Friday, May 8, 2020

सरकार एक मदारी, कोरोना जमूरा और हम और आप दर्शक

कल दो घटनाएँ हुई. दोनों घटनाओं से आपको एक-एक कर अवगत करवाऊंगा. दृष्टांत थोड़ी लम्बी हैं पर ध्यान से पढ़िए. जिनको भी लगता है सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है वो लोग डॉक्टरों, नर्सों, हॉस्पिटल में तैनात स्टाफ, पुलिसकर्मी, सीआईएसफ, सीआरपीफ और सेना के जवानों के मरने की खबर की बिहाइंड द न्यूज़ को समझने का प्रयास कीजिये. और ऐसी हजारों लोगों की मौत से ना सिर्फ आप बल्कि सरकार तक भी अनजान हैं अभी. और इसका सिर्फ और सिर्फ एक कारण है सुरक्षा के बिना किसी उपायों के ये लोग काम कर रहे हैं. ये मामला ठीक वैसे ही है जिसे किसी युद्ध में सेना को उतार तो दिया जाये, पर उसके पास लड़ने को बंदूकें और तोपें ना हों.
पहली घटना पहली घटना ये कि हैदराबाद से 1200 लोगों को लेकर एक श्रमिक गाड़ी नाम की ट्रेन डायरेक्ट भागलपुर आई, जिसमें खगड़िया, बेगुसराय, पूर्णियां, कटिहार, मुंगेर, मधेपुरा और ना जाने कहाँ कहाँ के लोग, जो निसंदेश पीड़ित थे, अपनी धरती को दुबारा देखने और जमीन को छूने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. स्टेशन पर सुबह से 7 बजे से कड़ी व्यवस्था थी. बिलकुल कड़ी ... एक परिंदा भी बिना आदेश फरफरा नहीं सकता था. डॉक्टर्स की टीम, सेनेटाईजर वाहन, बसों की लम्बी कतार जिसमें मैंने सुबह ही 8 बजे तक 36 बसों को स्टेशन के बाहर खड़े देखा था. सबकुछ हो रहा था जो होना चाहिए... और साथ में हो रहा था समाचार का लाइव कवरेज. आखिर मिडिया को चौथा स्तंभ कहा जाता है तो वो कैसे पीछे रहते. खचाखच फोटोग्राफी, समाचारों का प्रसारण. गाड़ी सुबह 8:10 बजे आने के कई घटे विलम्ब से दोपहर के 1:40 पर आई. ट्रेन से सारे दरवाजों को बंद करवा दिया गया और एक-एक पसेंजर को उतारा गया और स्क्रीनिंग (जिसका मैं सदा से नौटंकी कहता आया हूँ, किया गया) करके एक - एक पैसेंजर को सेनेटाईज कर, एक पानी की बोतल और एक खाने का पैकेट सम्मान के साथ देकर, सबके लिए जिले अनुसार निर्धारित बसों में भेज दिया गया. यहाँ तक मिडिया पल पल की खबर ले और दे रही थी. अब आते हैं असल मुद्दे पर. यहाँ तक तो जो हुआ उसे देखकर आप सरकार की जयकारे लगाने लगेंगे. पर असली खेल बिहाइंड द कैमरा शुरू हुआ. बसों में जरूरत से ज्यादा लोगों को भर दिया गया, जिससे सोशल डिस्टेंस भागलपुर स्टेशन पर ही तेल लेने चली गई. और उसके बाद इसमें से कितने लोग कोरोंटाईन शिविर में रहेंगे ये ना आप जान पाएंगे और ना मैं. जब हॉस्पिटल से संदिग्ध पोजेटिव केस वाले लोग भाग जा रहे हैं, तो क्या गाँव के लोग जिनके सर पर इन बाहर से आने वालों का बोझ दे दिया, जिसमें 20% लोग जरुर संक्रमित होंगे. क्या संभाल पाएंगे उनको ? जरा सोचिये. बस को उनके गाँव तक पहुंचा कर सरकार का दायित्व ख़त्म. उसके बाद गाँव वाले जाने. बात यही ख़त्म नहीं हुई, अब सरकार तो बड़े बैंड बाजे के साथ आपको बता रही है की ट्रेन को सेनेटाईज किया जा रहा है. ऐसी किसी भी ट्रेन को एक इस्तेमाल के बाद कम से कम 7 दिनों के लिए ह्यूमन टच से दूर रखना था. पर हुआ ये कि 24 डब्बे के ट्रेन को आधे घंटे से भी कम समय में सिर्फ एक कृषि कार्यों में उपयोग होने वाले पंप से सेनेटाईज घोषित कर दिया गया. और उसे मेंटेनेस के लिए भेज दिया गया. जहाँ उसे सरकार के तानाशास अफसरों के आदेश को मानते हुए सरकारी गुलामों ने मेकनिकल और इलेक्ट्रिक वर्क का काम किया और करवाया. वो भी बिना किसी सुरक्षा उपायों के. ये है अलसी बिहाइड द सीन सरकारी काम. जिससे कारण कोरोना के संक्रमण पर लगाम नहीं लग रहा है. सबकुछ बड़े तामझाम से होता है, पर जो होना चाहिए वही नहीं होता. जरा सोचिये, एक अटैच बाथरूम वाले कमरे को लाइजोल, साबुन और फिनाइल मिक्स कर फ्लोर, खिड़की और दरवाजों के साथ बाथरूम के दीवारों तक को साफ करने में 40 दिनों तक मैंने हर दिन 30 मिनट से ही अधिक समय लगया था. पर इससे भी कम समय में मात्र एक बन्दे ने 24 डब्बों को सेनेटाईज कर दिया. बाकि उस मशीन में पानी से साथ सिर्फ पानी था या कुछ और इसमें भी मुझे संशय है.

2 comments:

  1. सरकारी जैसे पहले होते थे वैसे ही होंगे। पहले ही काम का प्रेशर होता था अब ये प्रेशर और बढ़ गया है। पहले भी खानापूर्ति होती थी और अब भी वही हो रही है। सबको अपनी जिम्मेदारी खुद ही संभालनी पड़ेगी। जितना बचाव हो सके वो करें तो बेहतर रहेगा।

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  2. बचाव ही सुरक्षा का पहला मंत्र है. लोग जितनी जल्दी समझे अच्छा है.

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