आया उससे बोतल को फिर से भरा. मतलब पानी के खाली बोतल को जिसे आप एक बार पीकर शान से स्टेशन और सड़क पर उछाल देते हो न, उस बोतल की जान निकाल दी हमने भर-भर कर. हाँ आपकी तक स्टेशन और सड़क पर उसे उछालने का मजा न मिला मुझे, यही मिस किया. और मिस किया प्रदुषण फ़ैलाने में अपना योगदान. वैसे तो देखा जाये तो हम मानव भस्मासुर के खानदानी हैं, अब वो किससे रिश्ते में फूफा लगता और किसके रिश्ते में ताऊ ये तो पता नहीं, पर हैं सबके सब भस्मासुर की औलादें इसमें कोई दो राय हो ही नहीं सकती. खुद का नाश करने के लिये नित नए खोज करते रहते हैं.

Eureka Aquaguard Personal Water Purifier


खैर, इतना लेक्चर देने का कारण जे है कि हमने बोतल तो लेना छोड़ ही दिया और पानी ढोनेवाला काम करने लगे. कई साल पहले एक ट्रेकर मित्र जो आउटलुक ग्रुप में एक मैग्जीन के सब एडिटर हैं के पोस्ट पर एक बोतल देखी थी. जब वो किसी ट्रेक पर निकल रहे थे और उन्होंने बताया था कि इस बोतल में तालाब, झील, झरने का पानी भर कर भी पी सकते हैं. फिर पिछले साल ही एक और ट्रेकर मित्र ने इस बोतल के बारे में लिखा तो इसे लेने की इच्छा हुई और कुछ दिनों पहले ऑनलाइन Eureka Aquaguard Personal Water Purifier Bottle आर्डर किया, जो कल ही मिला है. जिसमें फ़िल्टर लगा हुआ है और कम्पनी दावा करती है कि सोलिड पार्टिकल्स के साथ साथ 99.9% कीटाणुओं से रहित पानी फिल्टर करके देगा. ये गंदे पानी को भी साफ कर पीने लायक बनाने का दावा करता है, अब इसका टेस्ट तो यात्रा में ही होना है.

वैसे तो हमारा परिवार पंच-प्यारे का है और सबके सब घुमक्कड़ है. आज तक मेरी शायद ही कोई आउटिंग परिवार के बिना हुई या फिर इनलोगों ने होने ही न दी. साल में पांच - छः - सात यात्रायें हो जाती है परिवार सहित, अब आप सोचिये अगर थोड़ा का पानी ढो लें तो कितने बोतलों की बलि होने से बचा सकते हैं. अगर जरूरत से ज्यादा हेल्थ के प्रति जागरूक हैं तो फिर यह बोतल भी एक उपाय है, पर्यावरण बचाने में अपने योगदान के लिये. अभी तो एक बोतल ही ली है, इसकी सफलता के बाद फिर आगे की रणनीति बनेगी कि यह सबके बैग में जाने लायक है या नहीं....

Thursday, August 15, 2019

चल घूम आएं


सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ,
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !!

फोटो: नैनीताल के रास्ते में कहीं (Yayavar Ek Traveler.com से साभार)

कुछ लोग मेरे घूमने - फिरने से जुड़े पोस्ट से बड़े आहत होते हैं और कई मित्र तो इतने जल - भुन जाते हैं कि बस देखकर मुहँ बना आगे बढ़ जाते हैं बिना लाइक, बिना कॉमेंट. और लगे हाथ बुदबुदा जाते हैं पता नहीं कहाँ से पैसे लाता है? 🤔

पर कुछ होते हैं थोड़े हिम्मत वाले, दिलेर 😝 टाइप. तो वो देखते हैं और फिर उलझन में पड़ जाते हैं कि आखिर इतना कोई कैसे घुमक्कड़ी कर सकता है? 🤔 तो ऐसे लोग कभी - कभी पूछ बैठते हैं अमा यार स्पॉन्सर कहाँ से लाते हो? 😜😂

तो आज मैं वही बता देता हूँ, शुभ अवसर है 15 अगस्त और रक्षा बंधन का और मोदीजी ने अपने देश के नाम संबोधन में भी सबको टारगेट प्लान दे दिया है 15 जगहों को तीन साल में घूमने का तो ऐसे लोग और बिलबिला रहें हैं. 😝😂

देखो भाई, मैं एक छोटी - मोटी नौकरी करता हूँ और जो छुट्टियाँ लोग पेट दर्द और सर दर्द में लेते हैं दफ्तर से मैं उसी छुट्टी में छोटी - मोटी घुमक्कड़ी करता हूँ. बाकी होली हो या दीपावली कौनो लेना देना नहीं. मतबल समझे, इसे कहते हैं कुर्बानी. बच्चे के स्कूल जाना हो या डॉक्टर को दिखाना हो बच्चों को वो सब गृहमंत्री देखती है. मने मुझे ऐसी छुट्टियाँ लेनी नहीं पड़ती, जिसके लिए बाकी दफ्तर के लोग अर्जी लगाते हैं. 😜😂     और इसके लिए गृहमंत्री को तैयार किया है कठिन ट्रेनिंग देकर, शादी के बाद से ही - स्वतन्त्र बनो.

इब मामला है पेसे का, आखिर घूमने - फिरने को पेसे तो चाहिए गुरु? 🤔तो वो भी पता ही दूँ.

अपन है बिल्कुल हटके, मने जे मैं नहीं कह रिहा हूँ 😜😂
जे हमरी श्रीमतीजी बोले हैं अपने सखियों से. 🤣😝 
तो भाई बात जे है मैं किसी पार्टी - वाटी में जाता नहीं, तो महंगे कपड़े, परफ्यूम, स्प्रे जरूरत न पड़ती मुझे और गिफ्ट लेना-देना भी होता नहीं. दारू पीता नहीं और न पब देखी कभी और कोई और ऐयाशी की कोई तलब न होती. मतलब कपड़े जरूरत के हिसाब से और सस्ते ही लेता अब. हाँ, एक ज़माना था, जब सबसे मंहगे ब्राण्ड पहनता था. पर अब एक टी शर्ट ही कई साल घसीट लेता हूँ, गृहमंत्री कई टी शर्ट और जींस की सर्जरीकल स्ट्राइक कर चुकी है- बेरंग हो गए, फटने लगे करके पर अपने को कोई फर्क़ पड़ता नहीं.

तो ये जो आप ऐयाशीयों पर ख़र्चते हो न, वही मैं घूमने पर ख़र्चता हूँ. 😜😍और एक मामला है, मुझे रुपये पैसे का कोई मोह - माया है नहीं कि माल आया तो तहखाने में दबा दो. 😝😂 अबे रुपये - पैसे खर्च करने के लिए होते हैं. गधे की तरह कमा क्यों रहे हो जब उसे खुद भी भोग ही न पा रहे?

तो इतना लिखने का मतबल जे है कि थोड़ा सोचो, विचारों, काहे कुंए के मेढक बने हो? और यही वजह है डिप्रेशन में जाते हो, अपनी समस्याओं को लेकर बैठ रोते रहते हो दिन-रात. नींद नहीं आती तो नींद की गोली ले रहे, ब्लड प्रेसर बढ़ रहा आदि-आदि. और डॉक्टर साहब को जाकर तहखाने से निकाल - निकाल माल पहुंचाते हो कि वो ठीक कर देगा. कुछछू नै कर पाएगा आपका डाक्टरवा, बस माल समेटता रहेगा जब तक जिन्दा रहोगे. क्योंकि इलाज पत्ते का कर रहे हैं और बीमार है जड़ मन. उसे घुमाओ - फिराओ, मौज - मस्ती करने दो, मन मयूरा को नाचने दो. अब नाचने दो मतलब शादियों में होने वाला नागिन डान्स मत समझ लेना. 😜😂
कुछ समझ आया हो तो बताना, बड़बड़ाते आगे मत निकल जाना, बिना लाइक और कॉमेंट किए. और जिन्हें और मिर्ची लगी हो, जाओ दारू पियो और मरो. अब अगले जन्म में ही आदमी बनने की कोशिश करना.
😝😜😂

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