Sunday, June 14, 2020

सूसाइड और हमारा समाज


एक्टर सुशांत सिंह राजपूत का इस तरह सूसाइड कर लेना, बहुत दुखद खबर है. श्रीमती ने अभी बताया, उन्हें भी बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाते वक्त शायद वीडियों दिख गया. मैं तो समाचारों से मतलब ना के बराबर ही रखता हूँ. समाचार ऑनलाइन सर्च किया तो पता चला कई हित फिल्मों में अभिनय कर अपनी धाक जमा चुके थे. मैं फ़िल्में देखता नहीं, इसलिए नाम से भी वाकिफ नहीं था. हाँ, यहाँ-वहाँ फिल्म के पोस्टर पर कई बार ये चेहरा देख चूका था.

डिप्रेशन या अवसाद किस कदर लोगों को लील रहा है. ये इसका उदाहरण है. कोरोना काल में लम्बे समय तक घरों में बंद होने से इसे और सबल मिला. एक्टर सुशांत सिंह राजपूत जैसे एक्टर का ऐसा करना, दर्शाता है कि लोग अपनी स्ट्रेस को मैनेज नहीं कर पा रहे हैं. लोगों को ये पता नहीं कि हाई लेवल के स्ट्रेस को कैसे मैनेज करें. कोरोनाकाल के लॉक डाउन में कई लोगों को फ्री सलाह दी. कई मित्रों ने इसका फायदा उठाया और आज खुश हैं. बार-बार धन्यवाद कहते हैं. अवसाद से निकलने और जीवन के हारते पल में बस एक तिनके का सहारा भी काफी होता है. 

हम सबकुछ करते हैं, सीखते हैं. पर भारत में कुछ चीजों पर कोई सीख ना समाज से मिलती है और ना परिवार से. एजुकेशन सिस्टम की तो बात करनी ही बेकार है. भारत में सबसे पहली चीज, जिसपर कोई बात करना नहीं चाहता वो हैं पैसा. मतलब मनी मैनेजमेंट पर कोई बात करना नहीं चाहता. पैसे पर बात करना भारत में एक टेबू है. जिस तरह से सेक्स पर बात करना एक टेबू है. सेक्स और उससे जुडी समस्या भारत में सबसे गंभीर रूप इसलिए ले लेती है. कोई खुलकर इसपर बात करना तो क्या, सोचना तक नहीं चाहता.

उसी कड़ी में स्ट्रेस भी एक विषय है, जो ऊँचे-ऊँचे खवाब, कामयाबी और भागदौड़ भरी जिन्दगी में बेहिसाब बढ़ रही है. पर स्ट्रेस मनेजमेंट कैसे करें, ये अधिकतर लोग समझ नहीं पाते. मैं हमेशा इस बात पर बल देता हूँ की हर इंसान को अपने अन्दर दबे पड़े हॉबी, हुनर, शौक की खोज करनी चाहिए. जिसे एक जूनून की तरह पालना चाहिए. बिना किसी शौक या हॉबी और हुनर क्या इन्सान को सच में इन्सान कहा जा सकता है. मैं हमेशा कहता हूँ, ऐसे इन्सान दोपाया जानवर से ज्यादा कुछ नहीं. कई लोगों को बहुत बुरा है. पर सच्चाई यही है. यही बेहिसाब बढ़ते स्ट्रेस को मैनेज करने का मैजिक फार्मूला है. इसके साथ एक्टिव लाइफ स्टायल जीना भी बेहद जरुरी है. हमेशा एक्टिव रखिये खुद को. एक्टिव पर्सनालिटी के लोग कभी स्ट्रेस से डिप्रेशन में नहीं जा सकता. डिप्रेशन अधिकतर सुस्त और आलसी लोगों को अपने चपेट में लेता है. पुरे दिन बिस्तर पर पड़े रहना, टीवी के सामने बैठे रहना ये सब सुस्त और आलसीपन के ही लक्षण हैं.

योग को जीवन का एक हिस्सा बनाए. योग जीवन के हर मोड़ पर, हर असफलता को अपनाना सिखाता है. योगाभ्यास से स्ट्रेस और डिप्रेशन को बहुत ही आसानी से मैनेज किया जा सकता है. योग और वाक से स्ट्रेस लेवल आश्चर्यजनक रूप से कम किये जा सकते हैं. पर सबसे जरुरी बात ये है की इसके लिए कदम आपको खुद ही उठाना पड़ेगा. ये सब कोई दूसरा आपके लिए नहीं करेगा. जीवन लीला समाप्त कर लेना भी बहुत आसान फैसला नहीं है. मैं तो मानता हूँ सूसाइड करने के लिए भी बड़ा कलेजा चाहिए. इसी हिम्मत को अगर जीवन के उस स्ट्रेस, अवसाद, परेशानी से लड़ने में लगा दें, तो जरुर कामयाबी मिलेगी. पर लोग हमेशा शार्टकट की ओर भागते हैं और जीवन लीला समाप्त कर लेना ही आसान रास्ता नजर आता है.


अपने लाइफ स्टाइल को ठीक करिए, एक्टिव रहिए. जीवंत और एक्टिव बनने के साथ परिस्थिति के साथ चलना सीखिए. अपने हॉबी, शौक की खोज करिए अगर आज तक नहीं खोज पाए. हर किसी का कोई ना कोई शौक या हॉबी होता है, जो जीवन के भागदौड़ में कहीं दम तोड़ देते हैं. आपकी शौक या हॉबी मूड बूस्टर की तरह होते हैं, जो आपको रिचार्ज कर देते हैं. 

श्रीमद्भागवतगीता को अपनाइए. मेरा तो मानना है गीता MBA, इंजीनियरिंग जैसे हाइयर एजुकेशन में एक विषय के रूप में शामिल होना चाहिए. कोशिश कीजिये, एक गीता हमेशा आपके पास हो. डायरी से भी छोटी साइज में गीता प्रेस की गीता हिंदी, अंग्रेजी के साथ कई अन्य भारतीय भाषों में उपलब्ध है. आज भी गीता उतना ही सबल आपको और हम सबको दे सकता है, जितना युध्भूमि में इसके ज्ञान ने अर्जुन को सबल दिया था. इसे जीवन का अंग बनाइये, पढ़िए. गीता जीवन के हर मोड पर रास्ता दिखाने में सक्षम है. 

3 comments:

  1. BILKUL SAHI GITA BHAUY KUCH SIKHATI HAI. POSITIVE REHNA KHASKKAR

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  2. ,बहुत अच्छा सामयिक लेख। इस आत्महत्या को किसानों की आत्महत्या की घटनाओं से अलग करके देखना होगा। अवसाद का कारण नितांत व्यक्तिगत तो होता ही है,प्रतिष्ठा, वैभव,संपत्ति का संभावित उतार चढ़ाव भी सेलेब्रिटीज़ के जीवन को बहुत प्रभावित करता है। फिल्मों में निभाई गयी भूमिका फ़िल्म की स्टोरी और निर्देशन का हिस्सा होती है, उसके एक्टर के निजी जीवन का हिस्सा होना आवश्यक नहीं है। लेकिन एक नौजवान,इंजीनियर ग्रैजुएट अभिनेता, जिसके इतने प्रशंसक हों उसका जाना बेहद पीड़ादायक है।लॉक डाउन में अवसाद की घटनाएं बढ़नी स्वाभाविक हैं।यह समय है जब हमें तैयारी का संकल्प लेना होगा कि योग साधना के विभिन्न अवयवों की सहायता से हम मन और शरीर के संबंधों की विवेचना करें और चिंतन को विस्तार देते हुए अवसाद से अपने को बचाएं।

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    1. बहुत ही सही आंकलन है आपका. अवसाद एक ऐसी अवस्था है जिसे शायद हर इंसान को कभी ना कभी सामना करना पड़ता है. पर जो हिम्मत रखते हैं, डटकर सामना करते हैं और लड़ते हैं वो सफल होते हैं. मेरा योग में २० साल का अनुभव कहता है की अवसाद को सिर्फ योग साधना से निदान करना संभव नहीं. मैंने खुद कई आश्रमों में कई - कई सालों से रह रहे और साधनारत लोगों को गहरे अवसाद के कुंएं में गिरे पाया है.

      इसके लिए खुद को सकारात्मक, रचनात्मक और एक्टिव रखना बेहद जरुरी है. अगर इन तीनों का आभाव होगा तो किसी भी योग पद्धित से अवसाद का निदान संभव नहीं.

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