Sunday, July 12, 2020

मोदी जी के निजीकरण पर बेहतरीन गीत...

मोदी जी के निजीकरण के शानदार निर्णय और काम पर गाया गया बेहतरीन गीत. 
छोटा सा गीत है ... आप भी सुनिए, शायद समझ में आये.



Friday, July 10, 2020

क्या आप भी ऐसी ही हालत में जाना चाहते हैं?

अंधों की बस्ती में फिर आइना बेचने आया हूँ

भागलपुर शहर में पहले ही कोरोना का तांडव शुरू हो चूका है. बिना किसी मुहैया सुरक्षा उपायों के मार्च से इमरजेंसी ड्यूटी पर काम पर लगे भागलपुर रेलवेकर्मीयों में से दो दिनों में दर्जन भर लोग कोरोना की चपेट में आ गए हैं. पर भागलपुर में रहने वाले किसी भी रेलवेकर्मी की अभी तक जाँच नहीं की जा सकी. भागलपुर के सभी संक्रमितों की हालत सीरियस, प्रशासन सो रहा है. ना ही टेस्ट किया जा रहा और ना ही हॉस्पिटल में भर्ती की गई. सबके-सब बेबस से मायागंज और सदर हॉस्पिटल के चक्कर काट - काट कर आखिर घर वापस आ गए. जमालपुर से आने वाले एक कर्मी की मुंगेर में की गई टेस्ट रिपोर्ट पोजेटिव आई. संक्रमितों के परिवारों वालों का हाल बेहाल है, सबके सब हिम्मत हार रहे हैं. रोना-ढोना शुरू हो चूका है. 

हॉस्पिटल और सरकारी डॉक्टर संक्रमितों के टेस्ट करने में इतना खौफ खा रही है. जबकि ये डॉक्टर सामान्य सर्दी खांसी वालों को भी बिना पीपीई किट पहले और दो - दो ग्लब्स एक के ऊपर एक घुसेड़े देखते तक नहीं. इतनी तैयारी के बाद भी देखते हैं तो कम से कम 15 फिट दूर से. ऐसे डॉक्टर कोरोना पीड़ितों को हॉस्पिटल में बचाते कैसे हैं, यही तमाशा देख कर मुझे हंसी आती है... मुझे हंसी आती है जब समाचार आता है .... "कोरोना को हराने वालों को ताली बजाकर हॉस्पिटल से विदा किया गया." सबकुछ बस मिडियावादी होकर रह गया है. लोग बचते अपने दम पर हैं और नाम अपने चैम्बर से ना निकलने वाले डॉक्टर कमा रहे हैं.

सोचिये...

फोन पर कोरोना संक्रमितों की मदद का भरोसा दिया जाता है. भरोसा देने वाले विज्ञापनों पर कई करोड़ खर्च कर दिए गए, पर संक्रमित मरीज जब खुद चलकर हॉस्पिटल पहुंचता है. तब वहाँ उसे ना कोई डॉक्टर मिलता है और ना कोई सिस्टम. कोरोना संक्रमित भटक रहा यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ, पर कोई टेस्ट तक करने वाला नहीं. अगर गलती से कोई डॉक्टर या कर्मी मिल भी गया तो ये कंफ़र्म होने पर कि ये कोरोना संक्रमित हो सकता है, उसे Home Quarantine रहने को बोल हॉस्पिटल से भगा देते हैं. भागलपुर में हॉस्पिटल के साथ प्रशासन भी अति निकम्मा और आलसी है. हालत अति दयनीय होती जा रही है, पर टेस्ट करने में भी कोताही. जैसे इनके बाप का पैसा खर्च हो रहा हो. बिहार में कोरोना टेस्ट सिर्फ VIPs, नेता या फिर उसने चमचे का हो रहा है.

अब आप खुद सोचिये... क्या आप भी ऐसी ही हालत में जाना चाहते हैं? 

अपने परिवार के खातिर ही सही, लगाम लगाइए अपनी मौज - मस्ती और बाहर निकलने की प्रवृति पर. अति आवश्यक होने पर या काम पर जाना हो तो सुरक्षा के सारे उपायों का पालन कीजिये. इस पोस्ट को पढ़िए और सतर्क रहिये- कोरोना और हम. वरना ले डूबेगा ये कोरोना. अभी भी वक्त है सुधर जाओ, वरना सिधारने की नौबत आ जाएगी. जिन्हें लगता है कोरोना सिर्फ सर्दी-खांसी है. उनके लिए बस इतना कहना चाहूँगा. 
बस अपना या अपने अपनों के बारी आने का इंतजार करिए. जिस दिन आपकी बारी आ गई, समझ आ जायेगा आखिर कोरोना किस बला नाम है. 

मुझे पता है जब आपने आज तक दी मेरी चेतावनी नहीं मानी, तो आज इस पोस्ट से भी किसी कोई कोई फर्क पड़ने वाला नहीं. तभी तो शीर्षक रखा है- "अंधों की बस्ती में फिर आइना बेचने आया हूँ".  

Friday, July 3, 2020

भागलपुर का दुर्भाग्य बनेगे व्यापारी वर्ग


भागलपुर में अब हुआ है खेल शुरू कोरोना का. शहरी आबादी अब चपेट में आना शुरू हो गई है. पर लोगों को कारण समझ में नहीं आ रहा.

अरे महामुर्खों ...
कारण अब सिर्फ एक है ब्रह्मपुत्र मेल.
व्यापारी समाज अपने कालेधन को ढ़ोंने के लिए जिस तरह रेलवे और सरकार पर भागलपुर से सारे ट्रेन को चलाने का दबाव बना रहा है.... उसका परिणाम भागलपुर क्षेत्र तो भुगतेगा पड़ेगा, व्यापारी समाज भी बचने वाले नहीं. एक ट्रेन जो भागलपुर से मात्र गुजर रही है, तो उसने शहरी क्षेत्र में इतना कोरोना का प्रसाद बांटा है कि आज हर मारवाड़ी मोहल्ले में दो - चार घर कोरोना संक्रमित है. वो भी सरकारी खाते में. बिना हिसाब किताब वाले कोरोना मरोजों को तो यमराज ही पहचान सकते हैं, बिहार सरकार के कूबत से बाहर है.
भागलपुर बस कुछ दिन और चैन से जी लो. इसके बाद व्यापारी संघ और बड़े पहुँच वाले व्यापारियों के पाप को पुरे शहर को ढोना है. व्यापारी संघ और बड़े पहुँच वाले व्यापारियों ने सरकार को डंडा कर - कर भागलपुर से लगभग सभी ट्रेनों के चलने का रास्ता साफ कर दिया है. हफ्ते - दस दिन में सभी ट्रेन चल पड़ेगी... ये समाज अपने कालाधन से व्यापर को गति दे सकेगे, जो लॉक डाउन की वजह से ऑनलाइन से एक नंबर से धंधा करने को विवश हैं. पर पूरा शहर कोरोना के गिरफ्त में होगा.
आओ कोरोना, यहाँ बहुत जाने वाले तैयार बैठे हैं. ले जाओ.
बोलो कालेघन वालों की जय हो!

Tuesday, June 30, 2020

नई दिशा

नई दिशा

पहले अच्छी तरह से
हडडी–पसली तोड़ दो.
खड़ा न हो सके
ऐसा निचोड़ दो.
टूटकर पंगु हो जाए
तब देश को नया मोड़ दो.

मुफ्तखोर भारत

मोदीजी का देश के नाम लॉक डाउन के घोषणा से लेकर अब तक का छठा संबोधन, अभी-अभी मोदीजी के वेबसाइट पर सुना. सुनकर ये तो पता चल गया कि सरकार अब ये सांत्वना नहीं दे रही कि कोरोना इस महीने चला जाएगा या अगले महीने चला जाएगा. मतलब सरकार अब ये समझ चुकी है, देश की हालत आने वाले दिनों में और भी बदतर होने वाला है.

पर इसके लिए जिस तरह से सरकार लोगों को मुफ्तखोरी की रबड़ी बाँट रही है, ये अर्थव्यवस्था को बिलकुल ही पंगु बना देगा और लोगों को कामचोर. हमारा ग्रामीण क्षेत्र पहले से ही मजदूरों और कामगारों की कमी झेल रहा. ग्रामीण मजदुर या तो पलायन कर रहे हैं या फिर मुफ्त की रोटी मचान पर बैठकर तोड़ रहे हैं. इस तरह से लोग और निकम्मे और आलसी बनेंगे. जब लोगों का पेट बैठ-बिठाए ही भरता रहेगा, तो फिर कोई क्यों काम करे. 

वाह मोदीजी डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ, सेना, रेलवे, सफाई कर्मी जो इस कोरोना काल में जान हथेली पर लेकर काम कर रहे हैं, उन्हें तो आप उपहार में सैलरी पर कैंची चला रहे हो और यहाँ 90 करोड़ लोगों को मुफ्त की रबड़ी बाँट रहे हो, जो दो रूपये किलो की राशन खाकर पहले ही निकम्मे और कामचोर हो चुके हैं. आत्मनिर्भर भारत बने ना बने, निकम्मा भारत तो जरुर बनेगा.
जय हो... जय हो. 


देश की हालत क्या होगी, यही सोचकर दशकों पहले लिखी मेरी ये कविता आज सहसा ही याद हो आई. ये 2002 में उस समय के दिग्गज हिंदी पत्रिका में ऑनलाइन छपी थी. 


नई दिशा

पहले अच्छी तरह से
हडडी–पसली तोड़ दो.
खड़ा न हो सके
ऐसा निचोड़ दो.
टूटकर पंगु हो जाए
तब देश को नया मोड़ दो.

-अंशुमान चक्रपाणि 
(http://hindinest.com/kavita/2003/034.htm)

Sunday, June 28, 2020

सबसे बड़ा आतंकवादी

क्या आप जानते हैं आज देश का सबसे बड़ा दुश्मन कौन है?

देश का सबसे बड़ा दुश्मन आज आतंकवादी, जेहादी, पाकिस्तान, नेपाल या चीन नहीं...
आज देश का सबसे बड़ा और खतरनाक दुश्मन है आपके और हमारे शहरों, नगरों, गावों के बाजारों, सड़कों, गलियों और समाज में बिना सुरक्षा उपायों और मास्क के घूमते-मंडराते लोग. यही वो लोग हैं, जिन्होंने हमारा और आपका जीना हराम कर दिया है. यही वो लोग हैं जिनकी वजह से कोरोना नित नए चरम पर जा रहा है. बॉर्डर पर जो भी देश के दुश्मन हैं, वो तो साफ दिख रहे हैं और उनसे हमारे बहादुर सैनिक निपट ही लेंगे. पर हमारे बीच जो ये कोरोना आतंकवादी घूम रहे हैं, इसे तो सरकार गोली भी नहीं मार रही.
सावधान रहिये ऐसे लोगों से. यही देश के सबसे बड़े आतंकवादी हैं... कोरोना आतंकवादी.

Sunday, June 21, 2020

आज के दिन सब योगी हैं !

आज पूरी दुनिया में दो घटनाएँ एक साथ घट रही है.
पहला तो आज अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस है और दूसरा साल का सबसे बड़ा सूर्यग्रहण चल रहा है. इस ग्रहण में हम 900 साल के बाद वलयाकार सूर्यग्रहण को देख सकेगें. अगला सूर्य ग्रहण शायद भारत में ग्यारह साल बाद दिखाई देगा, जो 21 मई 2031 को होगा, जबकि 20 मार्च 2034 को पूर्ण सूर्यग्रहण देखा जाएगा.
आज के दिन सब योगी हैं. योगी, भोगी, रोगी और भोयोगी सभी योग दिवस की शुभकामनाएं दें रहे हैं और अपनी फोटो सबके साथ शेयर कर रहे हैं. पर मेरे लिए 21 जून एक सामान्य दिन की तरह ही है. सूर्यग्रहण चल रहा है यही विशेष है. योग तो जीवन का हिस्सा ही है. फिर इसके लिए एक दिन योग दिवस मनाने की जरूरत मुझे महसूस नहीं होती. हाँ, ये दिन उनके लिए विशेष हो सकता है, जिनको पुरे साल इस दिन का इंतजार रहता है. ताकि योगाभ्यास करते हुए कुछ फोटो लेकर मित्रों को दिखा सकें. मतलब बस एक दिन योगाभ्यास कर ऐसे लोग पुरे साल उर्जा प्राप्त करते हैं.
एक दिन योग दिवस मनाकर, जीवन में कुछ हासिल होने वाला नहीं. इस योग दिवस को सफल तभी कहा जाएगा, जब हम इसे अपने दैनिक जीवन में स्थान दें. योग को जीवन का हिस्सा बनाइये, योग आपको निर्मल और स्वस्थ शरीर प्रदान करेगा.
जय हो !

Thursday, June 18, 2020

चलो Tik Tok... Tik Tok करें

लद्दाख के अभियंता और जाने-माने शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuk).

चीन के साथ 44 दिनों से बढ़ते तनाव के बीच, लद्दाख में सोमवार को हुए खुनी संघर्ष में 20 भारतीय जवानों ने अपनी बलिदान दे दी. सेना के जवान दुर्गम क्षेत्र में जान की परवाह न कर भी डटी रहती है, ताकि हम सुरक्षित रह सकें. ताकि हम चायनीज TikTok पर वीडियों बना सकें, चाइनीज मोबाइल खरीद के साथ सस्ते सामान खरीदकर चीन की झोली भर सकें. उसी पैसे का इस्तेमाल दुष्ट चायनीज सरकार अपनी दुष्ट विस्तारवादी नीति के लिए कर सके. अपनी विस्तारवादी नीति के कारण ही आजादी के बाद से वो हमारी हजारों किलोमीटर जमीन हथिया चूका है, अब जब उसे कड़ा जवाब मिल रहा है. उसके डर से हमारे जवान पीछे नहीं हट रहे तो हमारे जवानों को धोखे से क़त्ल करने के लिए भिड़ा, ये अलग बात है कि हमारे जवानों ने एक के बदले दो को लुढका दिया और जैसे को तैसा जवाब दिया.  पर आप जारी रखों अपना TikTok. हाँ, अपना नया फोन भी चायनीज लेने की जो प्लानिंग कर रखी है. 
ले लो... हाँ... हाँ ले लो. अरे, सेना के जवान ही मरे हैं, हम थोड़े मरे रहे हैं. जो सेना और देश के बारे में सोचें. 


लद्दाख के अभियंता और जाने-माने शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuk) ने अपने यू ट्यूब चैनल पर चाइना के सामानों के बहिष्कार की अपील की थी. जिसका परिणाम ये हुआ कि चीन ने घबराकर गूगल प्ले स्टोर से चायना की एप्प्स को खोजकर बताने वाले भारतीय एप्प को हटवा दिया. पर इन सबसे आपको और हमको क्या लेना है. हम थोड़े ना सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuk) को जानते हैं. हमें क्या करना उनके बहिष्कार की अपील की. आप लगे रहो अपने TikTok वीडियों पर. सोनम वांगचुक को कोई कामधंधा नहीं है, जो देश के बारे में सोचते रहते हैं. आप बढ़िया वीडियों बना रहे हो, लगे रहो. 
देश रहे या जाए, हमें क्या करना. 
अपना TikTok वीडियों और चायना का फोन जिंदाबाद. 


अब कई बहुत ज्यादा दिमाग वाले लोग ये भी कहेंगे कि सरकार तो कुछ कर नहीं रही हमारे बहिष्कार करने से क्या होगा. तो आपको बता दूँ सरकार क्या करेगी और क्या नहीं वो सरकार का मामला है और विदेश नीति के साथ व्यापार नीति का मामला है. पर हमें चीनी सामान के बहिष्कार करने में कोई नीति रोक नहीं सकती. वैसे बीएसएनएल के बाद रेलवे ने भी चीन की कंपनी के साथ 471 करोड़ का करार रद्द करने का फैसला ले लिया है है. रेलवे ने कहा है की काम की रफ्तार धीमी होने के कारण कॉन्ट्रैक्ट को रद्द कर रहे हैं. पर इससे हमें क्या करना है. हम तो Tik Tok बनाने में मस्त और व्यस्त हैं. वैसे कम अक्ल होने का यही तो प्रमाण हैं.

किसने कहा जो चीनी आइटम ले रखा है उसे तोड़ दो, फोड़ दो. अरे शुरुआत तो कर सकते हैं. चीनी सामानों को ना तो कह सकते हैं. आज एप्प को फोन से हटाने से शुरू करेंगे तो धीरे-धीरे फोन और अन्य उपकरण खरीदने के पहले ये देखने की आदत भी पड़ जायेगी कि वो चाइनीज ना हो. ऐसा भी नहीं है कि हम इन तीन फुटियें के सामान के बिना जीवन ही नहीं जी सकते. पर नहीं हमें क्या करना है. सबकुछ ऐसी ही चलता रहता है, अपनी ख़रीददारी जारी रखिये. सेना के जवान ही मरे हैं, हमें क्या करना.

हमारी खुफिया एजेंसियों ने 50 चाइनीज ऐप्स की लिस्ट जारी की है. जिन्हें देश और आपके सूचनाओं के लिए भी खतरनाक बताया गया है. इसमें सबसे पहले नंबर पर वही TikTok है, जिसमें मटक-मटक के आप वीडियों बना अपने मानसिक दिवालियेपन को दुनिया के सामने, खुद ही रख रहे हो. पर इससे भी हमें क्या करना है, चलिए हम फिर से मटक-मटक के एक नया वीडियों बनाते हैं. अरे उसी TikTok पर, जिसकी आपको लत पड़ चुकी है. दिमाग के अन्दर सिर्फ और सिर्फ घासफूस ना भरी हो, तो आप भी अपना मोबाईल चेक कर इस लिस्ट से मिला लो. उसके बाद क्या करना है वो आप खुद दो मिनट आँखें बंद कर सोचों, सोचो उस निहत्थे शहीदों के बारे में जिन्हें तीन फुतिये लोगों ने छल से मार डाला. जवाब खुद ब खुद मिल जायगा. अंत में बस एक प्रसिद्द शेर से अपनी बात ख़त्म करता हूँ-
कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों.

खुफिया एजेंसियों ने इन 50 खतरनाक चाइनीज ऐप्स की लिस्ट जारी की :

टिक-टॉक (TikTok)
हेलो (Helo)
यूसी ब्राउजर (UC Browser)
यूसी न्यूज (UC News)
शेयर इट (Sharit)
लाइकी (Likee)
360 सिक्योरिटी (360 Security)
न्यूज डॉग (NewsDog)
शिन (SHEIN)
विगो वीडियो (Vigo Video)
वी चैट (WeChat)
वीबो (Weibo)
जूम (ZOOM)
वीबो लाइव (Vibo live)
क्लब फैक्टरी (Club Factory)
शेंडर  (Xender)
ब्यूटी प्लस (BeautyPlus)
क्वाई (Kwai)
रोमवी (ROMWE)
फोटो वंडर (Photo Wonder)
एपीयूएस ब्राउजर (APUS Browser)
वीवा वीडियो (VivaVideo)
क्यूयू वीडियो इंक (QU Video Inc)
परफेक्ट कोर्प (Perfect Corp)
सीएम ब्राउजर (CM Browser)
वायरस क्लीनर (Virus Cleaner)
हाई सिक्योरिटी लैब (Hi Security Lab)
एमआई कम्यूनिटी (Mi Community)
डीयू रिकाॅर्डर (DU recorder)
यूकैम मेकअप (YouCam Makeup)
एमआई स्टोर (Mi Store)
डीयू बैटरी सेवर (DU Battery Saver)
डीयू ब्राउजर (DU Browser)
डीयू क्लीनर (DU Cleaner)
डीयू प्राइवेसी (DU Privacy)
क्लीन मास्टर (Clean Master)
बैदू ट्रांसलेट (Baidu Translate)
बैदू मैप वंडर कैमरा (Baidu Map Wonder Camera)
ईएस फाइल एक्पलोरर (ES File Explorer)
क्यूक्यू इंटरनेशनल (QQ International)
क्यूक्यू लाॅन्चर (QQ Launcher)
क्यूक्यू सिक्योरिटी सेंटर (QQ Security Centre)
क्यूक्यू प्लेयर (QQ Player)
क्यूक्यू म्यूजिक-क्यूक्यू मेल (QQ Music QQ Mail)
क्यूक्यू न्यूज फीड (QQ NewsFeed)
वी सिंक (WeSync)
सेल्फी सिटी (SelfieCity)
क्लैश ऑफ किंग्स मेल मास्टर (Clash of Kings Mail Master)
एमआई वीडियो काॅल-शाओमी (Mi Video call-Xiaomi)
पैरेलल स्पेस (Parallel Space)

Sunday, June 14, 2020

सूसाइड और हमारा समाज


एक्टर सुशांत सिंह राजपूत का इस तरह सूसाइड कर लेना, बहुत दुखद खबर है. श्रीमती ने अभी बताया, उन्हें भी बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाते वक्त शायद वीडियों दिख गया. मैं तो समाचारों से मतलब ना के बराबर ही रखता हूँ. समाचार ऑनलाइन सर्च किया तो पता चला कई हित फिल्मों में अभिनय कर अपनी धाक जमा चुके थे. मैं फ़िल्में देखता नहीं, इसलिए नाम से भी वाकिफ नहीं था. हाँ, यहाँ-वहाँ फिल्म के पोस्टर पर कई बार ये चेहरा देख चूका था.

डिप्रेशन या अवसाद किस कदर लोगों को लील रहा है. ये इसका उदाहरण है. कोरोना काल में लम्बे समय तक घरों में बंद होने से इसे और सबल मिला. एक्टर सुशांत सिंह राजपूत जैसे एक्टर का ऐसा करना, दर्शाता है कि लोग अपनी स्ट्रेस को मैनेज नहीं कर पा रहे हैं. लोगों को ये पता नहीं कि हाई लेवल के स्ट्रेस को कैसे मैनेज करें. कोरोनाकाल के लॉक डाउन में कई लोगों को फ्री सलाह दी. कई मित्रों ने इसका फायदा उठाया और आज खुश हैं. बार-बार धन्यवाद कहते हैं. अवसाद से निकलने और जीवन के हारते पल में बस एक तिनके का सहारा भी काफी होता है. 

हम सबकुछ करते हैं, सीखते हैं. पर भारत में कुछ चीजों पर कोई सीख ना समाज से मिलती है और ना परिवार से. एजुकेशन सिस्टम की तो बात करनी ही बेकार है. भारत में सबसे पहली चीज, जिसपर कोई बात करना नहीं चाहता वो हैं पैसा. मतलब मनी मैनेजमेंट पर कोई बात करना नहीं चाहता. पैसे पर बात करना भारत में एक टेबू है. जिस तरह से सेक्स पर बात करना एक टेबू है. सेक्स और उससे जुडी समस्या भारत में सबसे गंभीर रूप इसलिए ले लेती है. कोई खुलकर इसपर बात करना तो क्या, सोचना तक नहीं चाहता.

उसी कड़ी में स्ट्रेस भी एक विषय है, जो ऊँचे-ऊँचे खवाब, कामयाबी और भागदौड़ भरी जिन्दगी में बेहिसाब बढ़ रही है. पर स्ट्रेस मनेजमेंट कैसे करें, ये अधिकतर लोग समझ नहीं पाते. मैं हमेशा इस बात पर बल देता हूँ की हर इंसान को अपने अन्दर दबे पड़े हॉबी, हुनर, शौक की खोज करनी चाहिए. जिसे एक जूनून की तरह पालना चाहिए. बिना किसी शौक या हॉबी और हुनर क्या इन्सान को सच में इन्सान कहा जा सकता है. मैं हमेशा कहता हूँ, ऐसे इन्सान दोपाया जानवर से ज्यादा कुछ नहीं. कई लोगों को बहुत बुरा है. पर सच्चाई यही है. यही बेहिसाब बढ़ते स्ट्रेस को मैनेज करने का मैजिक फार्मूला है. इसके साथ एक्टिव लाइफ स्टायल जीना भी बेहद जरुरी है. हमेशा एक्टिव रखिये खुद को. एक्टिव पर्सनालिटी के लोग कभी स्ट्रेस से डिप्रेशन में नहीं जा सकता. डिप्रेशन अधिकतर सुस्त और आलसी लोगों को अपने चपेट में लेता है. पुरे दिन बिस्तर पर पड़े रहना, टीवी के सामने बैठे रहना ये सब सुस्त और आलसीपन के ही लक्षण हैं.

योग को जीवन का एक हिस्सा बनाए. योग जीवन के हर मोड़ पर, हर असफलता को अपनाना सिखाता है. योगाभ्यास से स्ट्रेस और डिप्रेशन को बहुत ही आसानी से मैनेज किया जा सकता है. योग और वाक से स्ट्रेस लेवल आश्चर्यजनक रूप से कम किये जा सकते हैं. पर सबसे जरुरी बात ये है की इसके लिए कदम आपको खुद ही उठाना पड़ेगा. ये सब कोई दूसरा आपके लिए नहीं करेगा. जीवन लीला समाप्त कर लेना भी बहुत आसान फैसला नहीं है. मैं तो मानता हूँ सूसाइड करने के लिए भी बड़ा कलेजा चाहिए. इसी हिम्मत को अगर जीवन के उस स्ट्रेस, अवसाद, परेशानी से लड़ने में लगा दें, तो जरुर कामयाबी मिलेगी. पर लोग हमेशा शार्टकट की ओर भागते हैं और जीवन लीला समाप्त कर लेना ही आसान रास्ता नजर आता है.


अपने लाइफ स्टाइल को ठीक करिए, एक्टिव रहिए. जीवंत और एक्टिव बनने के साथ परिस्थिति के साथ चलना सीखिए. अपने हॉबी, शौक की खोज करिए अगर आज तक नहीं खोज पाए. हर किसी का कोई ना कोई शौक या हॉबी होता है, जो जीवन के भागदौड़ में कहीं दम तोड़ देते हैं. आपकी शौक या हॉबी मूड बूस्टर की तरह होते हैं, जो आपको रिचार्ज कर देते हैं. 

श्रीमद्भागवतगीता को अपनाइए. मेरा तो मानना है गीता MBA, इंजीनियरिंग जैसे हाइयर एजुकेशन में एक विषय के रूप में शामिल होना चाहिए. कोशिश कीजिये, एक गीता हमेशा आपके पास हो. डायरी से भी छोटी साइज में गीता प्रेस की गीता हिंदी, अंग्रेजी के साथ कई अन्य भारतीय भाषों में उपलब्ध है. आज भी गीता उतना ही सबल आपको और हम सबको दे सकता है, जितना युध्भूमि में इसके ज्ञान ने अर्जुन को सबल दिया था. इसे जीवन का अंग बनाइये, पढ़िए. गीता जीवन के हर मोड पर रास्ता दिखाने में सक्षम है. 

Friday, June 12, 2020

स्लिम और फिट शरीर पाने का राज.

आश्रम जीवन और मैं 

आज एक दिलचस्प वाक्या आपलोगों के सामने रखना चाहता हूँ.

कुछ लोग ही शायद जानते हों मेरा जुड़ाव योग से दो दशकों से सीखने और सीखाने से रहा हैं. वैसे तो पिताश्री मेरे जन्म के पहले से ही योग के दो बड़े स्तम्भ शिवानंद आश्रम, ऋषिकेश और बिहार योग विद्यालय, मुंगेर से डायरेक्ट जुड़े रहे. और परिस्थितयों बस मैं सन 2001 में बिहार योग विद्यालय से, दिल्ली के भौतिक जीवन और आईटी में महारथ हासिल करने और काम करने के बाद कनेक्ट हुआ. बचपन में आना-जाना होता रहा, पर वो सिर्फ एक आउटिंग होती थी मेरे लिए. कुछ साल आश्रम के कठिन अनुशासन में रहा. वही रहते हुए इच्छा हुई तो योग मनोविज्ञान में डिप्लोमा कर लिया. योग पिताश्री के लिए जीवन पद्धित थी और उसे मैं भी अपनाने की कोशिश करता रहता हूँ. इतना बताना इसलिए जरुरी था, ताकि बाकि बात आपको समझ आ सके.

योग सीखने के लिए आज तक जो भी लोग मुझ से जुड़े, पहली मुलाकात में दो-चार को छोड़कर सबकी पहली इच्छा यही होती कि वो मेरे जैसे फिट और स्लिम दिखें. अब आप कहोगे दो-चार को छोड़कर क्यों ? तो बात ये थी कि वो दो-चार लोग पहले से ही फिट और स्लिम थे और ओवरआल वेलबीइंग के लिए योग से जुड़े थे. दिल्ली हो या भागलपुर सबके सब हाई सोसाइटी वाले रहे. मेरा अनुभव रहा है, मध्यम वर्ग या निम्न वर्ग के लोग सिर्फ रोग ग्रसित होने पर ही योग की शरण में आता है. उसके पहले उनके लिए योग बकवास है.

फिर बात पहुँचती खानपान पर और लोगों का आंकलन होता “आप तो सिर्फ खिचड़ी और दलिया खाते होंगे”, इसलिए इतने फिट और स्लिम हैं. पहली मुलाक़ात में सिर्फ इतना कहता एक-एक स्टेप फॉलो करो और फिर आपकी इच्छा जरूर पूरी होगी. हो सकता है खानपान में थोडा जोड़-तोड़ करना पड़े पर मैं ये मत खाओ, वो मत खाओ नहीं कहूँगा. मैं खुद एक फूडी हूँ. लोगों को लगता, वाह बैठे बिठाए अलादीन का चिराग हाथ लग गया. खूब खुश हो जाते. 

फिर अगले सेशन में बात होती, क्या करना है.

· रात को जल्दी सोना होगा... (अगर रात में काम पर जाते हों तो एक अलग बात है.)
· सुबह सूर्योदय के पहले या कम से कम साथ उठाना होगा.
· सुबह या शाम कम से कम 4-5 किलोमीटर का वाक प्रतिदिन होना ही चाहिए.
· नियमित एक घंटा बताया और कराया गया योगाभ्यास.
· रात्रि के खाने के बाद, कम से कम एक किलोमीटर धीमी चाल में वाक.

इतना सुनकर लोगों का सर भारी हो जाता. इतना सब आप करते हो, हमसे तो ना हो पायेगा... 
ऐसे में सिर्फ इतना ही कहता हूँ - एक तंदरुस्ती हजार नियामत

इसके साथ खानपान के कुछ नियम भी, जो कभी बाद में बताऊंगा. ज्यादा लम्बा लिख दिया तो आपलोग तो पढोगे नहीं, दो-दो लाइन के चुटकुले पढने की आदत जो हो गई है.

Wednesday, June 10, 2020

कोरोना और हम

Save Earth from Covid-19

छह महीने बाद भी कोरोना विश्व के लिए खतरा बना हुआ है. वर्ल्‍डओमीटर के डेटा के अनुसार आज तक विश्व में कोरोना संक्रमण के 73,25,401  मामले सामने आ चुके हैं. जिसमें मरने वालों की संख्या 4,13,749 हो चुकी है. भारत में भी आज तक कोरोना के 2,75,413 मामले आ चुके हैं और 7,719 लोग काल के गाल में समा चुके हैं. भारत में आज तक के आंकड़े के अनुसार मात्र 50,61,332 टेस्ट किये गए, जिसमें 2,75,413 कोरोना संक्रमित मिले. मतलब टेस्ट के हिसाब से संक्रमण 5.44% है और संक्रमितों में से 3% लोगों की ही जान गई है. ये हालत तब है जबकि जवान और स्वस्थ लोगों को बिना टेस्ट किए ही होम कोरेंटाइन कर ही इतिश्री कर दिया जाता है, अगर होम कोरेंटाइन किए गए लोगों की भी टेस्ट की जाती तो डेथ रेट और भी कम होतीआबादी के हिसाब से अगर भारत में कोरोना टेस्ट की संख्या पर भी नजर डाले तो आंकडें बेहद कम दिखते हैं. 

कोरोना के कहर के कारण



सरकार की सुपर हीरों की छवि बनाने की कोशिश में, विदेशों से जहाजों में भर-भर लोगों लाया गया और सिर्फ थर्मल स्क्रीनिंग का ड्रामा कर पागल कुत्तों की तरह पुरे देश में खुला घुमने छोड़ दिया गया. थर्मल स्क्रीनिंग को मैं मार्च के पहले हफ्ते से ही ड्रामा बोल रहा था और कई लोग उस वक्त इसे सरकार की वेवजह बुराई बता रहे थे. मेरे मार्च के इस पोस्ट को देखियें - कोरोना आखिर फैला कैसे ? उम्मीद है, मेरे उन मित्रों को अब तक थर्मल स्क्रीनिंग कितना कोरोना का पता लगा सकता है, ये समझ आ गया होगा.  फिर जाहिल और इंसानियत के दुश्मन जमातियों ने जो तांडव मचाया वो किसी से छुपा नहीं है. जाहिल जमातियों की वजह से कोरोना देश के हर छोटे-बड़े शहरों तक पहुँच गया. लोगों ने भी लॉक डाउन की हर दिन धज्जी उड़ाई. हमारे भागलपुर में आपातकालीन सेवा में आते-जाते जो नजारा सुबह-दोपहर-शाम सड़कों और बाजार का देखा, कभी लगा ही नहीं यहाँ कोई लॉक डाउन है. फिर रही सही कमी सरकार ने श्रमिकों के लिए ट्रेन चलाकर पूरी कर दी. और परिणाम जो होना था, वो हो रहा है...

हमारी नाकामी और कोरोना



लॉक डाउन की वजह से भारत में कोरोना की स्पीड शुरू में थोड़ी धीमी रही. पहली नाकामी रही विदेशों लोगों को लाना और उसके बाद उन सबको बिना कोरेंटाइन के सबको छोड़ देना. फिर दिल्ली के खांसी वाली सरकार के निकम्मेपन की वजह से जमातियों ने कोरोना का भरपूर पोषण किया और देश के कोने-कोने तक इसे पहुँचाया. और जो कमी रह गई उसे सरकार ने खुद पूरा कर दिया. सरकार पर श्रमिकों को अपने-अपने घर पहूँचाने का दबाव बढ़ा और सरकार ने लाखों प्रवासियों को ट्रेन से भर-भर पहुँचाया भी. अब चाहे राज्य सरकार की नाकामी रही हो या सरकारी तंत्र की जानीमानी कमी, कोरोना आज देश के गाँव-गाँव में पहुँच चूका है. स्थिति को सामान्य करने की जो सुपर सोनिक स्पीड अपनाई गई और लोगों की मुर्खता और ये मान लेने की वजह से "मुझे थोड़े ना कोरोना हुआ है जो मैं कोई परहेज करूँ" ने देश का बेडा गर्क कर दिया. कोरोना से सम्बंधित सुरक्षा उपायों को भी लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया और ना ले रहे हैं.

कोरोना और नंबर गेम




हम कोरोना संक्रमित देशों की सूची में पीटी उषा से भी तेज भाग रहे हैं. आज हम 2,75,413 कोरोना संक्रमितों के साथ सूचि में 6 वें स्थान पर हैं और ऐसे ही विकास करते रहे तो इसी हफ्ते हम 4वां स्थान भी हासिल कर लेंगे. विकास की यही गति बनी रही तो उम्मीद है जल्द ही एक नंबर की दवेदारी भी पेश करेंगे. सरकार ने सबकुछ खोलने के निर्णय के साथ अगर स्कूल भी खोल दिए तो भारत शायद पहला राष्ट्र हो, जहाँ कम से कम 90% लोग संक्रमित होंगे. 

कोरोना की असली स्थिति 



भारत एक विशाल देश है जहाँ सघन आबादी में हम जीते हैं. पुरे देश का कोरोना टेस्ट किया जाए तो शायद सालों.... सालों लग जाएँ. तब तक शायद लोगों को कोरोना आ नाम भी याद ना रहे. आइये जो मुझे समझ आ रहा है मैं समझाता हूँ. अब अगर संक्रमण के सरकारी डेटा को पूरी देश की आबादी यानि 1,37,91,96,659 पर लागु कर देखें, जिनका टेस्ट नहीं हुआ या जिनमें लक्षण नहीं दिख रहे. मतलब 5% लोग भी संक्रमित हुए तो 6,89,59,832 लोग संक्रमित हो चुके हैं. अब करोड़ों लोगों के संक्रमण से मौत के आंकडे को देखेंगे तो ये कुछ भी नहीं रह जाता. लोग जिस तरह से सुरक्षा उपायों की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं, मुझे उम्मीद है संक्रमितों की संख्या 6,89,59,832 से भी कई गुणा ज्यादा हो चुकी है. 

भारत में कोरोना से मौत 



भारत में दस लाख लोगों पर मात्र 200 टेस्ट किए गए हैं. दस लाख लोगों में से मात्र 6 लोगों की ही मौत हो रही है. मतलब हमें ज्यादा घबराने और डरने की जरूरत नहीं है. कोरोना संक्रमण से मरने वालों में ऐसे लोग ज्यादा हैं, जो पहले से गंभीर बिमारियों से ग्रसित हैं. मौत का आंकड़ा तो भारत में कम है फिर डरने वाली बात भी नहीं. 

सुरक्षा उपायों और सावधानियों के बाबजूद भी संक्रमित हो ही जाएँ तो ...

सुरक्षा उपायों और सावधानियों के बाबजूद भी संक्रमण हो ही जाएँ तो घबराएँ नहीं, हौसला रखें. हॉस्पिटल में हर किसी को एडमिट होने की जरूरत ही नहीं पड़ती. लाखों लोग बिना इलाज से ठीक हो रहें हैं, आप भी जानते हैं इसका कोई इलाज नहीं. तो जो लोग हॉस्पिटल से ठीक होकर निकल रहे हैं असल में उनका शरीर खुद ही कोरोना को हरा कर संक्रमण को ठीक कर रहा है. डॉक्टर की सलाह लें. अपने को आइसोलेट करें और साफ़ सफाई के साथ देशी उपायों को आजमायें. कोरोना हफ्ते में ठीक हो रहा है. भारतीयों की इम्यून सिस्टम यहाँ के रफ एंड टफ जीवन शैली की वजह से पहले ही स्ट्रोंग है, अगर थोड़ी कमी है तो उसे खानपान और जीवन को व्यवस्थित कर सुधारें. 

क्या करें 



सबसे पहले ये खुशफहमी पालना छोड़ दें कि सबकुछ ठीक है और कोरोना एक आम फ्लू जैसा है. कोरोना एक पेंचीदा वाइरस है, जिसे समझने में वैज्ञानिकों के पसीने छुट रहे हैं. फिर भी हमें कामकाज पर लौटना ही है, जिन्दगी को पटरी पर लाना है. जिन्दगी को सामान्य करने के चक्कर में गलती से भी स्थिति को सामान्य ना समझें. सावधानी और सुरक्षा उपायों को अपनाना होगा और कोशिश करनी होगी ज्यादा से घर में रहा जाएँ और सिर्फ कामकाज के लिए ही घर से निकलें. मौज मस्ती पर शायद कुछ महीने हमें रोक लगानी ही होगी. ये हमारे स्वास्थ्य के साथ इस माहामारी की स्थिति में पॉकेट के लिए भी बेहतर होगा और देश के लिए भी. अगर इन बिन्दुओं को ध्यान में रखेंगे तो कोरोना आपसे जरूर दूर भागेगा :    

  • सावधानी और बचाव के साथ ही अति आवश्यक होने पर ही घर से निकलें. 
  • मास्क, हाथ धोने का साबुन और हैंड सेनेटाइजर हमेशा साथ होना चाहिए. 
  • सिर्फ मास्क पहनना ही काफी नहीं, उसे इस्तेमाल करना भी सीखें. बार-बार मास्क को छूना मास्क ना पहनने से ज्यादा खतरनाक घर का राशन और अन्य जरुरी सामान को महीने से हिसाब से खरीदें और फलों और सब्जियों के लिए हफ्ते में एक दिन ही खरीददारी की कोशिश करें.
  • भारतीय खानापर विश्व में सर्वोत्तम है, उसे अपनाएँ जिससे आपकी रोग से लड़ने की क्षमता यानि इम्यून सिस्टम स्ट्रोंग होगा.
  • रात में जल्दी सोएं, देर रात्रि तक जागने से सबसे बुरा प्रभाव बॉडी क्लॉक पर पड़ता है, जिससे इम्यून सिस्टम कमजोर होता जाता है. 
  • सुबह कोशिश करें सूर्योदय के साथ बिस्तर छोड़ ही दें. सूर्योदय के बाद सोना भी स्वास्थ्य को ख़राब करता है.
  • नियमित रूप से एक्सरसाइज या योग करें और साथ में कुछ किलोमीटर की वाक भी करें.
  • सोशल डिस्टेंस का पालन करें और बाहर से पहले हाथ साफ करें, फिर डिटोल और साबुन से स्नान कर ही घर के किसी भी चीज को छुए. 
  • बाहर से आकर कपड़े भी साफ करें.
  • अगर ऑफिस जा रहे हैं तो ऑफिस से आकर फोन और लैपटॉप आदि को सेनेटाईज कर ही इस्तेमाल करें.
  • ऑफिस या बाहर इस्तेमाल होने वाली चीजों को घर में उपयोग ना करें. 
  • सावधानी ही बचाव है, इसका ख्याल रखें पर डर को दिल से निकाल दें.

Tuesday, June 2, 2020

अनलॉक-1.0 : जिन्दगी और कोरोना


लॉक डाउन के 68 दिन बीत गए. जिन्दगीं ये 68 दिन ऐसे हैं, जिसे शायद हर कोई अपने जिन्दगीं के पन्नों से फाड़ फेकना चाहता है. 1 जून से देश अनलॉक हो रहा है, अनलॉक-1.0 के साथ जैसे कैद के पंक्षी को खुला आसमां मिल गया और धीरे-धीरे देश में सबकुछ सामान्य करने की कोशिश की जा रही है. 
तो क्या अनलॉक-1.0 के साथ कोरोना हार गया ? 
ख़त्म हो गया कोरोना ?

ऐसा बिलकुल नहीं है. अनलॉक-1.0 ऐसी स्थिति हैं, जहाँ आप और हम देश में कोरोना के आंकड़ें दिन ब दिन बढ़ते देख रहें हैं, स्थिति पहले से ज्यादा बदतर हो रही है. लोग मौत के मुंह में भी जा रहे हैं. पर आज न कल देश को बाहर निकलना था. कामधंधे-उद्योग-दुकानों को खोलना था, जिसने अपूरणीय क्षति झेली है.

जब साँस लेने से जिन्दगीं जा सकती हो, छूने से मौत गले लगाने को तैयार बैठी हो. मानवता का सबसे बड़ा मन्त्र सामाजिकता और मिलना-जुलना ही मानवता के लिए खतरा बन गए हों. ऐसे में अनलॉक-1.0 से पटरी पर लौटती जिंदगी में अपने तौर-तरीकों को बदलना होगा, भले ये बदलाव हमें पसंद हो या ना हो. हमने काफी लम्बा लॉक डाउन देखा, कोरोना का कहर देखा. सरकार के बताएं सावधानी और बचाव के उपाय भी देश के हर नागरिक तक पहुँच गए. अब जब सबकुछ सामान्य करने की कोशिश की जा रही है, तो हमें और सावधान रहना होगा. अनलॉक-1.0 का मतलब कोरोना का खात्मा नहीं है, ये शायद हममें से कईयों को समझने की जरूरत है. 

हमें जिन्दगी को पटरी पर लाना है पर सावधानियों और बचाव के उपायों के साथ. हमें सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखते हुए, सामाजिकता निभानी होगी. कई लोग जो अति सोशल होते हैं उन्हें ये सावधानियां शायद एंटी सोशल लग सकते हैं. पर ये एंटी सोशल आपकी, हमारी और हम सबकी जान बचने का मंत्र होगा आगे कई महीनों तक. साफ-सफाई और पर्सनल हाइजिन के प्रति पहले से अधिक सचेत रहना होगा. इस बात को समझने का प्रयास कीजिये, जब हम घरों में बंद थे, तो कोरोना के मरीजों की संख्या भी कम थी और और ये सीमित स्थानों और शहरों तक ही सीमित थे. पर प्रवासियों के लाखों की संख्या में घर वापसी, हवाई और रेल के परिचालन से अब कोरोना की पहुँच हर गाँव तक हो चुकी है. इसलिए हमें  सतर्कत तो रहना ही होगा. 

हमारी आपकी लापरवाही से कोरोना आ असली खेल शुरू होगा. लापरवाही से आप अपनी ही नहीं अपने परिजनों की जान जोखिम में डाल देंगे.

Friday, May 22, 2020

बहुत कठिन है डगर हर्ड इम्यूनिटी की



जहाँ तक मुझे समझ आ रहा है कोविड - 19 वाइरस इतना आसान भी नहीं है, जितना इसे देश में सरकार के साथ-साथ लोग समझ रहे हैं और समझाने में लगे हैं. कोरोना संक्रमण अभी अपने शुरूआती दौड़ में ही है और इसे सामान्य समझ कर बिना जरूरत के खतरे लेने के कारण गंभीर परिणाम आ सकते हैं. बुरा दौर तब शुरू होगा, जब स्थिति को सामान्य करने और समझने के कारण लोग विस्फोटक रूप से संक्रमित होंगे. लोगों को इसके खतरे को समझना चाहिए. हमें आगे भी सावधान रहने की जरूरत है.

कोई कुछ नहीं जनता

एक बात याद रखिये, इस विचित्र कोविड-19 के बारे में WHO, दुनिया भर के देशों की सरकार और हमारे वैज्ञानिक, डॉक्टर हमें और आपको विश्वास दिला रही है कि वो सबकुछ जानते हैं. 
पर सच तो ये हैं कि कोई कुछ नहीं जनता और सब अँधेरे में तीर चला रहे हैं. हालात जब बेकाबू हो रहे हैं तो सरकार, वैज्ञानिक और डॉक्टर हर्ड इम्यूनिटी की बात कर रहे हैं. 
माना जा रहा है की जब अधिकतर लोग इन्फेक्टेड हो जायेंगे तो धीरे-धीरे हमारा शरीर इनके खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता बना लेगा, इसे ही हर्ड इम्यूनिटी कहा जा रहा है. कुछ मित्रों को मेरी बात अगर याद होगी, मैंने ये बात काफी पहले ही कहा था कि लॉक डाउन हटने के बाद, जीवन सामान्य होने पर हममें से 60% – 70% लोग संक्रमित होंगे. पर क्या ये सब बिना खतरे के हो जाएगा? क्या हर्ड इम्यूनिटी हासिल करने में किसी की जान नहीं जाएगी?


हर्ड इम्यूनिटी कोई भ्रम तो नहीं  

इस प्रश्न के जवाब में मैं बस इतना कहना चाहूँगा, अभी तक के ट्रेंड को देखिये. एक ही परिवार के एक सदस्य की मौत हो जाती है, जबकि दुसरे को यह पता भी नहीं चलता कि वो भी संक्रमित है. इस हिसाब से भी हर्ड इम्यूनिटी बनने के क्रम में कोविड- 19 भीषण ताण्डव मचा सकता है. अगर हर्ड इम्यूनिटी जैसी कोई चीज होती तो फिर वुहान में चीन इतना परेशान क्यों है? क्यों वुहान में लाखों लोगों का टेस्ट किया जा रहा है? चीन के वुहान को तो सबसे पहले हर्ड इम्यूनिटी हासिल कर लेना चाहिए और उसे बिल्कुल निश्चिंत हो जाना चाहिए था. कोरोना की वापसी की खबर के बीच क्यों वहाँ लाखों लोगों के टेस्ट किए जा रहे हैं. आप भी सोचिये आखिर क्यों ? 

कामकाज को पटरी पर लाना ही होगा

आज न कल लॉक डाउन को हटना ही था और हटेंगे भी. सरकार धीरे-धीरे नहीं सुपरसोनिक स्पीड में सबकुछ सामान्य करने की कोशिश करेगी. आखिर देश को बंद भी कितने दिन रखा जा सकता है. पर स्थिति को सामान्य समझने की भूल भारी पड़ सकती है. इसलिए तमाम सुरक्षा उपायों और सावधानियों के साथ कामकाज पर लौटिये. मुंह पर मास्क के साथ हैंड सैनिटाइजर तो सदा आपके पॉकेट में होना ही चाहिए. साथ ही एक बैग या थैला भी अब आपके पास हमेशा होना चाहिए. जिसमें साबुन, हैंड टॉवल, नैपकिन के साथ आपकी पानी की बोतल भी हो. 


भूलकर भी गलती ना करें 

कामकाज के अतिरिक्त घरों से तभी निकले जब अति आवश्यक हो. जरुरत के सामान महीने के हिसाब से और फल-सब्जियां हफ्ते में एक बार लाने का नियम बना लें, यही आपके साथ आपके संपर्क में आने वाले हर किसी के लिए भला होगा. जिसमें आपका परिवार सबसे पहले आता है. किसी की इस्तेमाल की गई किसी चीज को इस्तेमाल ना करें और ना ही समाजसेवक बने और अपनी चीजें दूसरों को इस्तेमाल के लिए दें. साथ ही बाहर मौज-मस्ती पर जाने, माल, सिनेमा, थिएटर, भीड़भाड़ वाले जगहों जाने पर लगाम लगाए. कोविड- 19 को हमारे देश में अभी संभाला नहीं जा सका है. यह अपना रूप-रंग हर देश में बदल रहा है. हवाई और रेल सेवा बहाल होने के बाद, यह किस रूप में वापसी करेगा ये अभी सोचा भी नहीं जा सकता. किसी वैक्सीन के जल्द आने की उम्मीद भी ना पालें.

बहुत कठिन है डगर हर्ड इम्यूनिटी की, जिसमें बचाव ही एक मात्र उपाय है.  सुरक्षित रहिये और जोश में होश ना गवाएं.

Wednesday, May 13, 2020

आत्मनिर्भरता का पहला मंत्र

होमेमेड गेहूं की आटे से बने बिना अंड्डे के केक.
कोई कमी दिख रही है क्या? फिर बाजार क्यों जाना.  

कल ही एक पोस्ट लिखी थी, जिसका सार था आत्मनिर्भर बनना, फिर मोदी जी ने रात्रि में आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ा दिया. अब आप इस पोस्ट को पढ़कर खुद देख लो आप आत्मनिर्भर हो सकते हो या सिर्फ गप्पे मर सकते हों आत्मनिर्भरता की. कल लिखी पोस्ट को यहाँ देख सकते हैं - https://nakkarkhaanaa.blogspot.com/2020/05/blog-post_26.html

आत्मनिर्भरता का सबसे पहला अध्याय शुरू होता है पेट से. तो सबसे पहले बाजारुपन छोडिये और किचन में खुद पसीने बहाकर अपनी मेहनत से जो भी खाने का मन करे, बनाने का प्रयास कीजिये. मैं किसी को भी अपनी चटोरी जीभ को बांधने को नहीं कह रहा, क्योकि मैं खुद ही बड़ा चटोरा हूँ. अगर आप खानपान के मामले में आत्मनिर्भर हो गए और इसके लिए आपको बाजार पर निर्भर नहीं होना पड़ता. तो आप घरेलु स्तर पर आत्मनिर्भरता को कुछ हद तक प्राप्त कर चुके हैं. और अगर यही नहीं हो पा रहा आपसे, तो फिर आत्मनिर्भरता की बात कोरी कल्पना के सिवा कुछ नहीं.

पर मेरी चटोरीपंथी का सोर्स बाजारु नहीं. मेरी चटोरीपंथी पुर्णतः घर में बने आइटम से पूरी होती हैं. जिसमें पहले माँ का और अब श्रीमतीजी का पूर्ण सहयोग रहता है. श्रीमतीजी को अपने घर का सैफ का तगमा दे दिया है. भले मेरी प्रयोगधर्मिता के चक्कर में कई बार गड़बड़ भी होते रहते हैं और श्रीमतीजी हथियार डाल मैदान छोड़ने को होती भी हैं, पर पीछे से सपोर्ट देकर टिकाये रहता हूँ मैदान में. अब आप कहेंगे की किचन में क्या प्रयोगधर्मिता ?

तो भाई, प्रयोग श्रीमतीजी जी के किचन में अजब-गजब होते रहते हैं, बिना मैदे के केक, बिना मैदे की जलेबी, बिना मैदे के गोलगप्पे, बिना मैदे के मठरी और नमकीन. बिना रिफाइन के सारे पकवान, बिना तेल के मैं नहीं कह रहा.... रिफाइन कितना खतरनाक है इसका अंदाजा आपको तब होगा जब घर में कोई हार्ट का मरीज हो जायेगा. पनीर टिक्का से लेकर मंचूरियन तक और मिठाई  से लेकर नमकीन तक घर में. आइसक्रीम घर में, महिलाओं की पहली और अंतिम इच्छा होने वाली गोलगप्पे भी घर में बने तो फिर कही और क्यों जाना.

चलिए आज कुछ झलक दिखता हूँ, मेरी सैफ श्रीमतीजी के किचन से  निकले आइटमों की, जिसे क्लिक किया जा सका. ज्यादातर मामलों में प्लेट सामने आने के बाद ही हम टूट पड़ते हैं, तो फोटो लेना रहा ही जाता है.

सबसे पहले पारंपरिक कचौरी, आलू की सब्जी (जिसे आलू की भुजिया कहते हैं हमारे यहाँ) के साथ गाजर का हलवा. 


गाजर का हलवे को क्यों अकेला छोड़ा जाएँ 

बिहार-बंगाल की परमप्रिय मुढ़ी और पकौड़े  


बेक द केक
घर के केक की परंपरा दो दशक पुरानी हो चुकी है. वैसे ये केक खानदान की बड्डी तगड़ी सैफ मेरी बहनजी ने बनाया था.  








ट्रैवल, घुमक्कड़ी मेरे लिए कोई लग्जरी नहीं, मेरा धर्म बन चुका है. सोते - जागते, उठते - बैठते दिलों - दिमाग में फितूर बनकर छाया रहता है. अब ये मेरा धर्म कैसे हो सकता है, आप भी देख लो. भांजी का जन्मदिन था, जैसा आपलोगों को शायद पता हो मैं बाहर का केक खाता नहीं, तो केक घर पर ही बनता है. चाहें समान्य चाकलेट केक बने या थीम केक. तो केक बना और थीम था जंगल सफारी. 😍🎂😍 मतलब केक को भी न छोड़ा इस घुमक्कड़ी के पागलपन ने. और घुमक्कड़ी का फितूर घर सारे सदस्यों के सिर पर चढ़कर बोलता है. देखो केक पर बाघ, गैंडे, भालु सब दिखाई देंगे. 🤣😁😂 ☸ यायावरी परमो धर्मा ☸
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मीठे-मीठे बूंदी नमकीन के साथ आपने खाएं ही होंगे.
हाजिर है कल ही फिनिस किए गए घर में ही बने बूंदी. 


जलेबी और इमरती बिहार-यूपी के साथ उत्तर भारत में शायद सबसे ज्यादा खाये जाने वाले मिठाइयों में हो. जलेबी भी हमारी सैफ घर में ही बना डालती हैं और वो भी बिना मैदे और रिफ़ाइन्ड.  






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होली पर पकवान सबके घर बनते हैं, फिर इसी पारंपरिक को अपनी आदत क्यों नहीं बना पाते. 


मेरी पसंदीदा मुंग दाल के दही बड़े.
इसके स्वाद के आगे उरद दाल के दही बड़े, कही ठहरते हैं भला.




हम तो भुजिया और नमकीन में भी आत्मनिर्भर हैं... और आप ??? 


लोग पकौड़े खाने भी बाजार की ओर भागते हैं. हद है यार शादी में पहले लड़की से पूछना था ना. खाना बनाना भी आता है या सिर्फ खाती है. कुंवारें लोग खाने के शौक़ीन हों तो लड़की भी किचन में एक्सपर्ट देखना भाई... तभी आत्मनिर्भर हो सकता हैं हिंदुस्तान. 


पोई साग के पत्तों के पकोड़े. पोई खुद छत पर उगाई, पूरी ओर्गेनिक.
इसके स्वाद का कोई जवाब ही नहीं.



खांटी देशी, शाम का हल्का-फुल्का नास्ता  


गोलगप्पे किसी पसंद नहीं, पर मैं कभी बाहर इसे खा ही नहीं सकता.
ये गोलगप्पे कुछ स्पेशल भी हैं, ये आटे से बने गोलगप्पे हैं.




समोसे से मुझे सख्त नफरत है. कई बार इसे बनाते देखा है...
सड़े आलू का भरपूर इस्तेमाल होता है, इसलिए मैं कभी बाहर इसे खा ही नहीं सकता. पर जब घर में मैदे की जगह आटे से बने, रिफ़ाइन्ड की जगह सरसों तेल तो फिर खाते वक्त गिनती भी नहीं करता.








अगर श्रीमतीजी के हाथों में जादू हो और किचन में उन्हें भूत न दिखता हो फिर चाहे पूरे साल लॉक डाउन हो, मेरे जैसे फूडी को जिसे बाहर के खाने से सदा परहेज रहा है कोई फर्क़ नहीं पड़ता. पेट में दर्द तो बाहर प्लेट चाटने वालों को हो रहा होगा 😂. क्यों सही कह रहा हूँ ना? और हाँ, सबसे जरूरी बात तो बताना ही भूल गया, ये मैदा फ्री समोसे हैं 😜. अब आपलोगों को बुला तो नहीं सकता, देखकर काम चला लो. जय हो लॉक डाउन की... #indianfood #desifoodie #homemade #kitchenking #samose #sayyestogharkakhana
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पोई साग के पत्तों के पकोड़े छत के खेत में उग रही है, जो पूरी ओर्गेनिक है. इसका दौड़ तो जब - तब चलता ही रहता है.







Lockdown में घरों में बंद लोग जहाँ डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं, वही हमने खेती करना शुरू कर दिया है वो भी बिना खेत के. जी हाँ, ये पकौड़े पोई के पत्तों का का है, जिसे छत पर उगाया है. किचन वेस्ट के कंपोस्ट से उगाया गया, ये पूर्ण ऑर्गेनिक भाजी से बने पकौड़े का स्वाद के आगे रेस्टोरेंट का कोई भी व्यंजन बेकार है. #Lockdown #creativity #foodie #desifoodie #gardening #rooftopgarden #kitchengarden #organicfood #desifood #tasteofhome #homemade #sayyestogharkakhana #growyourownfood #yayavarektraveler
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