Wednesday, November 28, 2018

जाड़े की ठण्ड और तन नंगा

एक मार्मिक अपील 


गंगा जी के दर्शन किसी न किसी बहाने हो रहा है, कृपा बनी रहे गंगा माँ.

बच्चों की पिछले सर्दी की कई गरम कपड़े छोटे हो गए जो हमारे काम के नहीं थे. एक थैले में डाल लेकर चले गंगा के तट पर, वापस आते हुए ठंड में एक छोटा बच्चा बिना कपड़े के नजर आया अपनी माँ के साथ सड़क पर बैठा, घर के बाहर. बेटे को बोला पूरा थैला ही दे दो. उसने बड़े प्यार से बोला - "अंटी हमारा कपड़ा है, छोटा हो गया बाबू के लिए रख लीजिए"

बेचारी गरीब माँ सिर्फ मुंह देखती रह गई और हम चल दिए.

दिल रोता है ऐसी गरीबी देखकर.
ऐसे कपडे हम सबके घरों में पड़े होते हैं, जिनका हम इस्तेमाल नहीं करते या जो बच्चों को छोटे हो जाते हैं. सोचिए जरा, अगर यही कपडे साफ कर हम किसी जरूरतमंद को दे दें तो हम किसी गरीब की जान और मान बचाने में मदद करेंगे. पर हम करते क्या हैं, ऐसे कपडे हमारे - आपके घरों में पोछा बन जाता है या ऐसे ही कूडेदान में डाल देते हैं |
आइये सब मिलकर सोचे, उनके लिए जो लाचार हैं.




ऐसे कपड़ों को एक निश्चित जगह रखा जा सकता है, जहाँ से जरूरतमंद लोग इसे ले जा सकें. 

Friday, November 9, 2018

मनुष्य का पशु रूप

"भर्तृहरि नीति शतक" से सादर समर्पित :
साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः ।
तृणं न खादन्नपि जीवमानस्तद्भागधेयं परमं पशूनाम् ॥

हिन्दी में अनुवाद :
साहित्य, संगीत और कला से विहीन मनुष्य साक्षात पूंछ और सींघ रहित पशु के समान है। और ये पशुओं की खुद्किस्मती है की वो उनकी तरह घास नहीं खाता।

Meaning in English :
A person destitute of literature, music or the arts is as good as an animal without a trail or horns. It is the good fortunes of the animals that he doesn't eat grass like them.

Wednesday, November 7, 2018

दीपावली और प्रदूषण - एक साजिश

दीपावली और प्रदूषण - एक साजिश  


किसने इन गधों को वैज्ञानिक और अनुसंधान करने की योग्यता की डिग्रीयां दी? जैसे मनमोहन सिंह अर्थशास्त्री कहलाने के लायक नहीं थे, उसी श्रेणी के ये गधे वैज्ञानिक और खानग्रेसी पर्यावरणविद  दीपावली से प्रदूषण होता है का हंगामा खड़ा किये हैं पिछले कुछ सालों से। क्रिसमस और नव वर्ष के उपलक्ष में भी उच्च वर्गो द्वारा जमकर आतिसबाजी की जाती है, लेकिन वो आतिसबाजी में प्रयुक्त पटाखे बिलकुल प्राकृतिक और हवन सामग्रियों से बनाया जाता है, जिससे वातावरण शुद्धि होती है।

गधे वैज्ञानिक, मुल्ले मीलॉर्ड और खानग्रेसी पर्यावरणविदों अब बताओ ये दीपावली के दो दिन पहले वायु प्रदूषण 20 गुणा कैसे बढ़ गई दिल्ली में ??? क्या तेरे बाप - नाना - दादा स्वर्ग में आतिसबाजी कर रहें हैं जिसका प्रदूषण दिल्ली तक पहुंच गई???

इन गधों को यही समझ नहीं आता यह समय गर्मी और सर्दियों के बीच का है, जिसमें वायु घनीभूत हो रही है, गंदी हवा को नीचे से ऊपर जाने से रोक रही है। जिसके कारण कोहरे जैसा दिख रहा है और वायु प्रदूषित हो रहा है। यह कोई नई बात नहीं है, हर वर्ष ये सिलसिला चलता आया है और 100% पटाखे चलाने पर प्रतिबंध लगा देने के बाद भी ऐसे ही चलता रहेगा।

हिन्दुओं को भेड़ - बकरी समझने वाले लोग जब तक अपने कुंद मानसिकता और धर्म की राजनीति से बाहर आकर नहीं सोचेंगे तब तक ऐसे ही जोकरों की तरह मसखरी करेंगें टेलीविजन पर बैठ कर कर प्रदूषण पटाखों से बढ़ता है और अपने को बड़ा समझदार समझने वाले लोग चाय दुकान फेसबुक और ट्वीटर जैसे सोशल मीडिया पर बैठ ज्ञान पेलेंगे।

Tuesday, November 6, 2018

दीपावली के बहाने - "हम किस गली जा रहे हैं"

दीये और बाती


दीपावली पर कब दीपक की जगह मोमबत्ती ने ले लिया हमें पता ही नहीं चला। पर पिछले कई सालों से हमने यह गलती सुधारी और वापस देशी बन गया और हम पारंपरिक दीये की दीपावली मनाने लगे, क्योंकि यह त्योहार कोई कैंडलावली तो है नहीं जो हम कैंडल जलाए और न ही अभी मैंने अपना धर्म बदल कर क्रिस्चन होने के बारे कुछ सोचा है।

दीपावली के दीये, पूजन सामग्री आदि - आदि की खरीद माताश्री ने की तो माताश्री बाजार में कैसे क्या हुआ बता रही थी और समाचार पत्र देख रहीं थी। मैं वही बैठा था तो मेरी नजर समाचार पत्र पर एक जगह जाकर अटक गई। प्रसंग वही था जो हमारे और माताश्री के बीच वार्तालाप का विषय था - दीये बेचने वाले गरीब की दीपावली में स्थिति । समाचार और माताश्री के बात का निचोड़ -

पिछले चार दिनों से मिट्टी के दीपक बेचने वाले गरीब की दीपावली के दो दिन पहले हालत ये  थी कि बेचारे ने 100 रुपये में 100 दीये के मूल्य पर 400 रुपये की भी बिक्री नहीं की। जबकि वही बगल में मोमबत्ती बेचने वाले सेठजी के पास भीड़ उमड़ी पड़ी थी। उस दीये वाले गरीब के छोटे - छोटे बच्चे नए कपड़े की जिद कर रहे हैं इस दीपावली, जो कि मुश्किल से सभ्‍य लोगों के टेबल की शोभा छोटे पिज्जा के मूल्य पर ही हो जाएंगे, पर हाय रे तेरी किस्मत!

पत्रकार महोदय को गरीब दीयेवाले की बताते बताते आँखे छलछला आई -

 "बच्चबन के एकगो नया कपड़ों और दुई गो लड्डू न दिलाभे पारिबे अबकी लागै छै ।"

यह है हमारे दीपावली मनाने का तरीका। सेठ और माल से मोमबत्ती खरीद लेंगे, 1000 से 2000 रुपये किलो की मिठाई, चाइना के झालर 2000 - 4000 रुपये के घर के बाहर टाँग देंगे, वो भी बिंदास सीना ठोकर की हम तो चाइनीज ही लगाएंगे। पटाखे को कोई कैसे भूल सकता है, इसके बिना तो लगेगा ही नहीं कि हम हिन्दु हैं तो हिन्दू सिद्ध करने के लिये मात्र 5000 रुपल्ली क्या चीज है भई  

पर वो गरीब जो महीनों से अपने बच्चो को नए कपड़े और मात्र दो अदद लड्डू देने का वादा भी पूरा न हो पाने के सदमे में दिल से रो रहा है, याद रखो उसकी हाय भी दीपावली के मंगलमय वातावरण में हमारे ही आसपास मंडराने वाली है और दीपावली में आपके घर लक्ष्मीजी आये या न आये, पर ये गरीब की हाय तो कही दूसरे ग्रह नहीं पर नहीं जाने वाली।

वैसे हमने या आपने क्या इनका ठेका ले रखा है, अपनी-अपनी किस्मत है। मरने दो इनको इनके हाल पर।

Let's Start Our Party. Wish You a Very Happy & Prosperous Deepawali. 

गरीब तेरी यही कहानी,
दिल में दर्द और आंखों में पानी।

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