Tuesday, December 11, 2018

चिलचिलाती ठण्ड और रेलवे की कुल्फी

लगभग एक घंटे की यात्रा परिवार और बच्चों के साथ स्लीपर कोच में कर रहा हूँ. भारतीय रेलवे के स्लीपर कोच की सबसे बड़ी समस्या जाड़े में और बरसात में जो मुझे लगती है वो है ट्रेन की खिड़कियों का ठीक से न बंद होना और न खुलना. बच्चे खिड़की पर हाथ रख बाहर का नजारा लेना चाहते हैं, पर डर लगा रहता कब शटर गिर पड़े. कई बार गिरते शटर से लोगों को घायल होते भी खुब देखा है.

आज की हमारी समस्या यह है कि शटर बंद नहीं हो रहे, ट्रेन के हिलने - डूलने के कारण पाँच मिनट में ही खिड़की खुद व खुद खुल जाते हैं. मतलब ऑटोमैटिक वातानुकूलन कर रहे दे रहें हैं कोच का. अब अन्दर बैठे लोग जो पहले से दुबके बैठे हैं, अपने हाथ को दोनों पैरों के बीच दबाए ठंड से बचने को वो ऑटोमैटिक वातानुकूलित हो रहे हैं. मेरी परेशानी तो एक घंटे की है. पर इस चिलचिलाती ठंड में जो भी यात्री नीचे के सीट पर पूरी रात यात्रा करेंगे, उनका कुल्फी जमना तय है. मतलब स्लीपर कोच में यात्रा करने के लिए कम्बल नहीं रजाई लेकर जाना पड़ेगा या फिर एक बढ़िया स्लीपिंग बैग. जिसमें घुस दुबका जा सके और कुल्फी होने से बचे.

वैसे हमारे यहाँ फिर भी थोड़ी राहत रहती है, क्योंकि ट्रेन में हमेशा ही सीट से ज्यादा यात्री होते हैं, जो कोच को ऑटोमैटिक वातानुकूलित होने से गर्मी देकर बचाए रखने में सहायक होते हैं.

बस यूँ ही

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