Thursday, August 15, 2019

चल घूम आएं


सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ,
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !!

फोटो: नैनीताल के रास्ते में कहीं (Yayavar Ek Traveler.com से साभार)

कुछ लोग मेरे घूमने - फिरने से जुड़े पोस्ट से बड़े आहत होते हैं और कई मित्र तो इतने जल - भुन जाते हैं कि बस देखकर मुहँ बना आगे बढ़ जाते हैं बिना लाइक, बिना कॉमेंट. और लगे हाथ बुदबुदा जाते हैं पता नहीं कहाँ से पैसे लाता है? 🤔

पर कुछ होते हैं थोड़े हिम्मत वाले, दिलेर 😝 टाइप. तो वो देखते हैं और फिर उलझन में पड़ जाते हैं कि आखिर इतना कोई कैसे घुमक्कड़ी कर सकता है? 🤔 तो ऐसे लोग कभी - कभी पूछ बैठते हैं अमा यार स्पॉन्सर कहाँ से लाते हो? 😜😂

तो आज मैं वही बता देता हूँ, शुभ अवसर है 15 अगस्त और रक्षा बंधन का और मोदीजी ने अपने देश के नाम संबोधन में भी सबको टारगेट प्लान दे दिया है 15 जगहों को तीन साल में घूमने का तो ऐसे लोग और बिलबिला रहें हैं. 😝😂

देखो भाई, मैं एक छोटी - मोटी नौकरी करता हूँ और जो छुट्टियाँ लोग पेट दर्द और सर दर्द में लेते हैं दफ्तर से मैं उसी छुट्टी में छोटी - मोटी घुमक्कड़ी करता हूँ. बाकी होली हो या दीपावली कौनो लेना देना नहीं. मतबल समझे, इसे कहते हैं कुर्बानी. बच्चे के स्कूल जाना हो या डॉक्टर को दिखाना हो बच्चों को वो सब गृहमंत्री देखती है. मने मुझे ऐसी छुट्टियाँ लेनी नहीं पड़ती, जिसके लिए बाकी दफ्तर के लोग अर्जी लगाते हैं. 😜😂     और इसके लिए गृहमंत्री को तैयार किया है कठिन ट्रेनिंग देकर, शादी के बाद से ही - स्वतन्त्र बनो.

इब मामला है पेसे का, आखिर घूमने - फिरने को पेसे तो चाहिए गुरु? 🤔तो वो भी पता ही दूँ.

अपन है बिल्कुल हटके, मने जे मैं नहीं कह रिहा हूँ 😜😂
जे हमरी श्रीमतीजी बोले हैं अपने सखियों से. 🤣😝 
तो भाई बात जे है मैं किसी पार्टी - वाटी में जाता नहीं, तो महंगे कपड़े, परफ्यूम, स्प्रे जरूरत न पड़ती मुझे और गिफ्ट लेना-देना भी होता नहीं. दारू पीता नहीं और न पब देखी कभी और कोई और ऐयाशी की कोई तलब न होती. मतलब कपड़े जरूरत के हिसाब से और सस्ते ही लेता अब. हाँ, एक ज़माना था, जब सबसे मंहगे ब्राण्ड पहनता था. पर अब एक टी शर्ट ही कई साल घसीट लेता हूँ, गृहमंत्री कई टी शर्ट और जींस की सर्जरीकल स्ट्राइक कर चुकी है- बेरंग हो गए, फटने लगे करके पर अपने को कोई फर्क़ पड़ता नहीं.

तो ये जो आप ऐयाशीयों पर ख़र्चते हो न, वही मैं घूमने पर ख़र्चता हूँ. 😜😍और एक मामला है, मुझे रुपये पैसे का कोई मोह - माया है नहीं कि माल आया तो तहखाने में दबा दो. 😝😂 अबे रुपये - पैसे खर्च करने के लिए होते हैं. गधे की तरह कमा क्यों रहे हो जब उसे खुद भी भोग ही न पा रहे?

तो इतना लिखने का मतबल जे है कि थोड़ा सोचो, विचारों, काहे कुंए के मेढक बने हो? और यही वजह है डिप्रेशन में जाते हो, अपनी समस्याओं को लेकर बैठ रोते रहते हो दिन-रात. नींद नहीं आती तो नींद की गोली ले रहे, ब्लड प्रेसर बढ़ रहा आदि-आदि. और डॉक्टर साहब को जाकर तहखाने से निकाल - निकाल माल पहुंचाते हो कि वो ठीक कर देगा. कुछछू नै कर पाएगा आपका डाक्टरवा, बस माल समेटता रहेगा जब तक जिन्दा रहोगे. क्योंकि इलाज पत्ते का कर रहे हैं और बीमार है जड़ मन. उसे घुमाओ - फिराओ, मौज - मस्ती करने दो, मन मयूरा को नाचने दो. अब नाचने दो मतलब शादियों में होने वाला नागिन डान्स मत समझ लेना. 😜😂
कुछ समझ आया हो तो बताना, बड़बड़ाते आगे मत निकल जाना, बिना लाइक और कॉमेंट किए. और जिन्हें और मिर्ची लगी हो, जाओ दारू पियो और मरो. अब अगले जन्म में ही आदमी बनने की कोशिश करना.
😝😜😂

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