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होमेमेड गेहूं की आटे से बने बिना अंड्डे के केक. कोई कमी दिख रही है क्या? फिर बाजार क्यों जाना. |
कल ही एक पोस्ट लिखी थी, जिसका सार था आत्मनिर्भर बनना, फिर मोदी जी ने रात्रि में आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ा दिया. अब आप इस पोस्ट को पढ़कर खुद देख लो आप आत्मनिर्भर हो सकते हो या सिर्फ गप्पे मर सकते हों आत्मनिर्भरता की. कल लिखी पोस्ट को यहाँ देख सकते हैं - https://nakkarkhaanaa.blogspot.com/2020/05/blog-post_26.html
आत्मनिर्भरता का सबसे पहला अध्याय शुरू होता है पेट से. तो सबसे पहले बाजारुपन छोडिये और किचन में खुद पसीने बहाकर अपनी मेहनत से जो भी खाने का मन करे, बनाने का प्रयास कीजिये. मैं किसी को भी अपनी चटोरी जीभ को बांधने को नहीं कह रहा, क्योकि मैं खुद ही बड़ा चटोरा हूँ. अगर आप खानपान के मामले में आत्मनिर्भर हो गए और इसके लिए आपको बाजार पर निर्भर नहीं होना पड़ता. तो आप घरेलु स्तर पर आत्मनिर्भरता को कुछ हद तक प्राप्त कर चुके हैं. और अगर यही नहीं हो पा रहा आपसे, तो फिर आत्मनिर्भरता की बात कोरी कल्पना के सिवा कुछ नहीं.
पर मेरी चटोरीपंथी का सोर्स बाजारु नहीं. मेरी चटोरीपंथी पुर्णतः घर में बने आइटम से पूरी होती हैं. जिसमें पहले माँ का और अब श्रीमतीजी का पूर्ण सहयोग रहता है. श्रीमतीजी को अपने घर का सैफ का तगमा दे दिया है. भले मेरी प्रयोगधर्मिता के चक्कर में कई बार गड़बड़ भी होते रहते हैं और श्रीमतीजी हथियार डाल मैदान छोड़ने को होती भी हैं, पर पीछे से सपोर्ट देकर टिकाये रहता हूँ मैदान में. अब आप कहेंगे की किचन में क्या प्रयोगधर्मिता ?
तो भाई, प्रयोग श्रीमतीजी जी के किचन में अजब-गजब होते रहते हैं, बिना मैदे के केक, बिना मैदे की जलेबी, बिना मैदे के गोलगप्पे, बिना मैदे के मठरी और नमकीन. बिना रिफाइन के सारे पकवान, बिना तेल के मैं नहीं कह रहा.... रिफाइन कितना खतरनाक है इसका अंदाजा आपको तब होगा जब घर में कोई हार्ट का मरीज हो जायेगा. पनीर टिक्का से लेकर मंचूरियन तक और मिठाई से लेकर नमकीन तक घर में. आइसक्रीम घर में, महिलाओं की पहली और अंतिम इच्छा होने वाली गोलगप्पे भी घर में बने तो फिर कही और क्यों जाना.
चलिए आज कुछ झलक दिखता हूँ, मेरी सैफ श्रीमतीजी के किचन से निकले आइटमों की, जिसे क्लिक किया जा सका. ज्यादातर मामलों में प्लेट सामने आने के बाद ही हम टूट पड़ते हैं, तो फोटो लेना रहा ही जाता है.
सबसे पहले पारंपरिक कचौरी, आलू की सब्जी (जिसे आलू की भुजिया कहते हैं हमारे यहाँ) के साथ गाजर का हलवा.
गाजर का हलवे को क्यों अकेला छोड़ा जाएँ
बिहार-बंगाल की परमप्रिय मुढ़ी और पकौड़े
बेक द केक
घर के केक की परंपरा दो दशक पुरानी हो चुकी है. वैसे ये केक खानदान की बड्डी तगड़ी सैफ मेरी बहनजी ने बनाया था.
मीठे-मीठे बूंदी नमकीन के साथ आपने खाएं ही होंगे.
हाजिर है कल ही फिनिस किए गए घर में ही बने बूंदी.
जलेबी और इमरती बिहार-यूपी के साथ उत्तर भारत में शायद सबसे ज्यादा खाये जाने वाले मिठाइयों में हो. जलेबी भी हमारी सैफ घर में ही बना डालती हैं और वो भी बिना मैदे और रिफ़ाइन्ड.
होली पर पकवान सबके घर बनते हैं, फिर इसी पारंपरिक को अपनी आदत क्यों नहीं बना पाते.
मेरी पसंदीदा मुंग दाल के दही बड़े.
इसके स्वाद के आगे उरद दाल के दही बड़े, कही ठहरते हैं भला.
हम तो भुजिया और नमकीन में भी आत्मनिर्भर हैं... और आप ???
लोग पकौड़े खाने भी बाजार की ओर भागते हैं. हद है यार शादी में पहले लड़की से पूछना था ना. खाना बनाना भी आता है या सिर्फ खाती है. कुंवारें लोग खाने के शौक़ीन हों तो लड़की भी किचन में एक्सपर्ट देखना भाई... तभी आत्मनिर्भर हो सकता हैं हिंदुस्तान.
पोई साग के पत्तों के पकोड़े. पोई खुद छत पर उगाई, पूरी ओर्गेनिक.
इसके स्वाद का कोई जवाब ही नहीं.
खांटी देशी, शाम का हल्का-फुल्का नास्ता
गोलगप्पे किसी पसंद नहीं, पर मैं कभी बाहर इसे खा ही नहीं सकता.
ये गोलगप्पे कुछ स्पेशल भी हैं, ये आटे से बने गोलगप्पे हैं.
समोसे से मुझे सख्त नफरत है. कई बार इसे बनाते देखा है...
सड़े आलू का भरपूर इस्तेमाल होता है, इसलिए मैं कभी बाहर इसे खा ही नहीं सकता. पर जब घर में मैदे की जगह आटे से बने, रिफ़ाइन्ड की जगह सरसों तेल तो फिर खाते वक्त गिनती भी नहीं करता.
पोई साग के पत्तों के पकोड़े छत के खेत में उग रही है, जो पूरी ओर्गेनिक है. इसका दौड़ तो जब - तब चलता ही रहता है.
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