Friday, July 10, 2020

क्या आप भी ऐसी ही हालत में जाना चाहते हैं?

अंधों की बस्ती में फिर आइना बेचने आया हूँ

भागलपुर शहर में पहले ही कोरोना का तांडव शुरू हो चूका है. बिना किसी मुहैया सुरक्षा उपायों के मार्च से इमरजेंसी ड्यूटी पर काम पर लगे भागलपुर रेलवेकर्मीयों में से दो दिनों में दर्जन भर लोग कोरोना की चपेट में आ गए हैं. पर भागलपुर में रहने वाले किसी भी रेलवेकर्मी की अभी तक जाँच नहीं की जा सकी. भागलपुर के सभी संक्रमितों की हालत सीरियस, प्रशासन सो रहा है. ना ही टेस्ट किया जा रहा और ना ही हॉस्पिटल में भर्ती की गई. सबके-सब बेबस से मायागंज और सदर हॉस्पिटल के चक्कर काट - काट कर आखिर घर वापस आ गए. जमालपुर से आने वाले एक कर्मी की मुंगेर में की गई टेस्ट रिपोर्ट पोजेटिव आई. संक्रमितों के परिवारों वालों का हाल बेहाल है, सबके सब हिम्मत हार रहे हैं. रोना-ढोना शुरू हो चूका है. 

हॉस्पिटल और सरकारी डॉक्टर संक्रमितों के टेस्ट करने में इतना खौफ खा रही है. जबकि ये डॉक्टर सामान्य सर्दी खांसी वालों को भी बिना पीपीई किट पहले और दो - दो ग्लब्स एक के ऊपर एक घुसेड़े देखते तक नहीं. इतनी तैयारी के बाद भी देखते हैं तो कम से कम 15 फिट दूर से. ऐसे डॉक्टर कोरोना पीड़ितों को हॉस्पिटल में बचाते कैसे हैं, यही तमाशा देख कर मुझे हंसी आती है... मुझे हंसी आती है जब समाचार आता है .... "कोरोना को हराने वालों को ताली बजाकर हॉस्पिटल से विदा किया गया." सबकुछ बस मिडियावादी होकर रह गया है. लोग बचते अपने दम पर हैं और नाम अपने चैम्बर से ना निकलने वाले डॉक्टर कमा रहे हैं.

सोचिये...

फोन पर कोरोना संक्रमितों की मदद का भरोसा दिया जाता है. भरोसा देने वाले विज्ञापनों पर कई करोड़ खर्च कर दिए गए, पर संक्रमित मरीज जब खुद चलकर हॉस्पिटल पहुंचता है. तब वहाँ उसे ना कोई डॉक्टर मिलता है और ना कोई सिस्टम. कोरोना संक्रमित भटक रहा यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ, पर कोई टेस्ट तक करने वाला नहीं. अगर गलती से कोई डॉक्टर या कर्मी मिल भी गया तो ये कंफ़र्म होने पर कि ये कोरोना संक्रमित हो सकता है, उसे Home Quarantine रहने को बोल हॉस्पिटल से भगा देते हैं. भागलपुर में हॉस्पिटल के साथ प्रशासन भी अति निकम्मा और आलसी है. हालत अति दयनीय होती जा रही है, पर टेस्ट करने में भी कोताही. जैसे इनके बाप का पैसा खर्च हो रहा हो. बिहार में कोरोना टेस्ट सिर्फ VIPs, नेता या फिर उसने चमचे का हो रहा है.

अब आप खुद सोचिये... क्या आप भी ऐसी ही हालत में जाना चाहते हैं? 

अपने परिवार के खातिर ही सही, लगाम लगाइए अपनी मौज - मस्ती और बाहर निकलने की प्रवृति पर. अति आवश्यक होने पर या काम पर जाना हो तो सुरक्षा के सारे उपायों का पालन कीजिये. इस पोस्ट को पढ़िए और सतर्क रहिये- कोरोना और हम. वरना ले डूबेगा ये कोरोना. अभी भी वक्त है सुधर जाओ, वरना सिधारने की नौबत आ जाएगी. जिन्हें लगता है कोरोना सिर्फ सर्दी-खांसी है. उनके लिए बस इतना कहना चाहूँगा. 
बस अपना या अपने अपनों के बारी आने का इंतजार करिए. जिस दिन आपकी बारी आ गई, समझ आ जायेगा आखिर कोरोना किस बला नाम है. 

मुझे पता है जब आपने आज तक दी मेरी चेतावनी नहीं मानी, तो आज इस पोस्ट से भी किसी कोई कोई फर्क पड़ने वाला नहीं. तभी तो शीर्षक रखा है- "अंधों की बस्ती में फिर आइना बेचने आया हूँ".  

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