Saturday, November 23, 2019

पर्सनल के पप्पा...



आज सुबह के साढ़े चार बजे होंगे, लल्ला - लल्ला लोरी स्टाइल में विक्रमशिला एक्सप्रेस ट्रेन हिलाती - झुलाती जा रही थी और मैं एक नन्हें बच्चे की तरह सिमटा - लिपटा चादर ओढ़े निद्रादेवी के आगोश में प़डा था. तभी शोर ने मुझे निद्रादेवी के आगोश से कूदकर बाहर आने को विवश कर दिया. अनमने ढंग से आंखें खोली, एक पैसेंजर के साथ बहस चल रही है, पेंट्री कार के वेंडर या मैनेजर जो भी रहें हों. बाहर देखा मुगलसराय स्टेशन पर गाड़ी खड़ी थी. 

देखिए माजरा क्या है -
पैंट्री कार वाला - आप कौन हैं? पैंट्री कार में कैसे घुस गए?

पैसेंजर - मैं पर्सनल का बाबु हूँ, धनबाद का.

पैंट्री कार वाला - पर्सनल का बाबु?

पैसेंजर - हाँ

पैंट्री कार वाला- इहे गाड़ी में के टीटी हैं का?

पैसेंजर - क्या मतलब?

पैंट्री कार वाला- आप टीटी के पप्पा हैं न, हम समझ गए. कौन सा टीटी के पप्पा हैं?

पैसेंजर - अरे नहीं पर्सनल का बाबु हूँ.

पैंट्री कार वाला- हाँ... हाँ... आप टीटी बाबु के पप्पा हैं. ऊ टीटी बाबु कोई आएगा तो बात करियेगा. हम नहीं जानते कौनो पर्सनल टीटी बाबु को.

पैसेंजर - अरे बड़े अजीब आदमी हो यार तुम तो. मैं DRM ऑफिस, धनबाद का क्लर्क हूँ.

पैंट्री कार वाला- चुपचाप आप ऐसी में जाइए, चार बजे सुबह पैंट्री में घुस रहे हैं. एतना देर से पर्सनल का बाबु.... पर्सनल का बाबु का बोल रहे हैं. हम सोच रहे हैं आप पर्सनल के पप्पा हैं.

पैसेंजर - रेलवे का काम करते हो पर्सनल का बाबु क्या होता है नहीं पता?

पैंट्री कार वाला - हमको कौनो जरूरतें नहीं है कुछ पता करने का. आप चुपचाप उतर कर ऐसी या स्लीपर में जाइए.
उसके बाद पर्सनल के पप्पा को पैंट्री वाले ने धक्के देकर बाहर कर दिया, क्योंकि वो सीधी तरह से उतरने को तैयार ही न था. नीचे धक्का  खाते हुए देख लेने की बात कह गया.

पूरे दिन हम पाँच जने पर्सनल के पप्पा बोलकर ठहाका मारते रहे.

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