Tuesday, June 30, 2020

मुफ्तखोर भारत

मोदीजी का देश के नाम लॉक डाउन के घोषणा से लेकर अब तक का छठा संबोधन, अभी-अभी मोदीजी के वेबसाइट पर सुना. सुनकर ये तो पता चल गया कि सरकार अब ये सांत्वना नहीं दे रही कि कोरोना इस महीने चला जाएगा या अगले महीने चला जाएगा. मतलब सरकार अब ये समझ चुकी है, देश की हालत आने वाले दिनों में और भी बदतर होने वाला है.

पर इसके लिए जिस तरह से सरकार लोगों को मुफ्तखोरी की रबड़ी बाँट रही है, ये अर्थव्यवस्था को बिलकुल ही पंगु बना देगा और लोगों को कामचोर. हमारा ग्रामीण क्षेत्र पहले से ही मजदूरों और कामगारों की कमी झेल रहा. ग्रामीण मजदुर या तो पलायन कर रहे हैं या फिर मुफ्त की रोटी मचान पर बैठकर तोड़ रहे हैं. इस तरह से लोग और निकम्मे और आलसी बनेंगे. जब लोगों का पेट बैठ-बिठाए ही भरता रहेगा, तो फिर कोई क्यों काम करे. 

वाह मोदीजी डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ, सेना, रेलवे, सफाई कर्मी जो इस कोरोना काल में जान हथेली पर लेकर काम कर रहे हैं, उन्हें तो आप उपहार में सैलरी पर कैंची चला रहे हो और यहाँ 90 करोड़ लोगों को मुफ्त की रबड़ी बाँट रहे हो, जो दो रूपये किलो की राशन खाकर पहले ही निकम्मे और कामचोर हो चुके हैं. आत्मनिर्भर भारत बने ना बने, निकम्मा भारत तो जरुर बनेगा.
जय हो... जय हो. 


देश की हालत क्या होगी, यही सोचकर दशकों पहले लिखी मेरी ये कविता आज सहसा ही याद हो आई. ये 2002 में उस समय के दिग्गज हिंदी पत्रिका में ऑनलाइन छपी थी. 


नई दिशा

पहले अच्छी तरह से
हडडी–पसली तोड़ दो.
खड़ा न हो सके
ऐसा निचोड़ दो.
टूटकर पंगु हो जाए
तब देश को नया मोड़ दो.

-अंशुमान चक्रपाणि 
(http://hindinest.com/kavita/2003/034.htm)

No comments:

Post a Comment

इसे भी देखे :