मुम्बई में उत्तर भारतीयों को वेवज्ह निशाना बनाया जाना दुर्भाग्पूर्ण है जिस तरह की वाहियात और गैर-जिम्मेदाराना बयान राज ठाकरे ने अभी दी है और उसके बाद मजदूरी करने वाले, टैक्सी चालकों जैसे लोगो को निशाना बनाया जा रहा है वो तो भारतीय संविधान पर ही सवाल उठा रहे हैं जिसमे ये कहा गया है की भारत का कोई भी नागरिक भारत के किसी भी हिस्से मे निवास कर सकता है या जीवन निर्वाह के साधन जुटा सकता है लेकिन मुम्बई के तथाकथित आकाओं को अपने लोगो को दिखाने के लिए जब कुछ नही होता तो एक ही मुद्दा अपनी जान बचाने के लिए नज़र आता है और वो होता है उत्तर भारतीयों को मुम्बई से निकालने का मुद्दा
राज ठाकरे हों या बाल ठाकरे दोनों के लिए हिन्दीभाषी लोग मुम्बई पर बोझ के समान ही है लेकिन ये दुर्भाग्यपूर्ण ही है की कोई भी मुम्बई को मुम्बई बनाने मे हिन्दीभाषी की भूमिका को स्वीकार नही कर रहे हैं
बिहार या उत्तर प्रदेश के ज्यादातर लोग मेहनतकश के रूप मे मुम्बई मे काम करते है और मराठी लोग इतने निकम्मे और आलसी हो चुके हैं की उन्हें मेहनत वाले कामों के लिए कोई रखना पसंद नही करता जिनकी वजह से अब मराठियों को असुरक्षा की भावना घर करने लगी है, मानसिक रूप से वो अब हिन्दीभाषियों से डरने लगे हैं जिसके परिणाम सरूप हिन्दीभाषियों पर हमला, बच्चन के लिए जहर सब के सब मराठियों के मानसिक रोग को उजागर करते है

अंशुमान चक्रपाणि का दशकों पुराना ब्लॉग नक्कारखाना (Nakkarkhana), विचारों के सैलाब को शब्द देने का एक माध्यम है.
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Friday, February 8, 2008
महाराष्ट्र और हिन्दी भाषियों पर हमला
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विचार-विमर्श

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