Tuesday, June 8, 2021

Real Elite Class in India

!आज एक मजेदार तथ्य!

Real Elite Class in India



पढ़िए समझिये और अपनी राय दीजिये...

भारत की कुल बजत का 3% से भी कम निवेश स्टॉक मार्किट में होता है. जिसमें LIC और इसके जैसी कई प्राइवेट कंपनियो का इंशोरेंस का निवेश भी शामिल है, जिसमें इंशोरेंस बेचने वालों और बैंक मिलकर जो ग्राहक को उल्लू बना फंसाकर निवेश हासिल करते हैं वो भी शामिल है.

अगर लोगों के डायरेक्ट स्टॉक मार्किट में निवेश के आंकड़े को ही लें, तो वो 1% मात्र है. मतलब देश में मात्र 1% लोग एवरेज लोगों से अलग सोच रहते हैं और सही मायने में प्रबुद्ध कहे जा सकते हैं, जो निवेश को समझते हैं.
क्या आप इसका सबसे बड़ा कारण जानते हैं....

इसे Financial literacy की कमी कहा जाता है. अगर सीधे-सीधे कहूँ तो भारत में 97% से ज्यादा लोग Financially Illiterate हैं. इसका मतलब ये हुआ की जो 1% लोग डायरेक्ट मार्किट में निवेश करते हैं वो सुपर क्लास है, elite class.

तो भाई लोग खुद को स्पेशल फील करो, अगर आप भी इस क्लास में हो और अगर आप 97% वालों में हैं तो तो इश्वर आपका भला करें.

Monday, May 24, 2021

Hadjod – हड़जोड़ एक चमत्कारी पौधा



Hadjod – हड़जोड़

परिचय

गिरहबाज, हड़जोड़, जिसका आयुर्वेदिक नाम अस्थिसंहार या अस्थिजोड़ है. बिहार में स्थानीय भाषा में इसे गिरहबाज कहा जाता है. इसलिए हमलोग इसे बचपन से गिरहबाज के नाम से ही जानते और पहचानते हैं. इसका वनस्पतिक नाम Cissus Quadrangularis (सीस्सुस क्वॉड्रंगुलारिस्) है. हड़जोड़ का मतलब हड्डी जोड़ या अस्थिजोड़ को अंग्रेजी में Bone setter (बोन सेटर) भी कहते हैं. आयुर्वेद में हड़जोड़ का तना, पत्ते तथा जड़ का औषधि के रुप में इस्तेमाल होता है. हड़जोड़ पौधा का तना चारकोनिय एवम गांठ की तरह से बने होते हैं, इसमें एक एक गांठ पर पत्ते निकले होते हैं, जो तना पुराना हो चूका होता है वो ज्यादातर पत्ते विहीन ही होते हैं. हड़जोड़ के तने में हृदय के आकार वाली छोटी पत्तियां होती है. बरसात में इसमें छोटे-छोटे फूल लगते हैं और जाड़े में लाल रंग के मटर के दाने के बराबर फल लगते हैं.

दक्षिण भारत और श्रीलंका में इसके तने को साग के रूप में प्रयोग करते हैं.

 

देश के विभिन हिस्सों में हड़जोड़ को भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है:

Hindi- हड़जोड़, हड़संघारी, हड़जोड़ी, हड़जोडवा
Sanskrit- ग्रन्थिमान्, अस्थिसंहार, वज्राङ्गी, अस्थिश्रृंखला, चतुर्धारा
Oriya- हडोजोडा
Urdu- हडजोरा
Assamese– हरजोरा
Gujrati- चौधरी,  हारसाँकल
Bengali- हाड़भांगा, हरजोर
Marathi- कांडबेल, त्रीधारी, चौधरी
English- Edible stemmed vine, Veld grape, Winged tree vine

 

हड़जोड़ खास क्यों है ?

इस पौधे का उपयोग हड्डी के टूटने या मोच से संबंधी बीमारियों के चिकित्सा में किया जाता है या ये कहना ठीक होगा की किया जाता था. अब तो गाँव के लोग भी इसे नहीं पहचान पाते. हड़जोड़ को आयुर्वेद में औषधि के रुप में सबसे ज्यादा प्रयोग हड्डियों को जोड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा भी हड़जोड़ पेट संबंधी समस्या, पाइल्स, ल्यूकोरिया, मोच, अल्सर आदि रोगों के उपचार में तो होता ही है साथ ही यह दर्दनाशक और पाचन रोगों में भी काम आता है.

 

औषधीय गुण

आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार हड़जोड़ में सोडियम, पोटैशियम, फास्फेट और कैल्शियम कार्बोनेट भरपूर पाया जाता है. कैल्शियम कार्बोनेट और फास्फेट हड्डियों को मजबूत बनाता है. आयुर्वेद में टूटी हड्डी को  जोड़ने में हड़जोड़ को रामबाण माना जाता है. इसके अलावा कफ, वातनाशक होने के कारण बवासीर, वातरक्त, कृमिरोग, नाक से खून और कान बहने पर इसके स्वरस का प्रयोग किया जाता है. मुख्य रूप से इसके तने का प्रयोग किया जाता है.

 

सबसे पहले बात करते हैं उस वजह की जिसकी वजह से इसका नाम ही हड़जोड़ पड़ा. ये टूटे हुए हड्डियों को जोड़ने में चमत्कारी रूप से काम करता है. हड़जोड़ के उपयोग से हड्डी के जुड़ने का समय 33-50 फीसदी तक कम हो जाता है.

·  हड़जोड़ की जड़ को सुखाकर चूर्ण कर उसे 2-5 ग्राम दूध के साथ लेने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है.

·        १. हड़जोड़ के तने या पत्तों के रस को 10-15 मिलीग्राम घी के साथ लेने से भी टुटा हुआ हड्डी जल्द जुड़ जाता है और दर्द में भी आराम पहुंचता है.

·         २. हड़जोड़ के तने या पत्तों लुगदी बना कर अलसी तेल के साथ टूटे या मोच वाले जगह पर बांधने से आराम मिलता है.

·        ३. हड़जोड़ के पकोड़े बनाकर 15 दिनों तक खाने से हड्डियों के टूटने में शीघ्र लाभ होता है तथा तीव्र वात के बीमारियों में लाभ मिलता है.


हड्डी सम्बन्धी रोगों में उपयोग

रीढ़ की हड्डी के दर्द से भी हड़जोड़ राहत दिलाता है. इसके लिए हड़जोड़ के पत्तों को गर्म करके सेंकने से दर्द में आराम मिलता है.

अगर मोच हो गया हो और दर्द से परेशान हों तो हड़जोड़ का घरेलू उपाय बहुत ही लाभकारी होता है. हड़जोड़ के तने या पत्ते का जो भी उपलब्ध हो का रस तिल तेल में मिलाकर गर्म कर मोच पर लगाने से मोच के दर्द में आराम मिलता है और मोच को जल्द ठीक करता है.

अन्य उपयोग

·        १. अस्थमा में हड़जोड़ के रस का 5-10 मिलीग्राम को गुनगुना कर पिलाने से श्वास में लाभ होता है.

·         २. हड़जोड़ के पत्ते के रस को मधु के साथ मिलाकर पीने से पाचन क्रिया की गड़बड़ी ठीक होती है.

·         ३. पाइल्स या बबासीर में भी इसका उपयोग फायदेमंद होता है.

·         ४. गठिया के दर्द से हड़जोड़  का सेवन करने से इससे आराम मिलता है. छिलका रहित तना एक भाग तथा आधा भाग उड़द की दाल को पीस कर तेल में छान कर पकोड़े बनाकर खाने से वातरोगों में आराम मिलता है.

·        ५. हड़जोड़ का उपयोग बदन दर्द में भी दर्दनिवारक साबित होता है. इसका उपयोग करने पर कुछ ही देर में दर्द से आराम मिल जाता है.

 

हड़जोड़ का उपयोग कैसे करें

·        १. 2-4 मिली तने जड़ का रस

·         २. 1-2 ग्राम पेस्ट

·        ३.  5-10 मिली पत्ते का रस

·         ४. इसके तने को तोड़कर महीन काट कर बेसन में पकोड़े बनाकर भी उपयोग किया जा सकता है.

·        ५.  इसका 5-6 अंगुल तना लेकर बारीक टुकड़े काटकर काढ़ा बना सुबह-शाम पीएं.

 

Saturday, April 24, 2021

कोरोना और ऑक्सीजन

 

आज बैठे - बैठे मन में एक विचार आया

इसी महीने ग्यारह साल से रह रहे फ्लैट को छोड़कर दूसरे घर में सिर्फ और सिर्फ इसलिए शिफ्ट किया, क्योंकि नए मकान मालकिन को छत पर गमलों में लगे पौधों से नफरत थी. हर महीने बंगलोर से ही गमलों को हटाने की नसीहत कई महीनों से दे रही थी. एक बार तो हमने भी सोचा हर महीने के किचकिच से अच्छा है, पौधे किसी को दे दूँ या उखाड़ फेंकूं. जिस दिन केजरीवाल के खानदान से ताल्लुक रखने वाली मकान मालकिन टपक पड़ी, उस दिन रायता फैला देगी. कई पौधों को उखाड़ फेंका, क्योंकि कोई वारिस ना मिला. आधे पौधे नष्ट होने के बाद आत्मा ने धिक्कारना शुरू कर दिया, मन बेचैन हो उठा. दो - तीन रात ठीक से सो नहीं पाया. फिर फैसला किया, अब इस फ्लैट को ही अलविदा कह देंगे. आखिर हर महीने समय से मोटा किराया चुकाते हैं, तो फिर दूसरों की सनक क्यों झेलें. और हमने घर शिफ्ट कर डाला और प्रकृति और पौधों से नफरत करने वाली चुड़ैल से अपने आधे पौधे बचा लिए. अब ये सब रामकहानी मैं आपको क्यों बता रहा हूँ??? असल में ये रामकहानी असली कहानी की पृष्ठभूमि मात्र है, असली कहानी तो अभी बाकी है.

प्रकृति और पेड़ - पौधों का हमने जितना विनाश किया है, उसका ही परिणाम है कि आज ऑक्सीजन के बिना जान से हाथ धोना पड़ रहा है. कोरोना के तांडव पर नजर डालें तो ज्यादा प्रदूषित शहरों और जगहों पर य़े आतातायी बनकर कहर ढा रहा है और मौत ऐसी जगहों पर ज्यादा हो रही है. गावों और प्रकृति की गोद में रहने वालें लोग आज भी मौज में जी रहे हैं. वहाँ कोरोना कुछ बिगाड़ ना पा रही, या फिर रुग्ण और बीमार लोग ही ऐसी जगहों पर लपेटें में आ रहे हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि वहाँ ऑक्सीजन की मात्रा हवा में इतनी है कि किसी को ऊपर से चढ़ाने की नौबत नहीं आती.

कोरोना  के इस कहर में या तो हम और आप अंतिम यात्रा पर निकल लेंगे या फिर माँ प्रकृति की कृपा और अपने शरीर को इससे लड़ने के लिए तैयार कर रखा होगा तो बच लेंगे. कोरोना दो अहम सबक दे रहा और पूरी दुनिया केवल और केवल एक पर ही मुद्दे पर सर फोडू चर्चा में लगी पड़ी है -

"अपने को ऐक्टिव और स्वस्थ रखने के लिए योग, एक्साइज, वॉक, दौड़कर अपने को चुस्त - दुरुस्त रखो, कोरोना कुछ ना बिगाड़ पायेगा."



हो सकता है य़े बातेँ सही हों - योगी, डॉक्टर, वैज्ञानिक, अनुसंधान में लगे लोग सब यही सलाह दे रहे हैं, तो गलत तो नहीं होगा. पर मेरी छोटी सी समझ ये कहती है कि य़े सलाह ठीक वैसे ही है, जैसे आस-पड़ोस में आग लगी हो और आप अपने घर का ऐसी (AC) चलाकर चैन की बंसी बजाइए और कूल रहिये. सोचिये जरा, आखिर इस मूर्खतापूर्ण तरीके से कब तक बचेंगे???

 

इस कोरोना के कहर के वक़्त का दूसरा अहम पहलू है - ऑक्सीजन.

जी हाँ, ऑक्सीजन. जैसे ही पता चला रिपोर्ट पॉजिटिव आई है, लग जाते हैं ऑक्सीजन की खोज में. आज का ट्रेंड यही है. धन्ना सेठों ने अपने घरों में बेवजह ऑक्सीजन सिलेंडर भरभर रखा हुआ है, जाने कब जरूरत पड़ जाए. और उधर हजारों लोगों की जान सिर्फ और सिर्फ दो घूंट ऑक्सीजन नसीब ना हो पाने की वजह से जा रही है. खैर, ये सदियों से होता आया है और आगे भी होता रहेगा. इस खास और आम की असमानता पर मेरा और आपका कोई बस नहीं. तो करें क्या??? वो करिए जो आपके बस में है. 


जी हाँ, पहला उपाय तो आप कर ही रहे हैं, जिसे जोरशोर से मिडिया के हर माध्यम से प्रचारित और प्रसारित किया जा रहा है. आज हम बात करेगे उस दुसरे उपाय की जिसकी बात कोई नहीं कर रहा. प्रकृति का पोषण कीजिये, प्रकृति का  रक्षण कीजिये. वृक्ष लगाएं, जंगल बढ़ाए... अब आप सोच रहे होंगे, क्या बकवास कर रहा हूँ. ये काम कोई एक दिन में होगा क्या???








मेरे - आपके जैसे लोग तो शहरों में कबूतर के खोप जैसे घरों में रहने को बाध्य है और पेड़ कहाँ लगाये भाई??? इसका भी उपाय है. आज ही शुरुआत कीजिए. घरों के अंदर, छतों और बालकनी में गमले में जितना हो सकें छोटे पौधें लगाए. तुलसी, घृत कुवांरी (एलोवेरा), पुदीना, लेमन ग्रास जैसे औषधीय पौधें लगाकर शुरुआत कीजिए. कई इंडोर प्लांट हैं - मनी प्लांट, स्पाइडर प्लांट, स्नेक प्लांट, पीस लिली, एरिका पाम, घृत कुवांरी (एलोवेरा), रबर प्लांट, बैम्बू प्लांट जैसे पौधे, घर के अंदर अच्छे से बढ़ते है और ऑक्सीजन लेवल भी बनाए रखते हैं. ऐसे पौधों को कमरे की खिड़कियों, बरामदे जहाँ जगह मिले लगाईये. अब भी अगर बात समझ नहीं आ रही तो शायद ये आखिरी मौका है आपके पास, इसके बाद फिर ऐसी सलाह मानने के लिए ना आपके पास समय होगा और ना जरूरत. क्योंकि मरे हुए लोगों की आत्माओं को ना ऑक्सीजन की जरूरत होती है और ना ऑक्सीजन सिलेंडर की. हो सकता है अभी ये पोस्ट बकवास लगे. पर आने वाले समय में जब कोरोना का कहर थोडा कम होगा, यही बात आपको वैज्ञानिक से लेकर हर कॉपी पेस्ट वाले समझा रहे होंगे.

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