Wednesday, September 3, 2014

कुरियर कंपनी ब्लू डर्ट का गोरख धंधा …

१९९० के दशक में भारतीय डाक विभाग के विसंगतियों और डाक वितरण में आयी खामियों या निकम्मेपन की वजह से देश में प्राइवेट कुरियर कंपनियां कुकुरमुत्ते की तरह पनपे और बढ़े | डाक से भेजी गये पत्र, पार्सल, मनी आर्डर आदि गंतव्य तक नहीं पहुँच पाना जैसे साधारण सी बात हो गई और इस बारे में कहीं किसी जगह कोई शिकायत सुननेवाला कोई नहीं था | पहले- पहल तो डाक-पाल से ही मान-मनोव्वल भरे लहजे में शिकायत  किया जाता  ताकी अगर उसके पास बिना वितरण के पड़ा होगा तो आज या कल तक तो वो इसे दे ही देगा और कई बार ऐसा होता भी था की आपने शिकायत  की नहीं की आपकी डाक आ गई | मान-मनोव्वल भरे लहजे में शिकायत  इस लिये किया जाता था क्यूंकि भविष्य में फिर तो उसी से पत्र, पत्रिका, पार्सल, मनी-आर्डर प्राप्त करना है | अगर गुस्सा गया तो पता चला की आने वाले हर डाक को फाड कर फेक दे तो हम क्या कर सकते थे | ऐसा इसलिए होता था क्यूंकि डाकपाल साधारणतया उसकी नज़र में फालतु सा लगने वाले डाक को पोस्ट ऑफिस  में ही कूड़ेदान में डाल देता है या फिर ठण्ड के दिनों में आग जलाकर उस फालतु से (उसकी नज़र में ) डाक से ठण्ड से निजात पाने का जुगाड़ करने के लिये उसे पोस्ट ऑफिस के किसी कोने में फेकता जाता है | अगर इससे भी बात नहीं बनती तो हम ज्यादा-से-ज्यादा पोस्ट मास्टर से शिकायत करने पहुँच जाते और दो-चार बातें चिल्ला-चिल्ला कर सुनाकर अपने दिल की भड़ास निकाल लेते और बेचारे पोस्ट मास्टर साहब डाक पाल को बुला कर हिदायत देकर भेज देते लेकिन सुधरता तो कुछ भी नहीं था |

ये वजह थी देश में प्राइवेट कुरियर कम्पनियों के  कुकुरमुत्ते की तरह पनपे और बढ़ेने की | और धीरे-धीरे हम लोग कुरियर कंपनियों पर पूरे निर्भर हो गये | चुकी लोगों की सोच बदलने लगी | अब सस्ती नहीं बल्की विश्सनीयता का माप-दंड चल पड़ा, जल्द से जल्द गंतव्य तक पहुचानें का महत्त्व हो गया | डाक विभाग न सिर्फ अपनी विश्सनीयता पूरी तरह से खो चुका था बल्कि और दिन-ब-दिन उसमे गिरावट होती गयी |

इन सब कारणों से कुरियर कंपनियों की चांदी होती गयी और लोग धीरे-धीरे पोस्ट-ऑफिस की डाक सेवा के बदले कुरियर कम्पनीयों पर निर्भर होते चले गये |

अब हालत ये है कि कुरियर कंपनियां हरेक पैकेट या हरेक पार्सल पर ग्राहकों से मोटी रकम तो वसूलती है, लेकिन वो गंतव्य तक पहुंचेगी इसकी कोई गारंटी नहीं |  यानि जहां से चले थे एक लंबे रास्ते चल वापिस वहीँ पहुँच गये | हालत फिर वही डाक विभाग वाली हो गई | मेरी ब्लू-डार्ट जैसी नामी-गिनामी कुरियर कंपनी की सेवा का एक नहीं कई बार का अनुभव है | डाक जिसे कुरियर कंपनियां अंग्रजी में कांसिग्न्मेंट कहते हैं, दिल्ली से चली जिसके बदले डाक विभाग से तीन गुना राशी कंपनी ने वसूल की, लेकिन पुरे एक महीने बाद तक वो दिल्ली से भागलपुर नहीं पहुँच सकी | सबसे कमाल की बात तो ये कि कंपनी की वेब-साईट पर मेरे कांसिग्न्मेंट को वितरित या प्राप्त हुआ दिखा दिया गया और वो भी सिर्फ ४ दिनों में | यहाँ-वहाँ शिकायत करने पर कहीं जाकर मुझे मेरी कांसिग्न्मेंट मिली, जो कि ब्लू-डार्ट के ऑफिस में वितरण की राह देखते-देखते निराश की धुल से सनी थी |

अब मैंने कशम ले ली कि चाहे जो हो जाये अब कोई भी डाक सिर्फ और सिर्फ पोस्ट-ऑफिस के द्वारा ही भेजूंगा| क्यूंकि इन लंबे समय के साथ डाक विभाग भी बदल गया है, इसकी स्पीड-पोस्ट सेवा काम खर्च में ब्लू-डार्ट जैसी कंपनियों से भी कई गुना अच्छी सेवा उपलब्ध करा रही है |

………. तो अंत में बस इतना ही कहना चाहता हूँ –“लौट के बुद्धू घर को आये"

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