Friday, June 8, 2018

गावों का विकास

गावों का विकास

एक लंबे अर्से बाद  ननिहाल जाना पड़ा बीमार मामू को देखने के लिये। पूर्णियां से लगभग 45 किलोमीटर दूर  के गाँव में। यह लंबा अर्सा कुछ ज़्यादा ही लंबा है, लगभग 21 - 22 साल। नाना - नानी के स्वर्गवासी होने के बाद से कभी मेरा आना नहीं हुआ। 21 - 22 साल पहले यहां आने के लिये, बनमनखी से कोई सड़क नहीं थी, लोग 6-7 किलोमीटर नहर के किनारे पगडण्डी पर चलकर जाते थे या बैलगाड़ी थी वो भी चंद लोगों के पास। यही एक मात्र साधन था आने - जाने का। पर बिहार के विकास ने इस गाँव को भी नहीं छोड़ा और अब यहाँ भी बिजली, सड़क, दुकानें सब कुछ है, दुकाने पहले भी थी, पर सिर्फ छोटी - मोटी जरूरत का सामान और खाने पीने का सामान के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता था, पर अब मोबाइल, सीमेंट, बालू, हार्डवेयर, सब्जी, मिठाई, जूस, चाय सब कुछ है। गाँव से सीधी बस सेवा पूर्णियां और कटिहार के लिये दिनभर और बनमनखी के लिये ऑटो भी चलती है। ये तो बस थोड़ा परिचय था ताकि मेरी बात समझने में आसानी हो।

अब आइये सीधी बात पर। मुझे 21 - 22 साल बाद आने के बाद जो बदलाव दिखाई दिया उससे आपको पहले ही अवगत करा दिया, बिजली, सड़क, दुकानें सब कुछ है, अब यहाँ। दो दिन बिताने के बाद जो सबसे बड़ा विकास मुझे दिखाई दिया, वो असल विकास न होकर गाँव का पतन था। अब आप कहेंगे की विकास तो दिख रहा है।  हाँ जनाब, विकास तो दिख रहा है, पर लोगों का जीवन शैली वही है, पर दिखावा बढ़ गया। सरकार ने इंदिरा आवास योजना के तहत घर बनाने के लिये पैसे दिये, पर लाभान्वित और दलालों की नीयत साफ नहीं होने की वजह से दोनों ने मिल बाँट खाया, और जिंदगी वही 21 - 22 साल पहले वाले झोपड़ी में बीता रहें हैं, ये अलग बात है कि झोपड़ी में गैस चूल्हा, टीवी, मोटर बाइक सब है।

अब आइये गाँव के असली विकास पर नज़र डालें। सड़क और आनेजाने की सुविधाएं बढ़ गयी, जिसका असर ये हुआ कि शहर की बुराई ने यहाँ अपना पाँव फैलाया। बिहार में नीतीश जी ने शराबबन्दी कर रखी है, पर क्या कभी मुख्यमंत्री महोदय ने खुद पड़ताल करने की कोशिस की, शराबबन्दी असल में है भी या सिर्फ़ एक शिगूफा है शराबबन्दी? पूरा गाँव शराब (महुआ) के गिरफ्त में है। क्या गाँव के धनाढ्य, क्या निर्धन। जो भी मिला, दिन या दोपहर, शाम या रात भरपूर कोटे के साथ, नशे में धुत। गाँव में लोग इसकी वजह से अपना सेहद के साथ परिवार का सत्यानाश कर रहें है।

21 - 22 साल के बाद मेरे आगमन के वजह से जो मिला उसने पूछा क्या बदलाव नज़र आया। मुझे तो बस लोगों का पतन ही दिखाई दिया, विनाश ही चहुओर नज़र आया। जो भी रोजगार के अवसर बढ़ने से आमदनी बढ़ी, वो सब शराब की भट्टी, प्यासी और अतृप्त आत्मा की तरह पी रही है। यही है बिहार के असली विकास की कहानी और शराबबन्दी का असली सच। 

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