Sunday, November 17, 2019

रुक जाना नहीं तुम कहीं हार के...

रुक जाना नहीं तुम कहीं हार के....

रुक जाना नहीं तुम कहीं हार के...

आज का दिन कुछ विशेष है और इस विशेष दिन नीली छतरी वाले के आगे हाथ जोड़ बस यही बोला की नीली छतरी वाले बस इस सरकारी नौकरी से मुक्ति दे दो, तो शायद अगले जन्म में दीप, धूप लेकर आपके आगे हाथ जोड़ सकने लायक बन पाऊँ, नहीं तो अगले जन्म में भी आपके मंदिर में टहलने ही आऊंगा. अब आपको बुरा लगे तो मेरी बला से. आपकी दुनिया का नियम है जैसी करनी वैसी भरनी, तो भरना तो आपको भी पडेगा.
सरकारी नौकरी में वर्कलोड बढ़ना, फालतू काम ज्यादा, चमचागिरी, भ्रष्टाचार का बोलबाला, ऑफिसरशाही, छुट्टी न मिलना इत्यादि कारक पहले ही अति उच्च स्तर पर हैं. सीधे सच्चे लोग या तो जिन्दगी पिसते - घिसते बिता देते हैं या फिर मेरी तरह कशमकश में संघर्ष करते हैं कोशिश करते हैं.
जिसमें कुछ लोग होते हैं, जो सफ़ल होते हैं इस दो कौड़ी के मायाजाल को तोड़ने में. जिनके अन्दर क्षमता है नौकरी छोड़ कर जा रहे हैं और आगे और जिस तरह की स्थिति अभी सरकार बना रही है बंधुआ मजदूरी वाली. जिनमें कुछ करने का हुनर है, क्षमता है, जूनून है, ऐसे लोग और अधिक संख्या में आने वाले समय में नौकरी छोड़ने को मजबूर होंगे, इसमें कोई दो राय नहीं.
सरकारी नौकरी मतलब -
अंधेर नगरी चौपट राजा,
टके सेर भाजी टके सेर खाजा.
यहाँ आपके टैलेंट की कोई कीमत नहीं, सब धन बाईस पसेरी वाली कहावत शायद आज सरकारी नौकरी पर सबसे ज्यादा लागु हो.
खुद का दुखद अनुभव है, खून के आंसू रो रहा हूँ पिछले दस साल से. बेहतरीन लाइफस्टाइल और काम छोड़कर, आदर सम्मान छोड़कर, घर वालों के दबाव और माँ से आंसुओं की वजह से ना चाहते हुए भी सरकारी नौकरी का पट्टा गले में बंधवा लिया. दस वर्षों में शायद ही कोई एक दिन बीता हो जब लगा हो कि मेरे साथ जो ऊपर वाले ने चक्रव्यू रचा और ऐसे स्थिति में ला खड़ा किया, मैं वहीँ ठीक हुँ. अपने जीवन के दस साल से ज्यादा समय झख मार कर जिस जगह दिया वहां चमचागिरी और चाटुकारों का राज चलता है. काम की कोई कीमत नहीं. इमानदार रहा और रहूँगा, पर इमानदारी की कोई कदर नहीं यहाँ. नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों का बोलबाला. सारी मलाई चाटुकार और कामचोर खा रहे हैं, भ्रष्ट अफसरों का लाल फीताशाही अंग्रेजों के ज़माने का चल रहा यहाँ और काम करने वाले इमानदार कर्मचारियों को पूरा भ्रष्ट तंत्र मिलकर निकम्मा और बेकार साबित करने में लगा रहता है दिन रात.
नौकरी की चाह में पढ़े लिखे लोग बेरोजगार होकर इसलिए घूम रहे हैं, क्योंकि मन में बस यही घुसा है सरकारी नौकरी ही लेना है. जिस वक़्त कॉलेज छोड़ मैं बाहर निकल गया और दुनिया देख ली, अच्छी खासी नौकरी पा ली, फिर उसे छोड़ प्रोफेशनल योग ट्रेनर बनकर टेलीविजन तक लाइव पहुंच गया, मेरे सहपाठियों का सारा कुनबा सरकारी नौकरी पाने की तैयारी में अपने जवानी के 10-11 साल निकाल चुके थे. मेरा भी दुर्भाग्य रहा कि इतना सब करने के बाद, बिना किसी के हाथ के जो मुकाम पाया, उसे छोड़कर सरकारी नौकरी में ही आना पड़ा, पर ये सरकारी नौकरी मेरे लिए लेम्परी बैड टाइम की तरह है जिन्दगी में, जिसे एक दिन बीत जाना है.
ऐसे लड़के और ल़डकियों से जो नौकरी की तैयारी कर रहे हैं आगाह करना चाहता हूँ कि सरकारी नौकरी का मोह छोड़ आगे बढ़ो, कुछ नहीं यहाँ. जो भ्रष्ट हैं, कामचोर हैं, चाटुकारिता जिनकी पुश्तैनी विरासत है वो शौक से आए. आपके लिए ही सरकारी नौकरी है. बाकी जो इमानदार और मेहनत के बल पर जिंदगी में कुछ पाना चाहते हैं, वो सरकारी नौकरी में गलती से भी न आये.
आज के विशेष दिन, दिल से निकला दर्दे दास्तां.

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