आज दफ्तर का
साप्ताहिक अवकाश का दिन है, ये इसलिये बता रहा हूँ कि इस प्राणी का रविवार नहीं
होता | अभी बिस्तर पर निद्रा देवी की आगोस से अलसाया उठा ही था और मदहोशी
छाई हुई ही थी कि सुबह-सुबह बेटे ने
गुसलखाने में घुसने के पहले ही तुगलकी फरमान सुना दिया –
“आज पापा मुझे स्कूल बस में छोड़ने जायेंगे, नहीं
तो मैं स्कूल नहीं जाऊंगा|”
छुट्टी का दिन मतलब एक दिन की बेरोजगारी | श्रीमतीजी ने भी मुस्कराते
हुए कहा छोड़ आइये ना आप ही | बेचारा शादी-शुदा निरीह-सा आदमी नामक प्राणी कर भी कर
सकता है इस परिस्थिति में | मैं भी घुस गया जल्दी से दूसरे गुसलखाने में, आखिर बस स्टैंड पर छोड़ने जाने के
पहले नित्य-क्रिया से निवृत होने के साथ थोबड़े को थोड़ा दुरुस्त तो करना ही था | बेटे
के तैयार होते-होते मैं भी तैयार होकर अपनी फटफटिया निकाली और नखरिले नटखट को बस
स्टैंड छोड़ आया |
घर वापसी के पहले
अपने हवाओं में लहराते टेढ़े-मेढे जुल्फों को थोड़ा रास्ते पर लाने के लिए केश कर्तनालय का रुख किया | अपने
पसंदीदी केश कर्तनालय में घुसने के पहले बता दूँ, ये है तो छोटा सा केश कर्तनालय
पर नये-नवेले लौंडों की भीड़ मधुमक्खी के छत्तें की तरह लगी रहती है | कारण... कारण
ये है कि राजा जो इस केश कर्तनालय के संचालक हैं के साथ में जादू है | आपको चाहे
किसी भी फ़िल्मी हस्ती के घोसले को अपने खोपड़ी पर बनवानी हो या खोपड़ी को आजकल की नई
चलन के हिसाब से आधी सफाचट, आधी घोसले में तब्दील करवानी हो, सब करता है ये राजा
भाई और वो भी बिना जेब काटे | मैं इतना क्यों बता रहा हूँ इस केश कर्तनालय के बारे
में, कहीं ये कोई प्रोमोशनल या स्पोंसर्ड पोस्ट तो नहीं???
अरे
नहीं भाई, मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं, असल में यही तो मेरे दुःख का कारण हैं | मैं
अपनी जुल्फों की कटाई- छंटाई तब तक टालता रहता हूँ, जब तक मेरी शक्ल भालु जैसी
नहीं हो जाती | इसका कारण है केश कर्तनालय में जमी मधुमक्खी के छत्तें सी भीड़,
जिसके कारण अपनी पारी के इंतजार में दो-दो घंटे बिताने पड़ते हैं | और आज तो छोटे
नवाब की भी जुल्फों को सवारना था, जो भालू जैसी हुई नहीं थी पर अगले साप्ताहिक अवकाश तक हो ही जाने वाली थी | मतलब आज ढाई-तीन घंटे
का सत्यानाश वो भी उस साप्ताहिक अवकाश
वाले दिन जो पन्द्रह दिनों बाद मिल रही हो
| खैर किया क्या जाये, कहीं और जाने से संतुष्टि भी नहीं मिलती | लेकिन जैसे ही
अपनी फटफटिया बाहर खड़ी कर अन्दर गया तो पता चला कि आज भीड़ नहीं है और एक, जिनकी लहलहाती
हरी-भरी जुल्फों की बगिया को बेरहमी से रेगिस्तान बनाया जा रहा था के बाद मेरे ही
खोपड़ी पर कैची और उस्तुरा वाला हाथ फिरने वाला था | खैर, लगभग पन्द्रह मिनट में
अपनी बारी आ गई और अपनी जुल्फों
की कटाई-छंटाई, खाद-पानी का काम इतनी जल्दी निपट जाने से मन ही मन खुश भी था |
अब
आप कहेंगे बेकार ही इतना चिल-पो कर रहा हूँ और एक फालतु पोस्ट भी लिख डाला | रुकिए
... रुकिए मेरा दुःख अभी समाप्त नहीं हुआ | छोटे नवाब को छुट्टी के बाद लेकर जब
दोपहर में वापस उसी केश कर्तनालय पहुँचा तो पता चला कि पांच-छः लौंडे जमें हैं
पहले से | मतलब कम-से-कम ढाई-तीन घंटे तो लगने ही थे | फिर सोचा नहीं इतना समय
नहीं दे सकता तो चल पड़ा दूसरे केश कर्तनालय की ओर जो पास में ही था | वहाँ भी चार
लोग जमें थे तो फिर तीसरी केश कर्तनालय में चला गया | हाँ, यहाँ भीड़ नहीं थी, सुबह
जैसे मुझे संयोग से ऐसा मिल गया था मेरे पसंदीदा केश कर्तनालय में सिर्फ एक | कुछ
ही देर में छोटे नवाब ठाठ से बैठ अपना केश बनवा रहे थे और मैं बैठा सोच रहा था क्या
हम पुरुष अपनी केश की थोड़ी-मोडी कटाई-छंटाई खुद से घर पर नहीं कर सकते क्या ???
कुछ तो जुगत लगानी पड़ेगी, अब इतने समय की बर्बादी मैं केश कर्तनालय में फालतु
बैठकर तो नहीं कर सकता |
जो रास्ते मुझे सूझ रहें हैं वो ये हैं :
१. पहला बात जो मेरे कुराफाती खोपड़ी में आ रही थी वो थी अपनी केश-सज्जा या कटाई-छंटाई
खुद करना | अब वो बाद में कैसा दिखता हैं, ये देखने वाली बात होगी | लेकिन ये होगा
कैसे ??? देखता हूँ, शायद कोई मिल जाये जुगत बताने वाला |
२.
अपनी लहलहाती हरी-भरी जुल्फों
की बगिया को, भले ही थोडा
रेगिस्तानी इलाका भी है, बेरहमी से रेगिस्तान बना डालूं
और उसे जैसे दाढ़ी बनाता हूँ वैसे ही क्रीम पोतकर चिकनाता रहूँ | केश कर्तनालय का जिन्दगी भर का झंझट ही
खत्म |
३.
जैसा चल रहा है वैसा चलने दूँ, बस कोई टुटपुंजिया-सा केश कर्तनालय की खोज कर लूँ
ताकि अधिक समय बर्बाद ना करना पड़े | अब वो चाहे कैसा भी शक्ल बना दे, समय तो बचेगा
|
यही
थी मेरी बड़ी परेशानी, मेरी समस्या |
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