
अंशुमान चक्रपाणि का दशकों पुराना ब्लॉग नक्कारखाना (Nakkarkhana), विचारों के सैलाब को शब्द देने का एक माध्यम है.
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Tuesday, November 12, 2013
साहित्य विनोद : एक नई ब्लॉग की शरुआत
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फिर नई शुरुआत

Tuesday, July 16, 2013
समस्या स्वर्ण की …..
आज ही हमारे वित्तमंत्रीजी का एक बयान देखा जिसमे उन्होंने हिन्दुस्तान के लोगों को सलाह दी है कि लोगों को स्वर्ण एवम स्वर्ण निर्मित आभूषणों के प्रति मोह छोर देना चाहिए | क्यूंकि इससे देश को काफी नुकसान उठाना पर रहा है और देश की अर्थव्यवस्था सिर्फ लोगों के स्वर्ण एवम स्वर्ण निर्मित आभूषणों के प्रति मोह के कारण बेपटरी हुई जा रही है | मैंने जब वित्तमंत्रीजी के बयान पर गहन विचार किया तो भाई मैं तो समुंद्र में उठने वाले ज्वार-भाटा के सामान विचारों के भवर में उलझ गया | मुझे लगता है कि हमारे वित्तमंत्रीजी ने काफी रिसर्च किया है इस मुद्दे पर, और उन्होंने कसम खा ली है कि चाहे जो हो जाए पर लोगों के स्वर्ण के मोह को वो भंग करके ही रहेगे | तभी तो स्वर्ण के खरीद-बिक्री पर वित्तमंत्रीजी जी पाबंदी लगाने के लिये तरह-तरह के नुस्खे आजमा रहें हैं, जिसके कारण बेतहाशा बेलगाम होती महँगाई पर ध्यान देने के लिये उन्हें समय ही नहीं मिल पा रहा है | भाई, अब बात ये है कि एक ही आदमी से कितना काम करवाओगे | बेचारे वित्तमंत्री ठहरे एक और काम अनेक | क्या-क्या देखे बेचारे … भुखे-नंगे लोगों को सुने जो फालतु में महँगाई-महँगाई चिल्ला रहें हैं | अब मूर्खों जनता को कौन समझाये कि भाई महँगाई ज्यादा होने से ये पता चलता है कि देश तरक्की कर रहा है और सब के पास धन-दौलत मौजुद है | या इस डालर को संभाले जो बिरोधियों के इशारे पर नाच रही है | या फिर पेट्रोल की कीमत को संभाले जो अमेरिका की इशारे पर हमारे वित्तमंत्री को बदनाम करने में लगा है | एक आदमी को अगर इतने सारे मुद्दे सुलझाने हों तो जाहिर सी बात है कोई भी हो, आखिर शुरुआत तो एक से ही करेगा ना | तो भाई आपलोग थोडा इन्तजार करो | जैसे ही वित्तमंत्रीजी स्वर्ण की समस्या को सुलझा लेंगे, बाकी समस्यों पर भी ध्यान देंगे |
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व्यंग्य

Saturday, February 16, 2013
वित्तमंत्री जी से गुहार...
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कविता

नव वर्ष अभिनंदन...
स्व. विनोद कुमार, M.A., LLB., भुतपूर्व स्टेशन प्रबंधक, पु. रेलवे |
स्वर्गीय पिताश्री की लिखी एवम अनुभूति हिंदी बेब पत्रिका पर नववर्ष पर लिखी गई यह कविता पुनः नववर्ष में उनकी याद दिला रहा है :
भेजा ई-मेल
पूछा ओस्लो और अलास्का से
कैसा है नव वर्ष
कैसा रहा गत वर्ष
बोला बेहतर है
पूछो एस्किमो से
ध्रुवप्रदेश में छूट रहा था
रंगबिरंग अग्नि प्रदर्श
हिमखंड टूट कर बिखर रहा था
मंगल ग्रह से पूछा
तो वह चिहुँक उठा
देखो तेरे घर से आया
कौन है उतरा मेरे प्रांगण
आकाश गंगा और
ब्रह्मांड के सूर्येत्तर महासूर्य से
रेडियो भाव में पूछा'
तो रेडियो तरंग को शून्य पर
टिका हुआ ही पाया
होनोलुलू और होकाइडो के
मछुआरों को
चंद्रज्योत्स्नास्नात जलगात पर
मोटर ट्राली कसते पाया
भूकंपघात से त्रस्त निपात
'बम' शहर को थोड़ा सहलाया
पाया खुले आकाश के नीचे
आँसू व सिहरन भी ठहर गई है
गुलमर्ग खिलनमर्ग में
हिम क्रीड़ा यौवन खिलखिलाकर
मेरी ओर हिमकंदुक उछाल कर बोली
'सारे जहाँ से अच्छा
हिंदोस्तां हमारा'
मैं रम्यकपर्दिनि शैलसुता
हिम क्रीड़ा में
किस के साथ है मेरी तुलना समता
उत्तर अभिमुख अयन अंश पर
पूरे भूमंडल को
सर्द ठिठरन में ठिठका पाया
तब भी दिनमान का
स्वर्ण हिमपाखी
सत्वर उड़ता जाता
आओ हम सब
धरती को स्वर्ग बनाएँ
ओजोन परत में
कुछ रफू कराएँ
व्यापार विस्तार महत्वाकांक्षा तज
आतंकमुक्त चंद्र मंगल की ओर
धीरे-धीरे कदम बढ़ाएँ
हर दिन नव वर्ष के
प्रेम मंगल गीत हम गाएँ|
-स्व.विनोद कुमार
(भुतपूर्व स्टेशन प्रबंधक,
पु. रेलवे)
जमालपुर, मुंगेर
(http://www.anubhuti-hindi.org/chhandmukt/v/vinodkumar/index.htm से साभार )
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कविता

आओ फिर से दिया जलाएं...
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