Saturday, November 23, 2019

पर्सनल के पप्पा...



आज सुबह के साढ़े चार बजे होंगे, लल्ला - लल्ला लोरी स्टाइल में विक्रमशिला एक्सप्रेस ट्रेन हिलाती - झुलाती जा रही थी और मैं एक नन्हें बच्चे की तरह सिमटा - लिपटा चादर ओढ़े निद्रादेवी के आगोश में प़डा था. तभी शोर ने मुझे निद्रादेवी के आगोश से कूदकर बाहर आने को विवश कर दिया. अनमने ढंग से आंखें खोली, एक पैसेंजर के साथ बहस चल रही है, पेंट्री कार के वेंडर या मैनेजर जो भी रहें हों. बाहर देखा मुगलसराय स्टेशन पर गाड़ी खड़ी थी. 

देखिए माजरा क्या है -
पैंट्री कार वाला - आप कौन हैं? पैंट्री कार में कैसे घुस गए?

पैसेंजर - मैं पर्सनल का बाबु हूँ, धनबाद का.

पैंट्री कार वाला - पर्सनल का बाबु?

पैसेंजर - हाँ

पैंट्री कार वाला- इहे गाड़ी में के टीटी हैं का?

पैसेंजर - क्या मतलब?

पैंट्री कार वाला- आप टीटी के पप्पा हैं न, हम समझ गए. कौन सा टीटी के पप्पा हैं?

पैसेंजर - अरे नहीं पर्सनल का बाबु हूँ.

पैंट्री कार वाला- हाँ... हाँ... आप टीटी बाबु के पप्पा हैं. ऊ टीटी बाबु कोई आएगा तो बात करियेगा. हम नहीं जानते कौनो पर्सनल टीटी बाबु को.

पैसेंजर - अरे बड़े अजीब आदमी हो यार तुम तो. मैं DRM ऑफिस, धनबाद का क्लर्क हूँ.

पैंट्री कार वाला- चुपचाप आप ऐसी में जाइए, चार बजे सुबह पैंट्री में घुस रहे हैं. एतना देर से पर्सनल का बाबु.... पर्सनल का बाबु का बोल रहे हैं. हम सोच रहे हैं आप पर्सनल के पप्पा हैं.

पैसेंजर - रेलवे का काम करते हो पर्सनल का बाबु क्या होता है नहीं पता?

पैंट्री कार वाला - हमको कौनो जरूरतें नहीं है कुछ पता करने का. आप चुपचाप उतर कर ऐसी या स्लीपर में जाइए.
उसके बाद पर्सनल के पप्पा को पैंट्री वाले ने धक्के देकर बाहर कर दिया, क्योंकि वो सीधी तरह से उतरने को तैयार ही न था. नीचे धक्का  खाते हुए देख लेने की बात कह गया.

पूरे दिन हम पाँच जने पर्सनल के पप्पा बोलकर ठहाका मारते रहे.

Wednesday, November 20, 2019

I'm jack-of-all-trades, master of none

पिछले कुछ दिनों में, मेरे मित्रों ने मुझे कुछ सलाह दी. मित्रों की सलाह देखिये - पहला मित्र योग से जुड़ा है - "ये आजकल क्या करते रहते हो, कभी नैनीताल, कभी भीमताल, कभी मेघालय, कभी सिक्किम. भाई योग की बात करो, हम सिर्फ योग को फॉलो करते हैं.... गुरु जी की बात करो." मैं हाथ जोड़कर - अब ऐसा ही करूँगा गुरुभाई. दूसरा मित्र मेरे पर्सनल फाइनेंस के जानकारी की वजह से जुड़ा था मुझसे - "अबे ये क्या करता रहता है, फाइनेंस तो नजर ही नहीं आ रहा है तुम्हारी पोस्ट में. कुछ insurance ही बिकवा दो, तेरा भी फायदा होगा." मैं हाथ जोड़कर - ठीक है अब से insurance ही बेचूंगा. तीसरा मित्र काफी पुरानी जान पहचान है- "ये क्या करते रहते हो? कभी योग, कभी ट्रेवल, कभी कविता, कभी पर्सनल फाइनेंस, कभी राइटिंग, कभी फोटोग्राफी, तो कभी बागवानी, कभी नेचर तो कभी कुकिंग. यार इतना समय और जानकारी कहाँ से लाता है. मुझे समझ ही नहीं आता तू क्या है." मैं - फिर क्या करूँ ? "यार एक ही फील्ड पर टिके रहो, ये रेलवे के ट्रेन की तरह ट्रेक मत बदलते रहो." मैं हाथ जोड़कर - ठीक है मैं बस अपनी नौकरी के अलावा कुछ नहीं सोचूंगा अब आगे से. चौथा मित्र, जो मेरे कई सारे ट्रेवल देखकर जलाभुना जा रहा है- "क्या है ये www.yayavarektraveler.com? उसकी बात करो जिससे कुछ समाज का भला हो. जब देखो घुमने-फिरने की बात करते रहते हो. पैसे खर्च होते हैं घुमने में भाई, वो कौन देगा?" मैं हाथ जोड़कर - भाई ऐसा है तुम मरो अपने पैसे के साथ, मुझे जो अच्छा लगता है करता हूँ. वैसे एक बात बताओ, ये मेरे घुमने, मेरे वेबसाइट और मेरे घर को चलाने को तुम डोनेसन देते हो क्या मुझे? चौथा मित्र तिलमिला उठा- "यार, तेरी ऐसी पोस्ट देखकर पेट में बहुत भारी गैस बन जाती है मुझे, कलेजा जलने लगता है." ये सब एक सप्ताह में घटित घटनाक्रम पर आधारित है. मैं अपने जवाब में अंग्रेजी की एक phrases कहना चाहता हूँ - “I'm jack-of-all-trades, master of none” मुझे अपनी जिन्दगी जीनी है, अपने सपनों के साथ मरना नहीं जीना चाहता हूँ, तो जो अच्छा लगता है करता हूँ. और मेरे भाई नीली छतरी वाले ने ही मुझे Multi Skilled बनाया तो इसमें मेरा क्या दोष.

Sunday, November 17, 2019

रुक जाना नहीं तुम कहीं हार के...

रुक जाना नहीं तुम कहीं हार के....

रुक जाना नहीं तुम कहीं हार के...

आज का दिन कुछ विशेष है और इस विशेष दिन नीली छतरी वाले के आगे हाथ जोड़ बस यही बोला की नीली छतरी वाले बस इस सरकारी नौकरी से मुक्ति दे दो, तो शायद अगले जन्म में दीप, धूप लेकर आपके आगे हाथ जोड़ सकने लायक बन पाऊँ, नहीं तो अगले जन्म में भी आपके मंदिर में टहलने ही आऊंगा. अब आपको बुरा लगे तो मेरी बला से. आपकी दुनिया का नियम है जैसी करनी वैसी भरनी, तो भरना तो आपको भी पडेगा.
सरकारी नौकरी में वर्कलोड बढ़ना, फालतू काम ज्यादा, चमचागिरी, भ्रष्टाचार का बोलबाला, ऑफिसरशाही, छुट्टी न मिलना इत्यादि कारक पहले ही अति उच्च स्तर पर हैं. सीधे सच्चे लोग या तो जिन्दगी पिसते - घिसते बिता देते हैं या फिर मेरी तरह कशमकश में संघर्ष करते हैं कोशिश करते हैं.
जिसमें कुछ लोग होते हैं, जो सफ़ल होते हैं इस दो कौड़ी के मायाजाल को तोड़ने में. जिनके अन्दर क्षमता है नौकरी छोड़ कर जा रहे हैं और आगे और जिस तरह की स्थिति अभी सरकार बना रही है बंधुआ मजदूरी वाली. जिनमें कुछ करने का हुनर है, क्षमता है, जूनून है, ऐसे लोग और अधिक संख्या में आने वाले समय में नौकरी छोड़ने को मजबूर होंगे, इसमें कोई दो राय नहीं.
सरकारी नौकरी मतलब -
अंधेर नगरी चौपट राजा,
टके सेर भाजी टके सेर खाजा.
यहाँ आपके टैलेंट की कोई कीमत नहीं, सब धन बाईस पसेरी वाली कहावत शायद आज सरकारी नौकरी पर सबसे ज्यादा लागु हो.
खुद का दुखद अनुभव है, खून के आंसू रो रहा हूँ पिछले दस साल से. बेहतरीन लाइफस्टाइल और काम छोड़कर, आदर सम्मान छोड़कर, घर वालों के दबाव और माँ से आंसुओं की वजह से ना चाहते हुए भी सरकारी नौकरी का पट्टा गले में बंधवा लिया. दस वर्षों में शायद ही कोई एक दिन बीता हो जब लगा हो कि मेरे साथ जो ऊपर वाले ने चक्रव्यू रचा और ऐसे स्थिति में ला खड़ा किया, मैं वहीँ ठीक हुँ. अपने जीवन के दस साल से ज्यादा समय झख मार कर जिस जगह दिया वहां चमचागिरी और चाटुकारों का राज चलता है. काम की कोई कीमत नहीं. इमानदार रहा और रहूँगा, पर इमानदारी की कोई कदर नहीं यहाँ. नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों का बोलबाला. सारी मलाई चाटुकार और कामचोर खा रहे हैं, भ्रष्ट अफसरों का लाल फीताशाही अंग्रेजों के ज़माने का चल रहा यहाँ और काम करने वाले इमानदार कर्मचारियों को पूरा भ्रष्ट तंत्र मिलकर निकम्मा और बेकार साबित करने में लगा रहता है दिन रात.
नौकरी की चाह में पढ़े लिखे लोग बेरोजगार होकर इसलिए घूम रहे हैं, क्योंकि मन में बस यही घुसा है सरकारी नौकरी ही लेना है. जिस वक़्त कॉलेज छोड़ मैं बाहर निकल गया और दुनिया देख ली, अच्छी खासी नौकरी पा ली, फिर उसे छोड़ प्रोफेशनल योग ट्रेनर बनकर टेलीविजन तक लाइव पहुंच गया, मेरे सहपाठियों का सारा कुनबा सरकारी नौकरी पाने की तैयारी में अपने जवानी के 10-11 साल निकाल चुके थे. मेरा भी दुर्भाग्य रहा कि इतना सब करने के बाद, बिना किसी के हाथ के जो मुकाम पाया, उसे छोड़कर सरकारी नौकरी में ही आना पड़ा, पर ये सरकारी नौकरी मेरे लिए लेम्परी बैड टाइम की तरह है जिन्दगी में, जिसे एक दिन बीत जाना है.
ऐसे लड़के और ल़डकियों से जो नौकरी की तैयारी कर रहे हैं आगाह करना चाहता हूँ कि सरकारी नौकरी का मोह छोड़ आगे बढ़ो, कुछ नहीं यहाँ. जो भ्रष्ट हैं, कामचोर हैं, चाटुकारिता जिनकी पुश्तैनी विरासत है वो शौक से आए. आपके लिए ही सरकारी नौकरी है. बाकी जो इमानदार और मेहनत के बल पर जिंदगी में कुछ पाना चाहते हैं, वो सरकारी नौकरी में गलती से भी न आये.
आज के विशेष दिन, दिल से निकला दर्दे दास्तां.

Friday, November 8, 2019

कहाँ स्मार्ट सिटी भागलपुर ....और कहाँ दिल्ली.... जैसे राजा भोज और गंगू तेली

दिल्ली में बड़ी हाय तौबा मची है प्रदुषण को लेकर, लोगबाग के साथ कोर्ट भी कोस रही सरकार को. पर.... पर...
आइये सिल्क सिटी के नाम से जाना जाने वाले बिहार के दुसरे बड़े शहर, भागलपुर, वैसे तो अधिकारिक रूप से अभी भी गया ही दूसरा बड़ा शहर है. पर वो अब काफी पुरानी बात हो चुकी है और भागलपुर आगे हो चला है, पर सरकार तो अब जनगणना में ही इसे घोषित करेगी. जो मोदी जी की असीम कृपा से अब स्मार्ट सिटी भागलपुर हो गया.

अब आप कहेंगे क्या खास है भाई यहाँ, क्यों बुला रहे हो ?
तो जवाब है, बस एक बार भागलपुर आ जाओ और शहर को देखो, सड़कों पर घूमों और फिर आपको पता चलेगा यार ऐसे भी नरक होते हैं इस धरती पर. इसके सामने दिल्ली का प्रदुषण तो अभी बाल्यकाल में ही है. यहाँ सड़कों की धुल से आपके आगे जाने वाला ऑटो ही इतनी नहला देगा की सफ़ेद रुमाल काला हो जायेगा और बीबी घर में पूछेगी ... अजी मैंने तो सफ़ेद रुमाल दिया था.... जे कहाँ से ले आये??

सड़क पर कूड़े की तो पूरी पुराण लिखी जा सकती है. लोग निकलते हैं घरों से और दे मारते हैं बाउंसर और सडक पर जब तक कम से कम पचास मीटर तक कूड़ा न फैले क्या खाक कूड़ा फेंका. फिर बड़ी शान से चारो ओर देख जैसे ललकार रहें हों .... है कोई माई का लाल जो मेरे से भी आगे कूड़ा फेंक के दिखाए???? नगर निगम के भाड़े के सफाई कर्मी घरों से कूड़ा जमा कर सड़कों पर फैला जाते हैं. और मुख्य सड़कों पर भी नाले का पानी गंगा जल की तरह बहता रहता है सालों भर, लोग इसमें आचमन कर अपने को धन्य मानते होते हैं, विश्वास हो तो हो आइये स्टेशन के पास ही स्थित सब्जी मंडी और लोहा पट्टी. हाँ, इसमें भागलपुर की शान जैन मंदिर एरिया को भी शामिल कर लीजिये. जैन तीर्थ यात्री तो अब आने से भी कतराने लगे वहाँ बने नाले के तालाब से जो सालों से वैसा ही पड़ा है. 

सड़कों पर धुल और मिटटी की कोई कमी नहीं, यहाँ लक्मे की कोई जरूरत न होती महिलाओं को. स्मार्ट सिटी जो ठहरा.... बाहर निकलों और सडक पर आते ही हो गया मेकअप. बिलकूल फेयर एंड लवली जैसा... चकाचक.
सड़कों पर जाम की तो ऐसी हालत है की दिल्ली के लोगों को अपने मोहल्ले के गटर में कूदकर ही जान दे देनी चाहिए. यहाँ जाम नहीं... महाजाम होता हो ..... नहीं समझे ?.... बुद्धू हो यार आपलोग.... महाजाम मतलब कम से कम 100 किलोमीटर और थोडा बढ़ ले तो 250 से 300 किलोमीटर का महाजाम तो यहाँ आम बात है. मतलब आज लगे तो दो दिन बाद भी न हटे, इसे कहते हैं जाम. दिल्ली में घंटा जाम होता है.... एक घंटे में जाम ख़त्म. धत्त ...... और मंदबुद्दी लोग उसे जाम कहते हैं. 

अब आप कहोगे लोग रहते कैसे हैं???.... 
क्या रहते हैं भाई.... निरीह लोग डेंगू, मलेरिया, टाइफाइड के साथ स्वांस सम्बन्धी रोगों से ग्रषित होते रहे हैं. मतलब कोई चारा न है, दिल्ली में वैज्ञानिक बोले हैं दस साल उम्र कम हो रही है... हिंया तो उस हिसाब से बीस साल कम हो रहे हैं लोगों के. पर नगर निगम सो रहा है, मेयर और उप मेयर सो रहे हैं, सांसद और विधायक सो रहे हैं, पुलिस और प्रसाशन सो रहे हैं, सरकार सो रही और जनता को तो मरना है तो मर रही है मायागंज में डेंगू, मलेरिया, टाइफाइड और  न जाने किस - किस बीमारी से. अस्पताल तो जैसे मरने वाले के लिए काशी और मरीजों के साथ जाने वाले परिचितों के लिए पिकनिक स्थल बना हुआ है. बिलकुल मेले सा माहौल बना है, हर दुसरे घर में अभी डेंगू और मलेरिया से लोग पड़े हैं और डॉक्टर की चाँदी ही चाँदी. हर हफ्ते डेंगू से सिर्फ भागलपुर में ही दो - चार निकल ले रहे स्वर्ग की यात्रा पर, पर हमरे विकास पुरुष नितीश बाबु मिडिया में ताल ठोके हैं की बिहार में डेंगू से एक भी मौत न हुई. और तो और जे विकास पुरुष खुद  साल में कम से कम बारह दौरे कर ही लेते हैं भागलपुर के, हैं आखिर बिहार का दूसरा बड़ा शहर अब. वोट पड़े हैं, उनके कुछ लंगोटिया यार भी पड़े हैं इस नरक में.
इतना सब है क्या दिल्ली में????? नहीं न????

तो फिर प्रदूषित शहर का तगमा बिहार के भागलपुर को दो, दिल्ली को फर्जी में विजेता बनाए हैं पत्रकार और मीलॉर्ड मिलकर. 
स्मार्ट सिटी भागलपुर और यहाँ के नगर निगम की जय हो !

#bhagalpursmartcity

Sunday, September 22, 2019

यात्रा में बोतल न खरीदने का यह उपाय

जब Eureka Aquaguard Personal Water Purifier Bottle  खरीदी थी तो एक पोस्ट लिखी थी. कहा था, इस्तेमाल के बाद इसका रीव्यू भी दूँगा.
आठ दिन की आसाम और मेघालय यात्रा में Eureka Aquaguard Personal Water Purifier Bottle  का जमकर इस्तेमाल किया और पूरी यात्रा में मैंने पैक्ड बोतल का पानी खरीदकर नहीं पिया. होटल और गेस्ट हाउस में जो RO लगे थे उससे इसमें पानी भरा. बाहर घूमने निकालने पर जहाँ भी पानी मिला इसमें भरता रहा और पीता रहा. कभी चलते नल से पानी भरा, तो कभी झरने से.
बाकि लोग जब पानी के लिये बेहाल हो रहे थे, अपन बिंदास कोई भी चलता फिरता साफ पानी देख बोतल भर लेता था पीता रहता था. इस बोतल को टेस्ट भी तो करना था. चेरापूंजी और दाऊकी की यात्रा के साथ डबल डेकर लिविंग रूट ब्रिज की ट्रेक पर भी बहते झरने का पानी बिंदास भरा और मस्त होकर और पीता रहा. वैसे तो डबल डेकर लिविंग रूट ब्रिज के ट्रेक पर सीधे गिरते झरने का पानी भी पीया और सच मानिये, जब घर लौटकर आया तो घर के RO का पानी बिल्कुल खारा लग रहा था.
मेरा एक ही उद्देश्य रहा इस यात्रा में पानी के लिये "Say No To Bottle Water". और खुशी की बात यह भी रही कहीं कोई दिक्कत नहीं हुई, कहीं पेट गडबड नहीं हुई और न ही पानी कम पीने की कोई परेशानी रही.
इस बोतल की वजह से आठ दिन में कम से कम 24 -25 लीटर बोतल का पानी पी ही जाना था और 20 से 25 रुपये के हिसाब से 500 से 625 रूपये तो बचे ही. मेघालय जैसी खूबसूरत पहाड़ी क्षेत्र और वहाँ के जंगल को भी प्लास्टिक कचरे के जहर से बचाया. मतलब इस बोतल पर खर्च किये गए रूपये तो एक यात्रा में ही समझ लो निकल गए. बोतल को साफ कर सुखा कर रख दिया गया है, अगली यात्रा पर फिर से निकाला जाएगा.

Friday, August 30, 2019

बिन पानी सब सून


एक नए किस्म का झोल है आजकल यात्रा में और वो है - पानी.

 
मुंगेर कष्टहरनी घाट से मुंगेर गंगा पर बने रेल सह सड़क पुल का नजारा   
पहले जब ट्रेन सफर होता था या नानी घर का ही सफर होता था तो हम स्टेशन, बस स्टैंड पर बहते नल या फिर चापनल (Hand Pump) का पानी पी लेते थे और और आत्मा तृप्त हो जाती थी ठन्डे-मीठे पानी से, सच में. मुंगेर घाट से गंगाजी को जहाज से पार कर जाते थे, इस पार या उस पार घुग्नी-मुढ़ी के दुकानों की रौनक होती थी और हमें भी नानाजी या मामाजी खिलाते थे. पत्ते में मुढ़ी के ऊपर बिल्कुल गाढ़ी बेसन की ग्रेवी वाली घुग्नी और उसके ऊपर गर्मागर्म पकौड़े, जिसे यहाँ प्याजू भी बोलते हैं और ऊपर से हरी मिर्च और कटी प्याज. इतने से भी मन न भरता तो फिर से गर्मागर्म पकौड़े, आलू चोप और कभी-कभी लिट्टी-घुग्नी का भी दौड़ चलता, जब तक जहाज जाने के लिये तैयार न हो जाता खाते ही जाते. और खाने-पीने के बाद पानी तो चाहिए ही क्योंकि आँखों में आंसू भर जाते थे मिर्ची से और मिर्ची खाने की आदत थी न हमारी. तो घाट पर पानी मतलब - गंगा का बहता निर्मल पानी. प्यास बुझाने का एक मात्र यही साधन होता था. हम भाई बहन थे थोड़े चिकनफट, मतलब साफ-सुथरे रहने वाले और गंदे लोगों को तो देखते भी न थे. पास बैठने की नौवत आती तो खड़े ही सफर करना मंजूर होता था. ये सब बचपन की बात बता रहा हूँ. 

तो बाल्टी में गन्दा पानी बालू मिला देखकर भाई-बहन माँ की ओर देखते और माँ तो माँ होती है समझ जाती थी हमारी पीड़ा. फिर प्यार से पुचकारती और कहती थोड़ा पी लो, सब यहाँ यही पीते हैं. अब जब मिर्ची लगी हो और दोनों कानों से, नाक से धुआं निकल रहा हो और दोनों आखें आग की भट्टी ही जल रही हो तो फिर तोडा और ज्यादा क्या. दमभर पीते थे, और हाँ बीमार भी नहीं पड़ते थे, भले पानी कितना भी गन्दा दिखता हो.

पर अब वो हालत नहीं, हमने जमीन के अंदर के पानी को अपने ही  हाथों जहरीला बना डाला और अब यात्रा में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति कम से कम तीन लीटर बोतल बंद पानी खरीदते ही हैं, जो प्लास्टिक की बोतलों में बंद होता है. सच कहूँ, ये बोतलबंद पानी जिसे आप बड़े शान से खरीदकर पी रहे हैं, ज्यादातर पीने लायक ही नहीं है. अब पानी का स्टैण्डर्ड क्या है, नहीं है वो मामला छोड़ भी दें और ये मान ले कि सभी उच्च स्तरों के हैं तो भी ये बोतलें कहाँ - कहाँ पड़ी और पटकी गई, वो जगहें क्या हैजेनिक थी? कुत्ते इन बोतलों पर चढ़कर कई बार मूत चुके होते हैं, जिसमें हम और आप मुहँ लगाकर पीते हैं. पानी की बोतले खुली जगहों पर कई दिनों तक डायरेक्ट तेज धुप में पड़ी रहती हैं, जहाँ बोतल के प्लास्टिक के साथ पानी का क्या रिएक्शन हुआ? ये तो कोई विज्ञानी ही बता पायेगा, पर मुझे जहाँ तक समझ आता है जाहिर है ये प्लास्टिक गुलाबजल या शरबत तो न ही घोल रहा होगा पानी में. तो पैसे देकर शान से जहर ही ले रहे हैं, और प्रदुषण अलग फैला रहे हैं. जिसका परिणाम हमारे ही विनाश से होना है, जाहिर सी बात है.

तो समाधान क्या है?


पिछले कई यात्राओं से हमने बोतल बंद पानी लेना लगभग छोड़ दिया है. इस वर्ष जिंतनी भी यात्रायें हुई परिवार के साथ सबमें हमने घर से पानी ढोया, होटल के RO का पानी पिया, (वैसे RO भी मेरे लिये संदेह के घेरे में ही है). जिधर भी निकलना हुआ हमने एक-दो लीटर पानी बैग में रखा और उसे ही इस्तेमाल किया. यहाँ तक की नन्हें बच्चों के बैग में भी छोटी बोतल में पानी भर कर उसके कंधे पर टांग दिया, ताकी अपने हिस्से का पानी वो खुद ढोए. जहां कहीं भी RO या फिल्टर नजर आया उससे बोतल को फिर से भरा. मतलब पानी के खाली बोतल को जिसे आप एक बार पीकर शान से स्टेशन और सड़क पर उछाल देते हो न, उस बोतल की जान निकाल दी हमने भर-भर कर. हाँ आपकी तक स्टेशन और सड़क पर उसे उछालने का मजा न मिला मुझे, यही मिस किया. और मिस किया प्रदुषण फ़ैलाने में अपना योगदान. वैसे तो देखा जाये तो हम मानव भस्मासुर के खानदानी हैं, अब वो किससे रिश्ते में फूफा लगता और किसके रिश्ते में ताऊ ये तो पता नहीं, पर हैं सबके सब भस्मासुर की औलादें इसमें कोई दो राय हो ही नहीं सकती. खुद का नाश करने के लिये नित नए खोज करते रहते हैं.

Eureka Aquaguard Personal Water Purifier


खैर, इतना लेक्चर देने का कारण जे है कि हमने बोतल तो लेना छोड़ ही दिया और पानी ढोनेवाला काम करने लगे. कई साल पहले एक ट्रेकर मित्र जो आउटलुक ग्रुप में एक मैग्जीन के सब एडिटर हैं के पोस्ट पर एक बोतल देखी थी. जब वो किसी ट्रेक पर निकल रहे थे और उन्होंने बताया था कि इस बोतल में तालाब, झील, झरने का पानी भर कर भी पी सकते हैं. फिर पिछले साल ही एक और ट्रेकर मित्र ने इस बोतल के बारे में लिखा तो इसे लेने की इच्छा हुई और कुछ दिनों पहले ऑनलाइन Eureka Aquaguard Personal Water Purifier Bottle आर्डर किया, जो कल ही मिला है. जिसमें फ़िल्टर लगा हुआ है और कम्पनी दावा करती है कि सोलिड पार्टिकल्स के साथ साथ 99.9% कीटाणुओं से रहित पानी फिल्टर करके देगा. ये गंदे पानी को भी साफ कर पीने लायक बनाने का दावा करता है, अब इसका टेस्ट तो यात्रा में ही होना है.

वैसे तो हमारा परिवार पंच-प्यारे का है और सबके सब घुमक्कड़ है. आज तक मेरी शायद ही कोई आउटिंग परिवार के बिना हुई या फिर इनलोगों ने होने ही न दी. साल में पांच - छः - सात यात्रायें हो जाती है परिवार सहित, अब आप सोचिये अगर थोड़ा का पानी ढो लें तो कितने बोतलों की बलि होने से बचा सकते हैं. अगर जरूरत से ज्यादा हेल्थ के प्रति जागरूक हैं तो फिर यह बोतल भी एक उपाय है, पर्यावरण बचाने में अपने योगदान के लिये. अभी तो एक बोतल ही ली है, इसकी सफलता के बाद फिर आगे की रणनीति बनेगी कि यह सबके बैग में जाने लायक है या नहीं....

Thursday, August 15, 2019

चल घूम आएं


सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ,
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !!

फोटो: नैनीताल के रास्ते में कहीं (Yayavar Ek Traveler.com से साभार)

कुछ लोग मेरे घूमने - फिरने से जुड़े पोस्ट से बड़े आहत होते हैं और कई मित्र तो इतने जल - भुन जाते हैं कि बस देखकर मुहँ बना आगे बढ़ जाते हैं बिना लाइक, बिना कॉमेंट. और लगे हाथ बुदबुदा जाते हैं पता नहीं कहाँ से पैसे लाता है? 🤔

पर कुछ होते हैं थोड़े हिम्मत वाले, दिलेर 😝 टाइप. तो वो देखते हैं और फिर उलझन में पड़ जाते हैं कि आखिर इतना कोई कैसे घुमक्कड़ी कर सकता है? 🤔 तो ऐसे लोग कभी - कभी पूछ बैठते हैं अमा यार स्पॉन्सर कहाँ से लाते हो? 😜😂

तो आज मैं वही बता देता हूँ, शुभ अवसर है 15 अगस्त और रक्षा बंधन का और मोदीजी ने अपने देश के नाम संबोधन में भी सबको टारगेट प्लान दे दिया है 15 जगहों को तीन साल में घूमने का तो ऐसे लोग और बिलबिला रहें हैं. 😝😂

देखो भाई, मैं एक छोटी - मोटी नौकरी करता हूँ और जो छुट्टियाँ लोग पेट दर्द और सर दर्द में लेते हैं दफ्तर से मैं उसी छुट्टी में छोटी - मोटी घुमक्कड़ी करता हूँ. बाकी होली हो या दीपावली कौनो लेना देना नहीं. मतबल समझे, इसे कहते हैं कुर्बानी. बच्चे के स्कूल जाना हो या डॉक्टर को दिखाना हो बच्चों को वो सब गृहमंत्री देखती है. मने मुझे ऐसी छुट्टियाँ लेनी नहीं पड़ती, जिसके लिए बाकी दफ्तर के लोग अर्जी लगाते हैं. 😜😂     और इसके लिए गृहमंत्री को तैयार किया है कठिन ट्रेनिंग देकर, शादी के बाद से ही - स्वतन्त्र बनो.

इब मामला है पेसे का, आखिर घूमने - फिरने को पेसे तो चाहिए गुरु? 🤔तो वो भी पता ही दूँ.

अपन है बिल्कुल हटके, मने जे मैं नहीं कह रिहा हूँ 😜😂
जे हमरी श्रीमतीजी बोले हैं अपने सखियों से. 🤣😝 
तो भाई बात जे है मैं किसी पार्टी - वाटी में जाता नहीं, तो महंगे कपड़े, परफ्यूम, स्प्रे जरूरत न पड़ती मुझे और गिफ्ट लेना-देना भी होता नहीं. दारू पीता नहीं और न पब देखी कभी और कोई और ऐयाशी की कोई तलब न होती. मतलब कपड़े जरूरत के हिसाब से और सस्ते ही लेता अब. हाँ, एक ज़माना था, जब सबसे मंहगे ब्राण्ड पहनता था. पर अब एक टी शर्ट ही कई साल घसीट लेता हूँ, गृहमंत्री कई टी शर्ट और जींस की सर्जरीकल स्ट्राइक कर चुकी है- बेरंग हो गए, फटने लगे करके पर अपने को कोई फर्क़ पड़ता नहीं.

तो ये जो आप ऐयाशीयों पर ख़र्चते हो न, वही मैं घूमने पर ख़र्चता हूँ. 😜😍और एक मामला है, मुझे रुपये पैसे का कोई मोह - माया है नहीं कि माल आया तो तहखाने में दबा दो. 😝😂 अबे रुपये - पैसे खर्च करने के लिए होते हैं. गधे की तरह कमा क्यों रहे हो जब उसे खुद भी भोग ही न पा रहे?

तो इतना लिखने का मतबल जे है कि थोड़ा सोचो, विचारों, काहे कुंए के मेढक बने हो? और यही वजह है डिप्रेशन में जाते हो, अपनी समस्याओं को लेकर बैठ रोते रहते हो दिन-रात. नींद नहीं आती तो नींद की गोली ले रहे, ब्लड प्रेसर बढ़ रहा आदि-आदि. और डॉक्टर साहब को जाकर तहखाने से निकाल - निकाल माल पहुंचाते हो कि वो ठीक कर देगा. कुछछू नै कर पाएगा आपका डाक्टरवा, बस माल समेटता रहेगा जब तक जिन्दा रहोगे. क्योंकि इलाज पत्ते का कर रहे हैं और बीमार है जड़ मन. उसे घुमाओ - फिराओ, मौज - मस्ती करने दो, मन मयूरा को नाचने दो. अब नाचने दो मतलब शादियों में होने वाला नागिन डान्स मत समझ लेना. 😜😂
कुछ समझ आया हो तो बताना, बड़बड़ाते आगे मत निकल जाना, बिना लाइक और कॉमेंट किए. और जिन्हें और मिर्ची लगी हो, जाओ दारू पियो और मरो. अब अगले जन्म में ही आदमी बनने की कोशिश करना.
😝😜😂

Tuesday, July 30, 2019

घुमक्कडी क्यों जरूरी है





घुमक्कडी क्यों ???


घुमक्कडी अपनी कुंठा शांत करने के लिए नहीं होती,
घुमक्कडी होती है जीने के लिए और मुर्दे इसका स्वाद नहीं जान सकते.
घूमना मतलब खुद को जानना-पहचानना, घूमना मतलब देश के संस्कृति को, अपनी धरोहर को जानना. जब आप बाहर निकलते हैं तो हर एक दिन संघर्ष होता है हर दिन वो आपको जिंदिगी में जीने और परेशानियों से लड़ने कि शक्ति देती हैं. मेरा तो मत हैं- 
“Travel, initially, to lose myself; and travel, next to find myself.”
मुझ से जब कोई पूछता है-
भाई बहुत घूमते हो, अभी कुछ दिनों पहले ही तो घूम कर लौटे न ?
क्या करने जाते हो यार ?
मेरा जवाब होता है -
"पिछली बार प्यास जगाने गया था और अब बुझाने जा रहा हूँ"
😍😛😍
और हाँ, घूमने के लिए ढेर सारे पैसे चाहिए, ऐसा नहीं हैं ?
पर्यटक और घुमक्कडी/ यायावर अलग-अलग होते हैं और घुमक्कड/ यायावर का अपना ही तरीका होता है. पर्यटक से अलग.
मैं खुद छोटी सी नौकरी कर रहा हूँ, किराये के मकान में रहता हूँ.
तो क्या जीना छोड दूँ?
कबाड़ी की तरह सिर्फ कमाने, खाने और बच्चे पैदा करना, पैसे बैंक में छोडकर मर जाना मेरी फितरत नहीं.
यायावरी परमो धर्मः
अंशुमान चक्रपाणि

Sunday, July 14, 2019

सुबह उठकर पानी क्यों पीना चाहिए?

सुबह उठकर पानी क्यों पीना चाहिए?





  • सुबह पानी पीने से, शरीर में मौजूद विषैले पदार्थ निकल जाते हैं, जिससे त्वचा में चमक आती है.
  • सुबह पानी पीने से, नई कोशिकाओं का निर्माण तेजी से होता है.
  • सुबह पानी पीने से, मेटाबॉलिज्म तेज हो जाता है, जिससे मोटापे को कम करने में मदद करता है.
  • सुबह पानी पीने से, पेट साफ रहता है और कब्ज की शिकायत नहीं होती. आजकल इस समस्या से हर दूसरा व्यक्ति जूझ रहा है. पेट साफ रहने से भूख भी खुलकर लगती है.
  • सुबह पानी पीने से, रेड ब्लड सेल तेजी से बनते हैं और इससे आप सेहदमंद रहते हैं. अगर आपको खून की कमी  है तो आज से ही सुबह उठकर पानी पीने की आदत डालें.

Thursday, July 4, 2019

वित्त संस्थानों के पास पड़े हैं लावारिस करोड़ों

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के दो दिनों पहले लोक सभा में दिए जानकारी के अनुसार सिर्फ बैंकों के पास, ऐसी राशि जिसका कोई लेनदार नहीं, 2018 के अंत में 26.8% की वृद्धि के साथ 14,578 करोड़ रुपये हो गई है.


आखिर ऐसा होता क्यों है? आपके करोड़ों रूपये बैंकों, बीमा कंपनियों, पीएफ अकाउंट, डिविडेंट, शेयर और म्यूचुअल फंड में पड़े क्यों रह जाते हैं?

Unclaimed amounts with banks in India.

इसका सबसे बड़ा कारण देश में फाइनैंशियल लिटरेसी की कमी हैं.
आइए इसका कारण और इससे बचने के उपाय जाने, जिसके बारे में आपको कोई नहीं बताएगा:
1. पहला सबसे बड़ा कारण, हिंदुस्तान में फाइनैंश और सेक्स ऐसे विषय हैं जिसपर कोई बात करना नहीं चाहता, और अधूरी जानकारी सिर्फ आपका पैसा ही नहीं, आपके अपनों की जिंदगी भी तबाह करती है.

2. बैंकों में फिक्स्ड डिपॉजिट और रेकरिंग डिपॉजिट, शेयर और म्यूचुअल फंड में ज्यादातर निवेश एकल या सिंगल किया जाता है और इतना छुप - छुपाकर की परिवार के सदस्यों को भी खबर न हो. ऐसी स्थिति में जमाकर्ता के निधन के बाद यह रकम यूँ ही लावारिस अवस्था में सरकार के पास पड़ी रहती है. कभी भी बैंकों के फिक्स्ड डिपॉजिट और रेकरिंग डिपॉजिट, शेयर और म्यूचुअल फंड में निवेश सिंगल मोड में न करें, इसमें परिवार के किसी न किसी सदस्य को जॉइंट् में शामिल करें. लोग दलील देते हैं, नॉमिनी में तो नाम है ही. पर महानुभाव आपके गुजर जाने के बाद नॉमिनी को कैसे पता चलेगा कि यहाँ माल जमा किया है?

3. जॉब बदलना और लगातार बदलते रहना आजकल आम बात है, पर इसके साथ ही पीएफ में जमा राशि पर कभी ध्यान नहीं दिया जाता. इसका सबसे बेहतर उपाय है जॉब बदलें तो पहले पीएफ अकाउंट को ट्रांसफर करवाएं या फिर कुछ समय बाद पुराने पीएफ अकाउंट से पैसे निकाल लें, अगर आपने वही अकाउंट ट्रान्सफर नहीं करवाया.

4. बैंकों में जमा राशि और करवाई गई जीवन बीमा की जानकारी परिवार के सदस्यों को भी दें. और इसके संबंधित सभी कागजात और खातों को एक जगह रखें. जिससे आपके न रहने की स्थिति में भी परिवार को आसानी से मिल सके.

उम्मीद है इसे पढ़कर अमल करेंगे और इसे शेयर कर औरों तक पहुंचाएंगे.

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Sunday, June 16, 2019

जंगल के दावानल की चौकाने वाला सच

बार-बार जंगलों की भीषण आग देखकर बचपन से सोचता था, आखिर ये लगती कैसे है? और हमें बताया समझाया जाता था - 
"गर्मी ज्यादा होने से पेड़ - पेड़ से टकराते हैं और आग लग जाती है."

कितनी चुतियापे वाली बात है कि उत्तराखंड, हिमाचल के जंगलों का तापमान बामुश्किल 30-32 डिग्री जाता है और घने जंगलों और ठण्डी जगहों का तो 15-20 डिग्री ही तापमान होता है तो फिर गर्मी कहाँ हैं पेड़ में आग लगाने वाली. आज Ajit Singh के वॉल पर पहाडों की आग का बड़ा ही बीभत्स रूप के दर्शन हुए. पहली बार जाना कि ये सब प्रायोजित आग है और पहाड़ी लोकल गाँव के लोग ही इसे लगाते हैं. 🤔😢
ऐसे लोगों को तो उसी आग में भुनकर 😠👹 के चील - कौओं को महाभोज देना चाहिए. पढ़िए आप भी असली तथ्य, ये वही लोग है जो मैदानी क्षेत्र के लोगों को पहाड़ी क्षेत्र में आकर उसका नाश करने के लिए कोसते हैं 🙁😔, पर अपने कुकर्मों पर मोतियाबिंद हो जाता है आंखों पर.😎
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Ajit Singh जी के वॉल से पोस्ट :
इस समय हिमांचल के बनी गांव में हूँ । यहां मेरे दोनो बेटे एक Wrestling Academy में रहते हैं और पहलवानी करते हैं । 
कल रात ये पहाड़ियाँ धू धू कर जल रही थीं ।
पहाड़ों में आग लगती नही , लोकल लोग जानबूझ के लगाते हैं । june के महीने में ये इनका हर साल का काम होता है ।

इनका तर्क है कि इस तरह पुराना सूखा घास फूस सब जल जाता है और फिर बरसात के बाद जो नई घास उगती है वो इनके पशुओं के लिए बेहतर होती है ।
इस आग में बड़े पेड़ों को तो हल्का फुल्का नुकसान ही होता है परंतु पिछली बरसात में जो नए पेड़ उगे थे वो बेचारे भस्म हो जाते हैं ।
इसके अलावा जीव जंतु बेचारे .....…. हज़ारों पक्षी इन वनों में रहते हैं ........ उनका क्या ???????

मनुष्य इतना लालची हो चुका है कि इस पूरी धरती पे कब्जा करके भी उसका पेट नही भरा ........ बेचारा , ये दिल मांगे More .......
चारों तरफ गर्मी से त्राहि त्राहि मची है ........ इस बार तो यहां हिमांचल में भी रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ रही है । इसके बावजूद मनुष्य सबक सीखने को तैयार नही .........
उसको More चाहिए.........

असल मे हमारी सरकार हिजड़ी है .......... इस किसान नामक पावरफुल lobby के सामने तुरंत घुटने टेक देती है ........ और ये हमारे पर्यावरण का अंधा धुंध दोहन / विनाश कर रहे हैं । अगर हम जल्दी ही न चेते तो विनाश अवश्यम्भावी है .......... ऐसी तमाम practices जिनसे पर्यावरण का विनाश होता है उनपे तुरंत सख्ती से रोक लगाई जानी चाहिए ।
सरकार के पास power है कि वो पूरे गांव पे सामूहिक जुर्माना लगा सकती है । सरकार को चाहिए कि वो सबसे पहले तो इलाके के सभी ग्राम ओरधान और Revenue officials यानी पटवारी , कानूनगो , नायब तहसीलदार , तहसीलदार ,SDM को suspend करे ...... और फिर सार्वजनिक चेतावनी दे दे कि फिर कभी दोबारा जंगल को आग लगाई तो पूरे गांव या फिर पूरी तहसील को सामूहिक जुर्माना होगा ..........
दो चार को जेल में सड़ाओ तभी सुधरेंगे ..........

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