अंशुमान चक्रपाणि का दशकों पुराना ब्लॉग नक्कारखाना (Nakkarkhana), विचारों के सैलाब को शब्द देने का एक माध्यम है.
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Tuesday, June 2, 2020
अनलॉक-1.0 : जिन्दगी और कोरोना
लॉक डाउन के 68 दिन बीत गए. जिन्दगीं ये 68 दिन ऐसे हैं, जिसे शायद हर कोई अपने जिन्दगीं के पन्नों से फाड़ फेकना चाहता है. 1 जून से देश अनलॉक हो रहा है, अनलॉक-1.0 के साथ जैसे कैद के पंक्षी को खुला आसमां मिल गया और धीरे-धीरे देश में सबकुछ सामान्य करने की कोशिश की जा रही है.
तो क्या अनलॉक-1.0 के साथ कोरोना हार गया ?
ख़त्म हो गया कोरोना ?
ऐसा बिलकुल नहीं है. अनलॉक-1.0 ऐसी स्थिति हैं, जहाँ आप और हम देश में कोरोना के आंकड़ें दिन ब दिन बढ़ते देख रहें हैं, स्थिति पहले से ज्यादा बदतर हो रही है. लोग मौत के मुंह में भी जा रहे हैं. पर आज न कल देश को बाहर निकलना था. कामधंधे-उद्योग-दुकानों को खोलना था, जिसने अपूरणीय क्षति झेली है.
जब साँस लेने से जिन्दगीं जा सकती हो, छूने से मौत गले लगाने को तैयार बैठी हो. मानवता का सबसे बड़ा मन्त्र सामाजिकता और मिलना-जुलना ही मानवता के लिए खतरा बन गए हों. ऐसे में अनलॉक-1.0 से पटरी पर लौटती जिंदगी में अपने तौर-तरीकों को बदलना होगा, भले ये बदलाव हमें पसंद हो या ना हो. हमने काफी लम्बा लॉक डाउन देखा, कोरोना का कहर देखा. सरकार के बताएं सावधानी और बचाव के उपाय भी देश के हर नागरिक तक पहुँच गए. अब जब सबकुछ सामान्य करने की कोशिश की जा रही है, तो हमें और सावधान रहना होगा. अनलॉक-1.0 का मतलब कोरोना का खात्मा नहीं है, ये शायद हममें से कईयों को समझने की जरूरत है.
हमें जिन्दगी को पटरी पर लाना है पर सावधानियों और बचाव के उपायों के साथ. हमें सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखते हुए, सामाजिकता निभानी होगी. कई लोग जो अति सोशल होते हैं उन्हें ये सावधानियां शायद एंटी सोशल लग सकते हैं. पर ये एंटी सोशल आपकी, हमारी और हम सबकी जान बचने का मंत्र होगा आगे कई महीनों तक. साफ-सफाई और पर्सनल हाइजिन के प्रति पहले से अधिक सचेत रहना होगा. इस बात को समझने का प्रयास कीजिये, जब हम घरों में बंद थे, तो कोरोना के मरीजों की संख्या भी कम थी और और ये सीमित स्थानों और शहरों तक ही सीमित थे. पर प्रवासियों के लाखों की संख्या में घर वापसी, हवाई और रेल के परिचालन से अब कोरोना की पहुँच हर गाँव तक हो चुकी है. इसलिए हमें सतर्कत तो रहना ही होगा.
हमारी आपकी लापरवाही से कोरोना आ असली खेल शुरू होगा. लापरवाही से आप अपनी ही नहीं अपने परिजनों की जान जोखिम में डाल देंगे.
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विचार-विमर्श
नक्कारखाना खुद को स्वछंद अभिव्यक्ति करने का माध्यम है. मुझे पूज्य पिताश्री से पढ़ने और लिखने का शौक विरासत में मिला, ये बात अलग है की मेरी लेखनी में उनके जैसा पैनापन और लोगों को बांधे रखने की कूबत नहीं.
नक्कारखाना एक छोटा-सा प्रयास है अपने अंतर्मन में उबलते विचारों को लिपिबद्ध करने का और दिल में जल रहे गुस्से के भड़ास को निकालने का. आपको मेरा ये प्रयास कैसा लगा जरूर बताये, आपकी प्रतिक्रियाओं का मुझे इन्तजार रहेगा|
-धन्यवाद.
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